भारत तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एशिया में लोकतंत्र के लिए ‘आदर्श’ : कांग्रेस नेता सिंघवी

भारत तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एशिया में लोकतंत्र के लिए ‘आदर्श’ : कांग्रेस नेता सिंघवी

भारत तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एशिया में लोकतंत्र के लिए ‘आदर्श’ : कांग्रेस नेता सिंघवी
Modified Date: June 24, 2025 / 07:36 pm IST
Published Date: June 24, 2025 7:36 pm IST

तोक्यो, 24 जून (भाषा) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने मंगलवार को कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत एशिया में लोकतंत्र और विकास के लिए ‘आदर्श’ के रूप में उभरा है।

यहां संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (यूएनयू) में भारतीय लोकतंत्र पर मुख्य व्याख्यान देते हुए चार बार के सांसद और प्रख्यात विधिवेत्ता सिंघवी ने कहा कि सच्चा विकास सकल घरेलू उत्पाद से नहीं बल्कि सम्मान से शुरू होता है और यदि यह सबसे कमजोर लोगों को पीछे छोड़ देता है तो इसे विकास नहीं कहा जा सकता।

सिंघवी ने भारत की लोकतांत्रिक यात्रा की सशक्त अभिव्यक्ति की तथा साम्राज्यवाद-विरोधी राष्ट्रों के बीच विश्व के सबसे बड़े तथा सर्वाधिक स्थायी लोकतंत्र के रूप में इसकी स्थिति को भी रेखांकित किया।

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उन्होंने भारत के जीवंत लोकतंत्र की तुलना अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के कई देशों के सामने मौजूद संवैधानिक चुनौतियों से करते हुए भारत के लचीलेपन, बहुलवाद और इसकी संस्थाओं की संरचनात्मक मजबूती को रेखांकित किया।

सिंघवी को कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। उन्होंने यूएनयू के रेक्टर प्रोफेसर शिलिद्जी मारवाला द्वारा संचालित सत्र में उपस्थित प्रतिष्ठित लोगों को संबोधित किया। शिलिद्जी मारवाला जोहानिसबर्ग विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा विल्सन कॉलेज और सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज में शोधकर्ता रह चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय का मुख्यालय तोक्यो में है तथा इसके कई वैश्विक परिसर हैं। इसके परिसर 13 देशों में हैं।

सिंघवी ने अपने संबोधन में कहा,‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत एशिया में लोकतंत्र और विकास के लिए एक आदर्श रहा है। तब भी जब उसके सामने बहुत बड़ी और गंभीर चुनौतियां थीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा माना जाता है कि सच्चा विकास जीडीपी से नहीं बल्कि सम्मान से शुरू होता है। इसकी सामाजिक प्रतिबद्धता इस आधार पर आगे बढ़ती है कि समानता के बिना यह कहीं नहीं जाता। अगर यह सबसे कमजोर को पीछे छोड़ देता है तो इसे विकास नहीं कहा जा सकता। डिजिटल इंडिया अपने हितधारकों के बीच संवाद और बाहरी लोगों और दूसरे देशों के बिना संवाद में विश्वास करता है।’’

भाषा धीरज माधव

माधव


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