रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षाकर्मियों के संविलियन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस फैसले से शिक्षाकर्मियों में तो खुशी का माहौल है, लेकिन शिक्षाकर्मी परिवार के कई सदस्य ऐसे भी हैं, जिन्हें सरकार के इस फैसले से राहत नहीं है और उनके सामने रोजी रोटी की समस्या बनी हुई है। दरअसल, संविलियन की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले शिक्षाकर्मियों की असमय मौत हो गई और उनका परिवार तंगहाल हो गया। हालत यह है कि ऐसे दिवंगत शिक्षाकर्मियों के परिवार वाले शराब की खाली बोतलों को साफ कर गुजारा कर रहे हैं।
संविलियन की लड़ाई लड़ने वाले दिवंगत शिक्षाकर्मियों के परिवार को संघर्ष अभी तक खत्म नहीं हुआ है। नौकरी और सहायता के लिए वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटकर थक गए और शराब की बोतल साफकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। इसमें खिलेश्वरी साहू, निर्मला बंजारे, और फुलेश्वरी पारधी जैसे कई नाम हैं। जिनके आंखों में अब भी आंसू हैं, क्योंकि नियति ने उनका सुहाग छीन लिया। इनके सभी के पति की नौकरी 8 साल से अधिक की हो चुकी थी।
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इसके बाद भी इन्हें कुछ नहीं मिल रहा है। तंगहाली से जीवन गुजार रहीं निर्मला बच्चों के पेट भरने के लिए आधा दिन पुट्ठा फैक्टरी में काम करती हैं तो आधा दिन शराब की बोतलें धोकर प्रतिदिन 100 रुपए कमाती हैं।
इसी तरह दशरथ लाल पारधी को शिक्षाकर्मी बने 20 साल से अधिक हो चुके थे, ऐसे में संविलियन का लाभ सबसे पहले उन्हें को ही मिलता लेकिन उनकी मौत के बाद पत्नी सब्जी बाड़ी में काम कर अपना गुजर बसर कर रही है। न तो इलाज के लिए स्मार्ट कार्ड बना है और न ही उज्जवला योजना के तहत गैस ही मिली है। समाज का दबाव पड़ा तो दो सप्ताह से अब चावल मिलने लगा है, लेकिन फुलेश्वरी की चिंता है कि आखिर बेटे-बेटियों की शादी किस तरह से होगी। शिक्षाकर्मी संघ के पदाधिकारी इनके लिए भी आंदोलन करने की तैयारी में हैं।
संविलियन के फैसले में ऐसे परिवारों के बारे में विचार नहीं किया गया। नहीं तो सरकार इनकी योग्यता के अनुसार रिक्त शासकीय पदों पर जरुर अनुकंपा नियुक्ति दे सकती थी।
वेब डेस्क, IBC24
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