7 साल की जगह 10 साल काटनी पड़ी सजा, सुप्रीम कोर्ट के दखल बाद अब होगी रिहाई |rape-accused-spent-10years-in-jail-instead-of-7-years

7 साल की जगह 10 साल काटनी पड़ी सजा, सुप्रीम कोर्ट के दखल बाद अब होगी रिहाई

सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन माना है और उसे साढ़े सात लाख रुपए मुआवजा राशि देने का आदेश राज्य शासन को दिया है। इसके साथ ही इस लापरवाही के लिए दोषी अधिकारी पर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : July 15, 2022/2:18 am IST

बिलासपुर। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी छत्तीसगढ़ में दुष्कर्म के दोषी को सात साल की जगह 10 साल से अधिक समय जेल में काटना पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन माना है और उसे साढ़े सात लाख रुपए मुआवजा राशि देने का आदेश राज्य शासन को दिया है। इसके साथ ही इस लापरवाही के लिए दोषी अधिकारी पर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है। मामला जशपुर जिले का है।

2014 में मिली थी सजा

जशपुर जिले के फरसाबहार थाना क्षेत्र के ग्राम तमामुंडा निवासी भोला कुमार दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद था। ट्रॉयल में उसे निचली अदालत ने दोषी करार दिया और साल 2014 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील प्रस्तुत किया था। हाईकोर्ट ने 19 जुलाई 2018 को उसे दुष्कर्म के लिए दोषी ठहराया था। इसके साथ ही उसकी आजीवन कारावास यानि 12 साल की सजा को कम कर सात साल कर दिया था। लेकिन, हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी उसे 10 साल से अधिक समय जेल में बिताना पड़ा, जिसके खिलाफ भोला कुमार ने अंबिकापुर जेल में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने उसके पत्र को स्पेशल लिव पीटिशन (SLP) के रूप में स्वीकार कर लिया। साथ ही केस में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को अभियुक्त के संबंध में दस्तावेज तैयार करने और कानूनी सहायता दिलाने का आदेश दिया और सुप्रीम कोर्ट में उसके सारे रिकार्ड प्रस्तुत करने कहा। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से जानकारी एकत्र कर दस्तावेजों को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया, जिसके आधार पर केस की सुनवाई हुई।

कोर्ट के दखल के बाद हुई जांच

सभी पक्षों के साथ ही अंबिकापुर जेल अधीक्षक के दस्तावेजों का परीक्षण किया गया, तब पता चला कि हाईकोर्ट ने सजा की पुष्टि करने के साथ ही सजा की अवधि में संशोधन किया था। इसके बाद भी उसे रिहा नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जब राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से दस्तावेजों की जानकारी जुटाई। तब जेल प्रशासन हरकत में आया। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी जुटाई। इसके बाद उसे जेल से रिहा करने की कार्रवाई शुरू की गई। लेकिन, तब वह जेल में 10 साल से अधिक सजा भुगत चुका था।

 
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