लॉकडाउन का इफेक्ट, ! खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेक्चरर

लॉकडाउन का इफेक्ट, ! खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेक्चरर

लॉकडाउन का इफेक्ट, !  खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेक्चरर
Modified Date: November 29, 2022 / 08:54 pm IST
Published Date: September 25, 2020 11:47 am IST

पुणे, 25 सितंबर (भाषा) महाराष्ट्र के सांगली जिले के रहने वाले नवनाथ गोरे मार्च तक अहमदनगर जिले के एक कॉलेज में व्याख्याता (लेक्चरर) के पद पर कार्यरत थे लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए लागू बंद की वजह से उनकी अनुबंध वाली नौकरी चली गई और वह अब खेतिहर मजदूर होकर रह गए हैं।

सांगली जिले के जाट तहसील के एक छोटे गांव निगड़ी के रहने वाले 32 वर्षीय गोरे को 2018 में साहित्य अकादमी युवा लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था लेकिन यह पुरस्कार भी ऐसे समय में किसी व्यक्ति को कैसे संत्वाना दे सकता है जो महामारी की वजह से बुरी स्थिति में फंस गया हो। नौकरी जाने की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपने परिवार की रोजी-रोटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गृह जिले में खेतिहर मजदूर का काम शुरू कर दिया।

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गोरे के पास कोल्हापुर जिले के शिवाजी विश्वविद्यालय से मराठी में परास्नातक की डिग्री है। उन्होंने परास्नातक की पढ़ाई के दौरान ही अपना पहला उपन्यास ‘फेसाटी’ लिखना शुरू किया था। यह किताब 2017 में प्रकाशित हुई और उन्हें अगले साल साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गोरे ने कहा, ” पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद मुझे अहमदनगर जिले के एक कॉलेज से नौकरी की पेशकश हुई और मैंने वहां घंटे के हिसाब से व्याख्याता के रूप में काम करना शुरू किया और इसके लिए मुझे हर महीने 10,000 रुपये की राशि मिल जाती थी।’

उन्होंने कहा, ” इस साल फरवरी में मेरे पिता का निधन हो गया और मेरी मां और 50 साल के दिव्यांग भाई की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई।” पिता के निधन के बाद गोरे फरवरी में घर गए थे और कोविड-19 महमारी को रोकने के लिए मार्च अंत में लागू बंद की वजह से कॉलेज नहीं लौट सके। उन्होंने कहा,” मैं फरवरी में गांव आया था। मेरी नौकरी अनुबंध पर थी, इसलिए कॉलेज से होने वाली कमाई भी रूक गई। आय नहीं होने की वजह से जरूरतें पूरी करने में मुश्किलें आने लगीं और तब से मैंने छोटे-मोटे काम करने शुरू किए और क्षेत्र में खेतिहर किसान के रूप में भी काम करना शुरू कर दिया।”

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गोरे काम की तलाश में क्षेत्र में काफी दूर निकल जाते हैं और वह बताते हैं कि अगर वह पूरा दिन काम करते हैं तो उन्हें 400 रुपये की राशि मिलती है। गोरे कोल्हापुर के अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि परास्नातक की पढ़ाई करते हुए वह अपने परिवार को सहायता पहुंचाने के लिए एटीएम केंद्र पर गार्ड की नौकरी करते थे। गोरे की किताब ‘फेसाटी’ में एक ऐसे युवक की कहानी है जो तमाम परेशानियों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करता है। इस किताब में किसानों की परेशानियों और उनकी स्थिति को दर्शाया गया है।

इसी बीच गोरे की स्थिति को देखकर महाराष्ट्र के मंत्री विश्वजीत कदम ने कहा कि उन्होंने गोरे को पुणे स्थित शैक्षणिक संस्थाओं के समूह में नौकरी की पेशकश की है। कदम, भारती विद्यापीठ के प्रबंधन से जुड़े हैं। मंत्री ने कहा कि उन्होंने गोरे से बात की है और उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्हें एक ऐसा माहौल भी प्रदान किया जाएगा जहां उनकी साहित्यिक प्रतिभा को बढ़ावा मिल सके।

 


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com