टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक के सफर के गवाह थे यशपाल

टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक के सफर के गवाह थे यशपाल

टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक के सफर के गवाह थे यशपाल
Modified Date: November 29, 2022 / 08:15 pm IST
Published Date: July 13, 2021 10:02 am IST

(कुशान सरकार)

नयी दिल्ली, 13 जुलाई (भाषा) अपने जज्बे और समर्पण के लिए भारतीय क्रिकेट में विशिष्ट पहचान बनाने वाले पूर्व बल्लेबाज यशपाल शर्मा टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक पहुंचने के सफर के गवाह रहे।

यशपाल 1979 विश्व कप की उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसे श्रीलंका की टीम के खिलाफ भी शिकस्त का सामना करना पड़ा था जबकि इसके चार साल बाद कपिल देव की अगुआई में उनकी मौजूदगी वाली टीम ने वेस्टइंडीज की दिग्गज टीम को हराकर खिताब जीता था।

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भारतीय क्रिकेट ने मंगलवार को अपने सबसे समर्पित सैनिकों में से एक यशपाल को गंवा दिया जिनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ।

यशपाल के पास सुनील गावस्कर जैसी योग्यता, दिलीप वेंगसरकर का विवेक या गुंडप्पा विश्वनाथ जैसी कलात्मकता नहीं थी लेकिन जो भी ‘यश पाजी’ को जानता है उसे पता है कि उनके जैसा समर्पण, जज्बा और जुनून बेहद कम लोगों के पास होता है।

दिवंगत यशपाल ने फिरोजशाह कोटला मैदान पर चाय की चुस्की लेते हुए एक बार कहा था, ‘‘मैलकम मार्शल के साथ मेरा अजीब रिश्ता था। मैं जब भी बल्लेबाजी के लिए आता था तो वह कम से कम दो बार गेंद मेरी छाती पर मारता था।’’

यशपाल का 37 टेस्ट में दो शतक की मदद से 34 के करीब का औसत और 42 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 30 से कम का औसत उनकी बल्लेबाजी की बानगी पेश नहीं करता। यह 1980 से 1983 के बीच टीम पर उनके प्रभाव को भी बयां नहीं करता जो उनके स्वर्णिम वर्ष थे और वह टीम के मध्यक्रम का अभिन्न हिस्सा थे।

घरेलू मैचों के दौरान जब यशपाल से बात होती थी तो वह मार्शल के बाउंसर और 145 किमी प्रति घंटा से अधिक की रफ्तार की इनस्विंगर का सामना करने की बात बताते हुए गर्व महसूस करते थे।

यशपाल ने कहा था, ‘‘आपको पता है मैंने 1983 में (विश्व कप से ठीक पहले) सबीना पार्क में 63 रन बनाए थे और सबसे आखिर में आउट हुआ था, मैं ड्रेसिंग रूप में वापस गया, टी-शर्ट उतारी और वहां मैलकम की प्यार की निशानी (मैलकम की शॉर्ट गेंद से लगी चोट) थी। वे सभी महान गेंदबाज थे लेकिन मैलकम विशेष था। वह डरा देता था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वेस्टइंडीज के आक्रमण के खिलाफ आपको कभी नहीं लगता था कि आप क्रीज पर जम गए हो। आपको बस अपने ऊपर विश्वास रखना होता था और खराब गेंद को छोड़ना नहीं होता था क्योंकि उनके जैसे स्तरीय गेंदबाज बहुत कम ऐसा मौका देते थे।’’

विश्व कप 1983 में कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और रोजर बिन्नी के प्रदर्शन को अधिक सुर्खियां मिलती हैं लेकिन यशपाल की छाप भी उस टूर्नामेंट में किसी से कम नहीं थी।

