पैरा भाला फेंक खिलाड़ी झाझरिया ने 2013 में खेलों को अलविदा कहने का मन बना लिया था

पैरा भाला फेंक खिलाड़ी झाझरिया ने 2013 में खेलों को अलविदा कहने का मन बना लिया था

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  • Publish Date - August 17, 2021 / 06:35 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:26 PM IST

नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) पैरालंपिक खेलों में दो बार के स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी देवेन्द्र झाझरिया ने मंगलवार को कहा कि भाला फेंक स्पर्धा को 2008 और 2012 के खेलों में जगह नहीं मिलने के बाद उन्होंने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें इसे जारी रखने के लिए मना लिया।

झाझरिया 2004 एथेंस पैरालंपिक के एफ-46 वर्ग में अपना पहला स्वर्ण जीता था। इसके 12 साल के बाद इस पैरा खिलाड़ी ने 2016 में रियो में अपने प्रदर्शन को फिर से दोहराया। 

इस 40 साल के पैरा  एथलीट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ऑनलाइन बातचीत में कहा, ‘‘ जब मेरी स्पर्धा को 2008 पैरालंपिक में शामिल नहीं किया गया था, तो मैंने कहा कि ठीक है, यह 2012 में होगा। लेकिन जब 2012 में यह फिर से नहीं हुआ, तो मैंने सोचा कि मैं खेल छोड़ दूं। वह साल 2013 था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन मेरी पत्नी ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए और मैं 2016 तक खेल सकता हूं। इसलिए, मैंने अपनी योजना बदल दी और 2013 में मुझे पता चला कि मेरी स्पर्धा को रियो पैरालंपिक में शामिल किया गया है। फिर मैंने गांधीनगर के साइ (भारतीय खेल प्राधिकरण) केन्द्र में अभ्यास शुरू किया और  2016 रियो में अपना दूसरा स्वर्ण पदक जीता।’’

इस महीने 24 तारीख से शुरू होने वाले तोक्यो पैरालंपिक में स्वर्ण की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे झाझरिया ने कहा कि जब उन्होंने अपना खेल शुरू किया तो उन्हें लोगों के ताने सुनने पड़े थे।

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं नौ साल का था, मेरा हाथ (बिजली के झटके के कारण) गंभीर तरीके से प्रभावित हो गया था। मेरे लिए घर से बाहर निकलना भी चुनौती थी। जब मैंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया तो मुझे लोगों के ताने झेलने पड़े।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों ने पूछा कि मैं भाला कैसे फेंकूंगा, वे मुझे कहते थे कि खेलों में मेरे लिए कोई जगह नहीं है, बेहतर है कि पढ़ाई करूं और अच्छी नौकरी हासिल करने की कोशिश करूं। फिर मैंने फैसला किया कि मैं कमजोर नहीं बनूंगा। जीवन में मैंने सीखा है कि जब हमारे सामने कोई चुनौती होती है तो आप सफलता प्राप्त करने के करीब होते हैं। इसलिए, मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया।’’

रियो पैरालंपिक के एक अन्य स्वर्ण पदक विजेता मरियप्पन थंगावेलु ने प्रधानमंत्री से कहा कि वह तोक्यो में अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘ जब मैं छोटा बच्चा था तब एक दुर्घटना का शिकार हो गया था। लेकिन मैंने इसे अपने पर हावी नहीं होने दिया। मेरे कोच (सत्यनारायण) ने मेरी बहुत मदद की है और मुझे सरकार, साइ और पैरालंपिक समिति से काफी समर्थन मिला है। मैं हर एथलीट से कहना चाहता हूं कि कभी हार मत मानो।’’

युवा पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी पलक कोहली ने अपनी सफलता का श्रेय कोच गौरव खन्ना को दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘ पैरालंपिक किसी भी पैरा-एथलीट के लिए सबसे बड़ा मंच होता है और मैंने नहीं सोचा था कि मैं यहां इतनी तेजी से पहुंच पाऊंगी। लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं यह साबित कर सकती हूं कि मेरी दिव्यांगता श्रेष्ठता में बदल सकती है।’’

भाषा आनन्द पंत

पंत