क्रिसमस पर बच्चों की उपहार अपेक्षाओं से कैसे निपटें

क्रिसमस पर बच्चों की उपहार अपेक्षाओं से कैसे निपटें

क्रिसमस पर बच्चों की उपहार अपेक्षाओं से कैसे निपटें
Modified Date: December 24, 2025 / 11:34 am IST
Published Date: December 24, 2025 11:34 am IST

(एलिजाबेथ वेस्ट्रप – देकिन यूनिवर्सिटी, क्रिस्टियाने केहो – द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न)

मेलबर्न, 24 दिसंबर (द कन्वरसेशन) ऐसे त्योहारों में भावनाएं अक्सर उद्वेलित होती हैं जिनमें उपहार देने की परंपरा है। तोहफे खोलने का उत्साह अक्सर तीव्र अपेक्षाओं और कभी-कभी निराशा से जुड़ा रहता है।

एक यादगार दिन बनाने में समय, सोच और पैसे लगाने के बाद, बच्चे की नकारात्मक प्रतिक्रिया माता-पिता को आहत या निराश कर सकती है। यदि उपहार किसी रिश्तेदार या मित्र का हो, तो बच्चे की भावना समझने और देने वाले को आहत न करने के बीच असहजता भी पैदा होती है।

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ऐसे में माता-पिता को लग सकता है कि कहीं उन्होंने कृतज्ञता सिखाने में कमी तो नहीं की, या बच्चा ‘बिगड़ा’ तो नहीं है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो, निराशा बच्चों के भावनात्मक विकास का सामान्य हिस्सा है और यह जुड़ाव व सीख का अवसर भी बन सकती है।

—- अपेक्षाएं इतनी ज्यादा क्यों होती हैं —-

खास मौकों पर खुशी, उत्साह और तुलना—सब कुछ बढ़ जाता है। विज्ञापनों और दोस्तों की बातचीत से बच्चों की इच्छाएं और तीव्र हो जाती हैं। यह केवल भौतिकवाद का मामला नहीं है। बचपन और मध्य बाल्यावस्था में बच्चे अपनी पहचान गढ़ते हैं कि वे कौन हैं, क्या पसंद करते हैं और कहां फिट होते हैं। किसी खास खिलौने, कपड़े या ब्रांड का प्रतीकात्मक अर्थ हो सकता है। जब यह इच्छा पूरी नहीं होती, तो ‘छूट जाने’ की भावना ‘अलग-थलग’ होने जैसी महसूस हो सकती है।

उपहार की अपेक्षा पूरी न होने पर डोपामिन हार्मोन का स्तर घटता है और निराशा पैदा होती है। यह प्रक्रिया आत्म-नियंत्रण सीखने का सामान्य हिस्सा है, जो बच्चों को यथार्थवादी बनना और जीवन की निराशाओं से निपटना सिखाती है।

—- बड़े दिन से पहले बात करें —-

समय रहते, सहज बातचीत मददगार होती है। इससे माता-पिता यह समझ पाते हैं कि अपेक्षाएं सहकर्मी दबाव, विज्ञापनों या ट्रेंड से तो नहीं बन रहीं—जो उम्र या पारिवारिक मूल्यों से मेल न खाती हों। जैसे, उम्र के लिहाज़ से अनुपयुक्त वीडियो गेम या प्री-स्कूल के बच्चे का अचानक मेकअप चाहना। निराशा का इंतज़ार करने के बजाय पहले चर्चा बेहतर है।

ये बातचीत पारिवारिक मूल्यों, पैसे और समय के उपयोग तथा घर में बचपन की समझ साझा करने का अवसर देती है। कुछ परिवार उपहारों के लिए स्पष्ट ढांचा तय करते हैं—जैसे ‘चार उपहार नियम’: एक मनपसंद, एक ज़रूरत का, पहनने का एक और पढ़ने का एक।

बातचीत में गर्मजोशी और जिज्ञासा रखें, निर्णयात्मक न हों—इस साल तुम क्या उम्मीद कर रहे हो? क्या यथार्थवादी हो सकता है? बड़ी उम्मीदें पूरी न हों तो कैसा लगेगा?

—- जब निराशा सामने आए —-

निराशा से निपटना बच्चों के लिए कठिन होता है। ऐसी स्थिति में ‘कृतज्ञ होना चाहिए’ जैसी फटकार से बचें। पहले भावनाएं व्यक्त होने दें-उदासी में हम दूसरों के बारे में नहीं सोच पाते। कहा जा सकता है: ‘‘तुम उस साइकिल की बहुत उम्मीद कर रहे थे’’; लेकिन जब ऐसा नहीं होता तो मुश्किल लगता है।

भावनाओं को मान्यता देने से बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं और कठिन भावनाएं सहने की क्षमता विकसित होती है। हालांकि निराश होना ठीक है, बदतमीज़ी या गुस्सा निकालना नहीं। शांत होने पर विनम्रतापूर्वक बात करें—हम अपनी भावनां दूसरों को चोट पहुंचाए बिना कैसे दिखा सकते हैं?

—- समय के साथ कृतज्ञता विकसित करें —-

कृतज्ञता जबरन नहीं सिखाई जा सकती। यह जुड़ाव और अनुभवों से पनपती है। छोटे-छोटे प्रयासों को ध्यान दे कर उदाहरण पेश करें—जैसे किसी ने पसंदीदा रंग में उपहार लपेटा हो।

परिवार के साथ समय की सराहना करें और साझा पलों की खुशी पर ज़ोर दें। बच्चों को दूसरों के लिए उपहार चुनने, लपेटने या सरप्राइज़ की योजना बनाने में शामिल करें। ‘देने वाले’ की भूमिका निभाने से सहानुभूति बढ़ती है और उपहार चुनने में लगने वाली सोच व मेहनत की समझ विकसित होती है।

( द कन्वरसेशन ) मनीषा शोभना

शोभना


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