टनब्रिज वेल्स में कपिल की नाबाद 175 रन की पारी खेल के किस्सों का हिस्सा हैं, इसलिए भी क्योंकि बीबीसी ने उस मैच का सीधा प्रसारण करने की जरूरत नहीं समझी थी और यहां तक कि उसे रिकॉर्ड तक नहीं किया गया। उस दिन (18 जून 1983 को) पाकिस्तान के मैच को कवर किया गया।

लेकिन बेहद कम लोगों को याद होगा कि यह यशपाल शर्मा की विश्व कप के भारत के पहले मैच में ओल्ड ट्रैफर्ड में वेस्टइंडीज के खिलाफ 89 रन की पारी थी जिसने भारत की आने वाली सफलता का मंच तैयार किया था। भारत ने यह मैच 32 रन से जीता था।

संवाददाताओं से बातचीत के दौरान यशपाल ने बेहद मलाल के साथ कहा था, ‘‘आपको पता है, मैंने बीबीसी से कई बार पता किया कि क्या उनके पास उस मैच की फुटेज है। मैं उस पारी की रिकॉर्डिंग के लिए किसी को भी कम से कम 5000 पाउंड तक देने को तैयार था।’’

यशपाल का मानना था कि माइकल होल्डिंग, मार्शल, एंडी रोबर्ट्स और जोएल गार्नर जैसे वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाजों के खिलाफ उनकी 120 गेंद में 89 रन की पारी उनकी सर्वश्रेष्ठ एक दिवसीय पारी थी।

वह आस्ट्रेलिया के खिलाफ चेम्सफोर्ड में टीम के अंतिम ग्रुप मैच में भी शीर्ष स्कोरर थे लेकिन जिस पारी ने उन्हें 1980 के क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में अमर कर दिया वह इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में नाबाद 61 रन की पारी थी।

दूरदर्शन ने इस मुकाबले का भारत में सीधा प्रसारण किया था और यशपाल ने भारतीय प्रशंसकों के मन में अपनी पारी से अमिट छाप छोड़ी।

यशपाल की एक अन्य पारी जिसे लगभग भुला दिया गया वह 1980 में एडीलेड में न्यूजीलैंड के खिलाफ थी। उन्होंने 72 रन बनाए और न्यूजीलैंड के बायें हाथ के तेज गेंदबाज गैरी ट्रूप के ओवर में तीन छक्के जड़े। यूट्यूब पर चैनल नाइन के वीडियो पर इस पारी को देखा जा सकता है।

यशपाल पंजाब के धाकड़ बल्लेबाजी के रूप में 1970 के दशक में राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने की दौड़ में शामिल हुए जब दिवंगत अभिनेता दिलीप कुमार मोहन मीकिन ग्राउंड (गाजियाबाद के मोहन नगर) में पंजाब और उत्तर प्रदेश के बीच मैच देखने पहुंचे।

हाल में दिलीप कुमार के निधन के बाद यशपाल ने याद करते हुए बताया था कि कैसे यह दिग्गज अभिनेता उनके पास आया था और उनसे कहा था कि वह मुंबई में किसी से बात करेंगे जिससे कि उनकी प्रतिभा को पहचान मिले।

बाद में उन्हें पता चला कि दिलीप कुमार ने उनकी प्रतिभा के बारे में अपने मित्र राज सिंह डूंगरपुर को बताया जो भारतीय क्रिकेट में स्तंभों में से एक रहे।

यशपाल को उस भारतीय चयन समिति का हिस्सा होने पर गर्व था जिसने युवा खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी को 2004 में बांग्लादेश दौरे के लिए चुना। वह उस समय उत्तर क्षेत्र से चयनकर्ता थे जब धोनी की अगुआई में भारत ने 2011 में विश्व कप जीता।

सुनील गावस्कर और कपिल देव हमेशा क्रिकेट प्रेमियों की नजर में हीरो रहेंगे लेकिन प्रत्येक हीरो को यशपाल शर्मा जैसे मजबूत साथी की जरूरत होती है।

भाषा सुधीर पंत

पंत


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