मध्यप्रदेश के खास पर्यटन स्थल

मध्यप्रदेश के खास पर्यटन स्थल

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  • Publish Date - July 29, 2018 / 01:04 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 04:54 AM IST

मध्यप्रदेश भारत का सबसे विशाल राज्य है, जो देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 10 प्रतिशत, यानी 3,08,252 वर्ग किमी से भी अधिक भू-भाग में फैला हुआ है। यहाँ के हर शहर में देखने लायक पर्यटन स्थल है।आइये जानते हैं मध्यप्रदेश के खास  पर्यटन स्थलों के बारे में।

भोपाल

भोपाल शहर मध्यप्रदेश की राजधानी है | यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य, एतिहासिकता तथा आधुनिकता का एक अनुपम सामांजस्य दृष्टिगत होता है | 11 वीं सदी में परमार राजा भोज ने भोजपाल नगरी बसाई थी | भोजपाल का ही बिगड़ा हुआ रूप बाद में भोपाल कहलाया | इस नगर को अफगानी सैनिक दोस्त मोहम्मद ने 18 वीं सदी में पुन: बसाया था | भोपाल नगर 2 झीलों के आसपास बना हुआ है | 19वीं  और 20 वीं सदी में यहां प्राय: बेगमों ने हुकूमत चलाई थी | इसमें से एक शाहजहां बेगम नारी मुक्ति आंदोलन के लिये प्रसिद्ध थी |

उज्जैन

इस नगर का उल्लेख उपनिषदों तथा पुराणों में भी मिलता है | इसका प्राचीन काल से ही अस्तित्व है | प्राचीन काल में उज्जैन अवंती राज्य(महाजनपद) की राजधानी थी | उस काल में ही स्थान ने नगर का रुप ले लिया था | शकों का दमन करने वाले महाराज विक्रमादित्य की राजधानी भी यही नगरी थी | 10वीं सदी में परमार राजपूतों ने उज्जैन को राजधानी बनाया था, लेकिन बाद में अपनी राजधानी को पहले धार और उसके बाद मांडू में स्थानांतरित कर दिया |प्राचीनकाल में यह नगर राज्यों की राजधानी के रूप में रहा, लेकिन सल्तनत और मुगल काल में इस नगर को किसी राज्य की राजधानी के रूप में रहा, लेकिन सल्तनत और मुगल काल में यह नगर को किसी राज्य को राजधानी बनाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ | अकबर के समय में उज्जैन मालवा प्रांत (सूबा) का एक जिला था | इस काल में उज्जैन भारत के प्रमुख शहरों में से एक था | 18 वीं सदी में इस नगर पर पहले मराठों, उसके बाद होल्कर वंश के शासकों का शासन रहा | इसके उपरांत 1818 ई. में यह नगर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया | कंपनी ने इसे जिला मुख्यालय बना दिया | उज्जैन में ही कमिश्नरी का मुख्यालय भी है | 

सागर

इस नगर का नामकरण प्रसिद्ध हिंदी शब्द ‘सागर’ के आधार पर किया गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ सरोवर अथवा समुद्र है | इसका स्पष्ट कारण यह है कि इस नगर का निर्माण एक विशाल सरोवर के चारों ओर किया गया है | यह सरोवर, जिसका क्षेत्रफल लगभग 1 वर्ग किलोमीटर है, किसी जमाने में बहुत सुंदर रहा होगा | सागर नगर का इतिहास सन् 1660 ई. से प्रारंभ होता है | निहालशाह के वंशज उदयन शाह ने जहां वर्तमान किला स्थित है, उसी स्थल पर एक छोटे किले का निर्माण कराया था और उसी के पास परकोटा नामक एक गांव बसाया था, जोकि अब नगर का एक भाग है | वर्तमान किला और किले की दीवारों के अंदर एक बस्ती का निर्माण पेशवा के एक अधिकारी गोविंद राव पंडित ने कराया था |

रायसेन

इस नगर की नीति भीम राय सिंह भरतपुर रियासत अली में रखी गई थी इस नगर का नाम सवाया के नाम पर रायसेन पड़ा रायसेन का बरसात प्राचीन काल में भी हो जहां पर छठी सदी में एक दुर्ग का निर्माण हो चुका है | अकबर के समय में रायसेन एक सरकार (जिला) था, जो उज्जैन सूबे (राज्य) का भाग था, लेकिन आधुनिक जिले का निर्माण 5 मई, 1950 को किया गया था |

