पुत्रदा एकादशीः पुत्रशोक से मुक्ति दिलाने वाले इस व्रत का महत्व, पूजाविधि, तिथि और कथा..जानिए | Putrada Ekadashi: The importance, worship method, date and story of this fast which frees the son of Son.

पुत्रदा एकादशीः पुत्रशोक से मुक्ति दिलाने वाले इस व्रत का महत्व, पूजाविधि, तिथि और कथा..जानिए

पुत्रदा एकादशीः पुत्रशोक से मुक्ति दिलाने वाले इस व्रत का महत्व, पूजाविधि, तिथि और कथा..जानिए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:20 PM IST, Published Date : January 22, 2021/7:22 am IST

रायपुर। पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। संतान की इच्छा रखने वाले दंपति के लिए यह व्रत बहुत ही श्रेष्ठ है। ये तिथि सब पापों को हरने वाली पितृऋण से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। भगवान विष्णु इस तिथि के अधिदेवता हैं, इसलिए जप, तप, दान-पुन्य और सकाम अनुष्ठान-पूजा के लिए यह सर्वोच्च तिथि है। चराचर जगत में प्राणियों के लिए इससे बढ़कर दूसरी अन्य कोई तिथि नहीं है।

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इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की भक्ति पूर्वक षोडशोपचार विधि के द्वारा ’ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस अमोघ मंत्र द्वारा पूजन सामग्री अर्पित करना चाहिए। पूजन के मध्य भी इस मंत्र का जप करते रहना चाहिए। समापन के समय श्रद्धा-भाव से इस मंत्र के द्वारा जनार्दन की प्रार्थना करना करना चाहिए। ’एकादश्यां निराहारः स्थित्वाहमपरेऽहनि । भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष पुत्रं में भवाच्युत ।। अर्थात- हे ’कमलनयन’ भगवान अच्युत ! मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूँगा आप मुझे उत्तम पुत्र दें, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।

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दिनभर सात्विक रहते हुए झूठ बोलने, क्रोध करने और दूसरों को हानि पहुंचाने से बचाना चाहिए। इस प्रकार व्रत करके एकादशी के महात्म्य की कथा सुनना चाहिए। शास्त्रों में इस व्रत के महात्म्य की अनेक कथाएं हैं किन्तु पद्मपुराण में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर के द्वारा पुत्रदा एकादशी के विषय में पूछें गये प्रश्न के जवाब में जो कथ बताई गई है। उसका हम यहां उल्लेख कर रहे हैं।

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भगवान कृष्ण युधिष्ठिर को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि ‘हे धर्मराज ! भद्रावती पुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। राजा सुकेतुमान के विवाह के बहुत काल बीत जाने पर भी कोई संतान सुख प्राप्त नही हुआ, जिसके कारण पति-पत्नी सदा इस बात से चिंता-शोक में दुबे रहते थे। उनके ’पितर’ भी चिंतित रहते थे कि राजा के बाद कोई ऐसा नहीं दिखाई देता जो हम पितरों का तर्पण करा सके। यह सोचकर पितृगण भी दुखी होने लगे। 

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एक दिन राजा बिना पुरोहित आदि को सूचित किये गहन वन में चले गये वहाँ जंगली जीवों को देखते और घूमते हुए कई घंटे बीत गए। राजा को भूख प्यास सताने लगी निकट ही उन्होंने एक सरोवर देखा। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। वे सभी वेदपाठ कर रहे थे उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम कर उनकी वन्दना करते हुए बोले । हे ! महामुने आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं ? आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं ? मुनि कहने लगे कि हे राजन ! हम लोग विश्वदेव हैं यहाँ स्नान के लिए आये हैं आज से पांच दिन बाद माघ का का स्नान आरम्भ हो जायेगा।

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आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है जो व्रत करने वाले मनुष्यों को उत्तम पुत्र देती है। तुम्हारी जो इच्छा है वो कहो ? यह सुनकर राजा बोले, हे विश्वेदेवगण ! मेरे भी कोई संतान नहीं है यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो पुत्र प्राप्ति का उपाय बताएं ? मुनिगण बोले हे राजन ! आज पुत्रदा एकादशी है आप अवश्य ही इसका व्रत करें, इसका व्रतफल अमोघ है अतः अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का विधिवत व्रत किया और द्वादशी को पारणा करके मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त कर वापस घर आ गये । कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसव काल आने पर उनके एक पुत्र हुआ वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। श्रीकृष्ण ने कहा, युधिष्टिर जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है ।  

 
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