भोपाल गैस त्रासदी, 34 साल बाद भी हालात जस के तस, तीसरी पीढ़ी झेल रही दंश, देखिए रिपोर्ट

भोपाल गैस त्रासदी, 34 साल बाद भी हालात जस के तस, तीसरी पीढ़ी झेल रही दंश, देखिए रिपोर्ट

भोपाल गैस त्रासदी, 34 साल बाद भी हालात जस के तस, तीसरी पीढ़ी झेल रही दंश, देखिए रिपोर्ट
Modified Date: November 29, 2022 / 07:46 pm IST
Published Date: December 3, 2018 9:24 am IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में गैस कांड के 34 साल बाद भी हालत जस के तस हैं। गैस पीडितों की तीसरी पीढ़ी की बात करें तो वो आज भी उस विभीषिका का दंश झेल रही है। तीन पीढ़ियों के बाद भी गैस कांड का असर भोपाल में जन्म लेने वाले बच्चों पर साफ़ नजर आता है। 34 साल बाद भी लोग बीमारी, पानी की समस्या और जहरीले माहौल में जीने को मजबूर हैं।

एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘टाइम इज द बिगेस्ट हीलर’यानी वक्त सारे घाव भर देता है। लेकिन, भोपाल के यूनियन कार्बाइड में जहरीली गैस रिसाव से हुई दुनिया की भीषणतम औद्योगिक गैस त्रासदी के पीड़ितों के घाव 34 वर्ष बाद भी नहीं भर पाए हैं। शारीरिक और मानसिक आघातों से उबरने में उन्हें न जाने अभी कितना और वक्त लगेगा। गैस त्रासदी की विभीषिका झेल चुके कई परिवारों के हालात तो ऐसे हैं कि कुछ गैस पीडित जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। कई बच्चे लंबे इलाज के बाद भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रहे हैं।

वहीं गैस पीड़ित बस्तियों में लोग नारकीय जीवन जी रहे है। कहा जा रहा है कि इनमें से कई को सरकारी सहायता तो दूर, पर्याप्त मुआवजा भी नहीं मिल पाया है। जिन परिवारों में इस प्रकार के बच्चों ने जन्म लिया, उनमें वह पहले जैसी जीने के उमंग नहीं बची है, मगर, अपने बच्चे को किसी लायक बना देने की ललक ने उन्हें जिंदा रखा हुआ है। इन बच्चों के उचित उपचार की व्यवस्था का मामला न जाने कितने सालों तक खींचा जाएगा। हालात ये है कि इन बस्तियों में पैदा होने वाले कई बच्चे शारीरिक बीमारी के साथ मानसिक रूप से भी कमजोर है। कई बच्चे तो ऐसे हैं जो न बोल सकते है न ही कुछ बता सकते है।

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सत्तासीन लोगों के लिए भले ही खौफनाक मंजर को भुलाना आसान होता हो, मगर इससे रूबरू होने वाले के लिए जिंदगी गुजार पाना बहुत मुश्किल बन जाता है। औद्योगिक त्रासदियों का सामना दुनिया के अन्य देश भी कर चुके हैं। लेकिन वहां उन्होंने रोना रोने, चेहरे बदलने और इल्जाम लगाने में वक्त नहीं गंवाया बल्कि एक ऐसी कारगर नीति तैयार की ताकि प्रत्येक बच्चे को कदम-से-कदम मिलाकर साथ आगे बढ़ने और सम्मानपूर्वक जीवन-यापन करने का साहस मिल सके। लेकिन, भोपाल गैस त्रासदी जैसी देश और दुनिया को हिलाकर रख देने वाली घटना के बाद भी सिर्फ चेहरे बदलने का खेल खेला गया। कभी कांग्रेस की सरकार आई तो कभी भाजपा की पर गैस पीड़ितों के जख्मों पर किसी ने मरहमलगाने की जरूरत नहीं समझी।

 


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