नरसिंहपुर

नरसिंहपुर नगर का नाम नरसिंहजी के मंदिर के कारण पड़ा है | जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान नरसिंह, सिंह के सिर वाले मानव अवतार है | सन् 1782 ई. के पश्चात एक जाट लुटेरा ग्राम चंवर पाठा मराठों के अधिकार वाले एक परगने को छोड़कर जिले के वर्तमान नरसिंहपुर में आ बसा | उस समय यहां एक छोटा सा गांव था, जो गरड़ीया खेड़ा कहलाता था | बाद में यह छोटा गाडरवाड़ा कहलाने लगा | उसने दिल्हेरी और पिथेरा के जागीरदारों को लूटा और इस स्थान पर लूट की सामग्री से एक महल और नरसिंहजी का मंदिर बनवाया और इस मंदिर के नाम पर गांव का नाम नरसिंहपुर रखा | उस समय तक यह जिला नरसिंहपुर शाहपुर कहा जाता था तथा पुराने परगने का मुख्यालय था |

जबलपुर

जबलपुर की उत्पति के अनेकों मत में से एक मत यह भी है कि कलचुरी राजाओं की राजधानी त्रिपुरी के पास स्थित होने के कारण इस नगर का नाम जबलपुर पड़ा | कलचुरी राजवंश के दो शिलालेखों में जाउली पट्टल नामक ग्राम के दान का उल्लेख है और यह धारणा है कि जबलपुर उसका सहज अपभ्रंश है | रायबहादुर हीरालाल ने भी अपना मत व्यक्त करते हुये कहा है कि इस स्थान का नाम एक ब्राहमण साधु जावली के नाम पर पड़ा था | यह भी कहा जाता है कि यह नाम अरबी शब्द जबल से लिया गया है, जिसका अर्थ पहाड़ी या पहाड़ होता है, क्योंकि नगर का आंशिक भाग पहाड़ी है |

इंदौर

इस शहर का प्रारंभिक नाम इंदूर था, जोकि इंद्रपुर अथवा इंद्रेश्वर का अपभ्रंश रूप है | यह नाम इस नगर को स्थान पर स्थित भुतपूर्ण गांव का नाम था | इंद्रेश्वर का मंदिर, जिसके कारण गांव का यह नाम रखा गया था, अभी भी शहर के मध्य जूनी इंदौर में स्थित है | इस गांव का ही विकास शहर के रूप में हुआ, जो लगभग 1661 ई. में बसाया गया था तथा मूलत: इंद्रपुर कहलाता था | इंदौर को 1720 ई. में  परगना मुख्यालय बना दिया गया गया था | मल्हार राव प्रथम ने सैनिक महत्व की दृष्टि से इस नगर को पसंद किया तथा अपने नाम पर इसका नाम रखा | 1730 ई. में इंदौर को जिला मुख्यालय बना दिया गया था |

ग्वालियर

इस शहर का यह नाम समतल शिखर युक्त पहाड़ी पर निर्मित ऐतिहासिक दुर्ग के नाम पर पड़ा | जिस पहाड़ी पर यह किला बना हुआ है, मुख्य: ‘गोपाचल’ ‘गोपगिरी’ ‘गोपर्वत’ या ‘गोपाद्री’ कहा जाता था | ग्वालियर की स्थापना मालवा की मालचंद द्वारा की गई थी | सर्वमान्य मत के अनुसार कुंतलपूरी या कुटवार के राजा सूरजसेन नामक एक कछवाहा प्रधान सामंत द्वारा स्थापित करवाया गया था |ग्वालियर राज्य का संघटन सर्वप्रथम सर दिनकर राव (1852-59)द्वारा किया गया था, जिन्होंने इसे प्रांतों जिलों तथा परगनों में विभाजित किया था | भूतपूर्व ग्वालियर राजा में एक प्रशासनीय इकाई के रूप में जिले का उदभव सन् 1853 ई. में हुआ था |

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