(एम जुल्करनैन)
लाहौर, 15 नवंबर (भाषा) पाकिस्तान में न्यायिक संकट शनिवार को और गहरा गया, जब लाहौर उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों के इस्तीफे के बाद पद छोड़ दिया।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एक नया संवैधानिक संशोधन लागू करने के माध्यम से ‘‘संविधान और न्यायपालिका पर हमले’’ का विरोध करते हुए पद से इस्तीफा दे दिया।
संशोधित कानून के तहत, संविधान से संबंधित मामलों से निपटने के लिए एक संघीय संवैधानिक न्यायालय (एफसीसी) की स्थापना की गई, जबकि मौजूदा उच्चतम न्यायालय केवल पारंपरिक दीवानी और फौजदारी मामलों का ही निस्तारण करेगा।
सत्ताइसवें संविधान संशोधन के तहत, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को 2030 तक रक्षा बलों के प्रमुख के रूप में पद पर बने रहने की अनुमति भी मिल जाएगी।
लाहौर उच्च न्यायालय (एलएचसी) के न्यायाधीश शम्स महमूद मिर्ज़ा ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया।
इसके साथ ही, वह विवादास्पद संशोधन के कानून बनने के बाद, किसी भी उच्च न्यायालय से इस्तीफ़ा देने वाले पहले न्यायाधीश बन गए।
न्यायमूर्ति मिर्ज़ा छह मार्च 2028 को सेवानिवृत्त होने वाले थे। वह पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के महासचिव अधिवक्ता सलमान अकरम राजा के करीबी रिश्तेदार हैं।
बृहस्पतिवार को, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा 27वें संशोधन को मंजूरी दिए जाने के कुछ ही घंटों बाद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति अतहर मिनल्ला- ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इस कदम को न्यायपालिका और 1973 के संविधान का अपमान बताया।
न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह ने संशोधन को ‘‘संविधान पर गंभीर हमला’’ बताया और कहा कि 27वें संशोधन ने पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय को तहस-नहस कर दिया, न्यायपालिका को कार्यपालिका के नियंत्रण में ला दिया और हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के मूल पर प्रहार किया।
इस संशोधन के तहत संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना की गई है।
यह संशोधन, अन्य क्षेत्रों में परिवर्तन लाने के अलावा, न्यायपालिका के कामकाज को दो क्षेत्रों में विभाजित कर देता है – संवैधानिक मामले और न्यायाधीशों का स्थानांतरण।
इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जूरिस्ट्स ने 27वें संशोधन के पारित होने को न्यायिक स्वतंत्रता पर एक ‘‘बड़ा हमला’’ करार दिया है।
भाषा सुभाष रंजन
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