क्या ब्रिटेन में नस्लवादी होना सामाजिक रूप से स्वीकार्य होता जा रहा?

क्या ब्रिटेन में नस्लवादी होना सामाजिक रूप से स्वीकार्य होता जा रहा?

क्या ब्रिटेन में नस्लवादी होना सामाजिक रूप से स्वीकार्य होता जा रहा?
Modified Date: November 22, 2025 / 06:01 pm IST
Published Date: November 22, 2025 6:01 pm IST

(साइमन गुडमैन, डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी; और राहुल संबराजू, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग)

लंदन, 22 नवंबर (द कन्वरसेशन) ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर ने निगेल फराज से ‘रिफॉर्म यूके’ में नस्लवाद के आरोपों, स्कूल के दौरान यहूदी-विरोधी, विदेशियों के प्रति घृणित टिप्पणियों और बदसलूकी के आरोपों पर जवाब देने को कहा है। हालांकि, फराज ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है।

फराज पर आरोप लगने से कुछ हफ्ते पहले ही ‘रिफॉर्म यूके’ की सांसद सारा पोचिन पर भी नस्लवाद के आरोप लगे थे। उन्होंने एक बयान में कहा था, “मुझे ऐसे विज्ञापन देखकर बहुत गुस्सा आता है जिनमें केवल अश्वेत और एशियाई लोग दिखाई देते हैं।”

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फराज ने कहा कि पोचिन की टिप्पणियां “भद्दी” थीं, लेकिन उन्हें नस्लवादी नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह कहते हुए स्पष्टीकरण दिया, “अगर मुझे लगता कि उनका इरादा नस्लवादी है, तो अब तक मैं बहुत सख्त कार्रवाई कर चुका होता। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता।”

फराज का यह बयान बताता है कि आज भी “नस्लवादी” कहलाना समाज में एक बड़ा कलंक माना जाता है। लेकिन क्या अब यह कमजोर पड़ रहा है? नस्लवाद के सामाजिक मनोविज्ञान का अध्ययन करने वाले विद्वान होने के नाते मेरा मानना है कि हां-अब लोग इसे पहले जितना गंभीर नहीं मानते।

हाल के एक साक्षात्कार में स्वास्थ्य मंत्री वेस स्ट्रीटिंग ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों को बढ़ते नस्लवाद का सामना करना पड़ रहा है और यह स्थिति 1970 और 80 के दशक के ब्रिटेन जैसे “घिनौने” नस्लवाद की याद दिलाती है।

स्ट्रीटिंग ने दावा किया कि अब “नस्लवादी होना सामाजिक रूप से स्वीकार्य” जैसा हो गया है। घृणा अपराध के आंकड़े और अन्य रिपोर्टें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि नस्लवाद व्यापक रूप से फैल रहा है।

समाचारों में लोगों के बयान भी बताते हैं कि आज का माहौल फिर से उसी दौर जैसा होता जा रहा है, जब नस्लवाद बेहद खुला और हिंसक रूप में सामने आता था।

प्रवासी-विरोधी रुख

कई शोध बताते हैं कि आव्रजन पर रोक लगाने की बातें अक्सर पक्षपातपूर्ण या नस्ली दृष्टिकोण से प्रेरित होती हैं। ब्रिटेन के इतिहास में प्रवासन सीमित करने की मांगें अक्सर यहूदी, अश्वेत या पूर्वी यूरोप के लोगों जैसे विशिष्ट जातीय या नस्ली समूहों को बाहर रखने की इच्छा से जुड़ी रही हैं।

हालांकि, भेदभाव के खिलाफ सामाजिक दबाव की वजह से लोग आमतौर पर प्रवासियों के बारे में खुलेआम अपमानजनक बातें नहीं कहते—जैसे उन्हें अनैतिक, आलसी या स्थानीय लोगों से कमतर बताना। लेकिन अब कुछ प्रभावशाली लोग और उनके समर्थक ऐसे बयानों में पहले से अधिक सहज दिख रहे हैं।

वर्ष 2011 में शोधार्थी फ्रैंक रीव्स ने ‘कॉमनवेल्थ इमिग्रेंट्स एक्ट 1962’ के संदर्भ में ब्रिटिश संसद में नस्लवाद से जुड़े विमर्श का अध्ययन किया। उनके शोध से पता चलता है कि सांसद प्रवासियों पर रोक की मांग तो करते थे, लेकिन वे कभी खुलकर यह नहीं कहते थे कि “श्वेत लोग श्रेष्ठ हैं।” इसके बजाय वे यह तर्क देते थे कि “अश्वेत और स्थानीय (श्वेत) आबादी के बीच रिश्ते खराब हो रहे हैं,” इसलिए प्रवासन सीमित करना जरूरी है।

इसी तरह की बातें ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संसदों में भी देखी गई हैं, जहां प्रवासन नियंत्रण की मांग अक्सर ऐसे शब्दों में की जाती है, जिनमें नस्लवाद सीधे तौर पर नहीं कहा जाता, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसे स्वीकार किया जाता है।

कमजोर पड़ते सामाजिक नियम

मौजूदा हालात बताते हैं कि अब यह स्थिति तेजी से बदल रही है। ब्रिटेन में प्रवासियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन यह दिखाते हैं कि अब प्रवासियों और शरणार्थियों को सीधे तौर पर अपमानित किया जा रहा है, और यह आलोचना अक्सर नस्लवादी, धार्मिक या जातीय-राष्ट्रवादी विचारों से प्रेरित होती है।

पिछले कुछ महीनों में दुनिया भर में गैर-श्वेत लोगों के खिलाफ प्रवासी-विरोधी नस्लवाद खुलकर सामने आया है। आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड में दंगे और नस्लवादी हमले हुए हैं। ब्रिटेन में भी मस्जिदों और प्रवासियों की संपत्ति पर हमले होते रहे हैं—जो अब कोई नई बात नहीं रह गई है।

सितंबर 2025 में ब्रिटेन में अब तक का सबसे बड़ा दक्षिणपंथी मार्च ‘यूनाइट द किंगडम’ निकला। इस रैली में कई वक्ताओं ने खुले तौर पर कहा था कि ब्रिटेन से सभी प्रवासियों और विदेशी लोगों को निकाल देना चाहिए और देश को पूरी तरह एक ईसाई राष्ट्र बना देना चाहिए। ऐसी टिप्पणियों को साफ तौर पर नस्लवादी माना जा सकता है।

(द कन्वरसेशन) खारी देवेंद्र

देवेंद्र


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