सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर किशोरों पर प्रतिबंध से युवाओं के राजनीतिक ज्ञान पर विपरीत असर पड़ेगा

सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर किशोरों पर प्रतिबंध से युवाओं के राजनीतिक ज्ञान पर विपरीत असर पड़ेगा

सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर किशोरों पर प्रतिबंध से युवाओं के राजनीतिक ज्ञान पर विपरीत असर पड़ेगा
Modified Date: December 8, 2025 / 05:42 pm IST
Published Date: December 8, 2025 5:42 pm IST

(जारेह गजेरियन, मोनाश विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, आठ दिसंबर (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया में इस सप्ताह से 16 साल से कम उम्र के बच्चे ढेरों सोशल मीडिया मंच पर अपने खाते का उपयोग नहीं कर पाएंगे। प्रतिबंध लागू होने से पहले ही कई सोशल मीडिया कंपनियों ने ऐसे खाते बंद करना शुरू कर दिए हैं, जिनके बारे में उन्हें शक है कि वे 16 साल से कम उम्र के बच्चों के हैं।

हालांकि, इस प्रतिबंध का उद्देश्य युवाओं को ऑनलाइन खतरों से बचाना है, लेकिन इससे उनके राजनीतिक ज्ञान के विकास पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है।

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देश में पहले से ही बच्चों को कानून, अधिकारों और जिम्मेदारियों (नागरिक शिक्षा) की पर्याप्त जानकारी नहीं है। ऐसे में यह प्रतिबंध लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकता है।

राजनीतिक ज्ञान का महत्व

राजनीतिक बहसों में सहभागिता और राजनीतिक व्यवस्था की समझ को अक्सर राजनीतिक ज्ञान का अहम लक्षण माना जाता है।

युवाओं में यह समझ बढ़ाने और उन्हें जीवन भर “सक्रिय और जागरूक नागरिक” बनाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकारों ने स्कूलों में नागरिक शिक्षा और नागरिकता कार्यक्रम शुरू किए हैं।

लेकिन ऑस्ट्रेलिया की संघीय व्यवस्था इन कोशिशों में रुकावट पैदा करती हैं। अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में नागरिक शिक्षा पढ़ाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। कितना समय इस विषय को दिया जाता है, वह भी अलग-अलग है। पढ़ाने के तरीकों में भी राज्यों के अंदर और एक राज्य से दूसरे राज्यों के बीच काफी अंतर है।

देश में 2004 से हर तीन साल में राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा होती है, जिसमें यह देखा जाता है कि बच्चे लोकतंत्र और नागरिकता से जुड़े विषयों को कितना समझते हैं।

नवीनतम परिणामों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। कक्षा छठी के केवल 43 प्रतिशत बच्चे ही दक्षता के लिहाज से “मानक स्तर” हासिल कर पाए। यह पहली बार हुआ है कि यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से कम रहा।

कक्षा 10 में तो हाल और खराब है- केवल 28 प्रतिशत छात्र ही दक्षता के लिहाज से “मानक स्तर” तक पहुंच पाए। अगर छात्र कानूनी अध्ययन जैसे कोई खास वैकल्पिक विषय नहीं चुनते, तो हो सकता है कि वे कभी भी लोकतंत्र और एक नागरिक के अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में न पढ़ पाएं।

जब तक छात्र 12वीं पूरी करते हैं, वे वोट देने की उम्र में पहुंच चुके होते हैं या उसके करीब पहुंच जाते हैं। ऐसे में उनकी नागरिक शास्त्र विषय में खराब समझ चिंता का विषय है। सोशल मीडिया प्रतिबंध इसे और बिगाड़ सकता है।

शिक्षकों के अनुभव और चुनौतियां

भले ही सरकारें युवाओं में राजनीतिक ज्ञान बढ़ाने की कोशिश कर रही हों, लेकिन वास्तविक जिम्मेदारी शिक्षकों पर है।

‘ई.जी. व्हिटलैम रिसर्च फेलोशिप’ के तहत न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड के शिक्षकों से बातचीत में सामने आया कि युवाओं तक राजनीतिक जानकारी पहुंचाने में सोशल मीडिया उनकी काफी मदद करता है।

एक शिक्षक ने कहा, “छात्र सोशल मीडिया पर देखकर अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। मुझे अच्छा लगता है जब वे कक्षा में आकर चर्चा करते हैं और अपनी राय बताते हैं। यह बहुत अच्छा है।”

एक अन्य शिक्षक ने कहा, “राजनीति से जुड़े सवालों पर छात्रों को अक्सर पता नहीं होता कि वे किससे पूछें, इसलिए वे जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर रहते हैं।”

शिक्षकों को अधिक समर्थन देने की जरूरत

अब जब सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लागू हो रहा है, तो छात्रों को राजनीतिक जानकारी के नए स्रोत ढूंढने होंगे। यह मौका है कि शिक्षक प्रशिक्षण और संसाधनों को बेहतर बनाया जाए।

कई शिक्षकों ने बताया कि उन्हें नागरिक शास्त्र या राजनीतिक शिक्षा पर कोई विशेष प्रशिक्षण याद नहीं। कई का कहना था कि उन्हें इस विषय को आत्मविश्वास के साथ पढ़ाने के लिए अतिरिक्त संसाधनों और सहयोग की जरूरत है।

संसद की रिपोर्ट में भी शिक्षकों के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराने की सिफारिश की गई है। अब जरूरी है कि इस दिशा में त्वरित कदम उठाए जाएं।

क्योंकि युवाओं की ऑनलाइन राजनीतिक दुनिया अब लगभग खत्म होने जा रही है, ऐसे में यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि शिक्षकों में प्रभावी, सुलभ, व्यावसायिक विकास एवं सहायक संसाधनों के माध्यम से युवाओं को शिक्षित करने की क्षमता और आत्मविश्वास हो।

(द कन्वरसेशन) खारी संतोष

संतोष

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