सांप्रदायिक उन्माद के दौर में कबीर की गंगा- जमुनी तहजीब को मजबूत करने की जरूरत : कला मर्मज्ञ

सांप्रदायिक उन्माद के दौर में कबीर की गंगा- जमुनी तहजीब को मजबूत करने की जरूरत : कला मर्मज्ञ

सांप्रदायिक उन्माद के दौर में कबीर की गंगा- जमुनी तहजीब को मजबूत करने की जरूरत : कला मर्मज्ञ
Modified Date: December 26, 2025 / 03:43 pm IST
Published Date: December 26, 2025 3:43 pm IST

(नरेश कौशिक)

वाराणसी, 26 दिसंबर(भाषा) समाज में बढ़ते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीच 15वीं सदी के रहस्यवादी कवि और निर्गुण साधक कबीर के दर्शन से जुड़े कलाकारों, गायकों और विद्वानों का कहना है कि मौजूदा दौर में कबीर की गंगा जमुनी तहजीब को मजबूत करने की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है।

पिछले 20 वर्षों से वाराणसी के मूलगढ़ी आश्रम स्थित कबीरचौरा मठ में कबीर के दर्शन को अपने जीवन में उतारने वाले उमेश कबीर का कहना था, ‘‘समाज में जातिवाद हावी है। आज एक कबीर से काम नहीं चलेगा। हर गांव, हर कस्बे में बल्कि हर घर में एक कबीर की जरूरत है।’’

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कम उम्र से ही उमेश आध्यात्मिकता के प्रति आकर्षित थे और ज्ञान की पिपासा में वह इलाहाबाद स्थित अपना घर छोड़कर कबीर आश्रम में आ बसे। उन्होंने यहां कबीर के दर्शन का अध्ययन करते हुए कम्प्यूटर और विधि विज्ञान में उच्च शिक्षा भी हासिल की है।

मौजूदा समय में कबीर की प्रासंगिकता संबंधी सवाल पर देश के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों और विश्वविद्यालयों में कबीर दर्शन पर व्याख्यान देने वाले उमेश कबीर का कहना था कि सामाजिक विभाजन गहरा हुआ है और इसी के चलते कबीर आज और ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं।

पिछले दिनों यहां नौंवें महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल में शिरकत करने के लिए आयीं कई अन्य हस्तियों की भी यही राय थी।

‘कबीरा कुआं एक है, पनहारिनी अनेक,

सबके घड़वे अलग अलग, सब में पाणी एक’…. फेस्टिवल में इस भजन को प्रस्तुत करने वाले राजस्थान के जैसलमेर के लोक एवं भक्ति गायक महेशा राम का भी कहना था,‘‘आज कबीर की बहुत जरूरत है। जब सत्संग के भाव भीतर से आते हैं तो आप कबीरमय हो जाते हैं। इसलिए सामाजिक सद्भाव को कायम रखने की खातिर हमें ऐसे ही सत्संग की जरूरत है।’’

कबीर, नारायणदास और अन्य भक्ति कवियों की रचनाओं को लोक वाद्य यंत्रों के साथ सुरों में ढालने वाले महेशा राम मेघवाल समुदाय से आते हैं जो राजस्थान के गांवों और रेगिस्तानी धोरों में रात रात भर कबीर के भजन गाते हैं।

अवधी, कन्नौजी, भोजपुरी, बुंदेली, बनारसी और ब्रज बोली में कबीर के भजनों को गाने वाली ढोलक रानी ग्रुप की शिवांगिनी येशु युवराज कहती हैं कि कबीर निर्गुण कवि ही नहीं थे बल्कि जुलाहे भी थे जिनके करघे पर हर धागा एक सवाल था, और हर बुनाई, एक जवाब।

उन्होंने कबीरा उत्सव के दौरान ‘भाषा’ से बातचीत में कहा,‘‘कबीर ने हर धर्म की बुराइयों पर सवाल उठाया, व्यवस्था पर सवाल उठाया… कबीर हमें सवाल उठाना सिखाते हैं, और आज इसलिए भी कबीर की जरूरत है ताकि समाज सवाल कर सके।’’

अमेरिका के लास एंजिलिस में पैदा हुए और पले बढ़े आदित्य प्रकाश कर्नाटक संगीत में जैज, रॉक संगीत और लोक गायिकी के साथ ही शास्त्रीय संगीत के संयोजन से कबीर के भजनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया कलेवर दे रहे हैं।

बनारस के शिवाला घाट पर प्रस्तुति देने के बाद उन्होंने कबीर की प्रासंगिकता पर कहा, ‘‘कबीर समाज को विभाजित करने वाले तत्वों का उपहास उड़ाते हैं, समाज से जवाबदेही मांगते हैं… कबीर एक ताकत हैं और इसीलिए हमें आज कबीर की बहुत जरूरत है।’’

उन्होंने कहा,‘‘ कबीर समय, काल और भूगोल की सीमाओं से परे हैं और सर्वकालिक हैं। आज समाज को नींद से जगाने के लिए कबीर के दर्शन की जरूरत है।’’

कबीर की धरती पर उनके भजन गाने के अपने अनुभव को साझा करते हुए आदित्य प्रकाश ने कहा,‘‘ यहां कबीर हुए, तुलसी हुए…यहां एक विशेष प्रकार की ऊर्जा महसूस होती है। आप भोंसले घाट पर स्थित गुलेरिया कोठी के घाट और दशाश्वमेघ घाट पर गंगा आरती देखते हैं तो मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताएं नजर आती हैं।’’

उन्होंने कहा,‘‘ये सब देखकर कबीर का भजन ‘उड़ जाएगा हंस अकेला….’ याद आता है और जीवन की निसंगता में संगति को अर्थ देने का भाव पैदा होता है।’’ आदित्य ने एमकेएफ में भी कबीर का यह भजन गया था जिस पर युवाओं की भारी भीड़ को झूमते देखा गया।

आदित्य प्रकाश ने कहा कि इसीलिए कबीर की न केवल आज के दौर में बल्कि इंसानियत को बचाए रखने के लिए हर दौर में जरूरत होगी।

एमकेएफ में उत्तराखंड के रहमत ए नुसरत ग्रुप ने सर्वजीत टम्टा की अगुवाई में कबीर के भजन ‘भला हुई मेरी गगरी फूटी…’ को कव्वाली शैली में गाया।

शास्त्रीय गायक राहुल देशपांडे, सितार वादक हिदायत हुसैन खान और कबीर पर ‘अकथ कहानी प्रेम की: कबीर और उनका समय’ किताब लिखने वाले हिंदी के प्रमुख आलोचक, कवि, चिन्तक और कथाकार पुरुषोत्तम अग्रवाल ने भी कबीर के दर्शन पर रौशनी डाली।

एमकेएफ संत कबीर की शिक्षाओं और दर्शन को संगीत, कला और साहित्य के माध्यम से मनाने वाला एक वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव है, जो आमतौर पर दिसंबर में गंगा घाटों पर आयोजित होता है जिसमें शास्त्रीय और फ्यूजन संगीत, काव्य पाठ और आध्यात्मिक चर्चाएं होती हैं।

कबीर दास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी निर्गुण कवि और संत थे जिनका जन्म 1398 में काशी में हुआ था।

भाषा नरेश नरेश मनीषा

मनीषा


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