यरूशलम, 12 फरवरी (भाषा) कोविड-19 से गंभीर रूप से ग्रस्त अधिकतर लोगों में खुद ही नोवेल कोरोना वायरस से लड़ने के लिये एंटीबॉडी विकसित हो सकते हैं। एक अध्ययन में इस रोग से बचने और इलाज के लिए एंटीबॉडी थेरेपी के उपयोग का समर्थन करते हुए यह बात कही गई है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि विशेष रूप से सार्स-कोव-2 स्पाइक प्रोटीन के रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) पर हमला करने वाले एंटीबॉडी कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिये आवश्यक माने जाते हैं। वायरस मानव कोशिकाओं में प्रवेश के लिये आरडीबी का इस्तेमाल करता है।
इजराइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं समेत एक टीम द्वारा किये गए इस अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 से उबर चुके लोगों में आरडीबी केन्द्रित एंटीबॉडी मिले।
उन्होंने कहा कि संक्रमण से उबर चुके कुछ लोगों में जबरदस्त और लंबे समय तक जारी रहने वाली प्रतिरोधक क्षमता देखने को मिली है जबकि अन्य लोगों में तुलनात्मक रूप से कमजोर एंटीबॉडी मिले।
‘पीएलओएस पैथोजेंस’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में गंभीर रूप से कोविड-19 की चपेट में आए आठ और हल्के लक्षणों वाले 10 व्यक्तियों के वायरस से संक्रमित होने के डेढ़ महीने बाद बी-सेल प्रतिक्रियाओं की तुलना की गई। इसके लिये आणविक और जैव सूचना विज्ञान तकनीकों का इस्तेमाल किया गया।
बी-सेल प्रतिरक्षा प्रणाली आक्रामक रोगजनकों के खिलाफ एंटीजन-केन्द्रित इम्युनोग्लोबुलिन (आईजी) के विकसित होने के लिए जिम्मेदार होती है।
शोध में पाया गया कि बहुत बीमार रोगियों में आरबीडी-विशिष्ट एंटीबॉडी की उच्च सांद्रता मिली है और बी-सेल में वृद्धि हुई है। इनमें से दो रोगियों में बने 22 एंटीबॉडी में से छह में सार्स-कोव-2 से लड़ने की क्षमता थी।
शोधकर्ताओं ने कहा, ”बायोफॉर्मेटिक्स विश्लेषण से पता चला है कि कोविड-19 के अधिकतर गंभीर रोगियों में सार्स-कोव-2 के खिलाफ अपने आप एंटीबॉडी विकसित हुए।”
भाषा
जोहेब पवनेश
पवनेश
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