(अदिति खन्ना)
लंदन, 11 दिसंबर (भाषा) ब्रिटेन के प्रमुख दलों को भारतीय मूल के नागरिकों के मतों को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि राजनीतिक रूप से विभाजित ये मतदाता बहुत तेजी से धुर दक्षिणपंथी दलों और वामपंथी दलों दोनों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस सप्ताह जारी ‘ब्रिटिश भारतीय जनगणना 2025’ में यह जानकारी सामने आई है।
थिंक टैंक ‘1928 इंस्टीट्यूट’ द्वारा किए गए इस शोध के नतीजों को मंगलवार को लंदन में हाउस ऑफ कॉमन्स की एक समिति के कक्ष में जारी किया गया।
शोध में पाया गया कि आप्रवासन विरोधी ‘रिफॉर्म यूके’ के लिए भारतीय प्रवासी समुदाय का समर्थन तीन गुना बढ़ गया है। वहीं जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित ‘ग्रीन पार्टी’ का समर्थन करने वाले युवा मतदाताओं की संख्या में भी इसी तरह की वृद्धि देखी गयी है।
हालांकि सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के लिए ब्रिटिश भारतीयों का समर्थन अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है लेकिन इस समर्थन में 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है।
इस बीच, विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी को 2019 से 12 प्रतिशत का नुकसान हुआ है जबकि लिबरल डेमोक्रेट्स को समुदाय में लगभग नौ प्रतिशत समर्थन प्राप्त है और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है।
‘1928 इंस्टीट्यूट’ की सह-अध्यक्ष और सह-संस्थापक किरण कौर मंकू ने कहा, “भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिकों के बीच राजनीतिक समर्थन में लगातार अस्थिरता बनी हुई है। पिछले एक साल में ‘रिफॉर्म यूके’ पार्टी के समर्थन में तीन गुना वृद्धि हुई है और यह समर्थन 13 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो अब ‘ग्रीन पार्टी’ के बराबर है जबकि लेबर पार्टी के समर्थन में इसी अवधि में 13 प्रतिशत की गिरावट आई है।”
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की शोधकर्ता ने नीति निर्माताओं को आगाह किया कि वे इस समुदाय को हल्के में न लें क्योंकि यह समुदाय ‘राजनीतिक निष्ठा से विमुख हो गया है’ और अपने राजनेताओं को कार्यों को पूरा करते हुए देखना चाहता है। उन्होंने कहा, “पुराने, लंबे समय से ब्रिटेन में बसे और कामकाजी मध्यमवर्गीय भारतीय ‘रिफॉर्म यूके’ पार्टी की ओर आकर्षित हो रहे हैं जबकि युवा व हाल ही में ब्रिटेन में बसे लोग ‘ग्रीन पार्टी’ की ओर रुख कर रहे हैं। यह एक ऐसे समुदाय को दर्शाता है, जो तेजी से आलोचनात्मक होता जा रहा है और निष्ठा के बजाय प्रदर्शन के आधार पर मतदान कर रहा है।”
किरण ने कहा, “उनकी प्राथमिकताएं जीवन यापन में बढ़ती चुनौतियों और सार्वजनिक सेवाओं के मूलभूत तत्वों के प्रति राष्ट्रीय चिंताओं को दर्शाती हैं।”
भाषा जितेंद्र मनीषा
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