‘मुसलमान हो तुम, काफिरों को ना घर में बिठाओ’…, जानिए नुसरत फतेह अली खान की कव्‍वाली की क्या है सच्चाई

Nusrat fateh ali khan song : 'कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम, काफिरो को ना घर में बिठाओ...' जी हां इस चंद लाइन को पढ़कर आपकी प्रतिक्रया क्या होगी।

‘मुसलमान हो तुम, काफिरों को ना घर में बिठाओ’…, जानिए नुसरत फतेह अली खान की कव्‍वाली की क्या है सच्चाई
Modified Date: November 29, 2022 / 08:13 pm IST
Published Date: August 2, 2022 2:22 am IST

नई दिल्‍ली। Nusrat fateh ali khan song : ‘कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम, काफिरो को ना घर में बिठाओ…’ जी हां इस चंद लाइन को पढ़कर आपकी प्रतिक्रया क्या होगी। आप क्या सोच रहे होंगे। फिलहाल, सोशल मीडिया पर इन लाइनों ने तूफान मचा रखा है। कव्‍वाली के सरताज रहे उस्‍ताद नुसरत फतेह अली खान की एक कव्‍वाली में ये लाइनें हैं। ‘साथ देने का वादा किया है…’ टाइटल वाली इसी कव्‍वाली का वह टुकड़ा ट्विटर पर वायरल है। मशहूर कॉलम‍िस्‍ट तारिक फतेह ने भी ऑडियो शेयर किया है।

कई लोग कह रहे हैं कि कव्‍वाली में ‘बड़ी ही चालाकी के साथ नफरती बोल मिला दिए गए।’ फतेह का दावा है कि नुसरत की कव्‍वाली का यह हिस्‍सा ‘भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में घर कर चुकी हिंदुओं के प्रति सिस्‍टमैटिक नफरत को दर्शाता’ है। हालांकि, कई यूजर्स ने किसी अन्‍य आर्ट फॉर्म की तरह कव्‍वाली को भी एकदम लिटरल सेंस में ना लेने की बात कही है। वह कथित विवादित लाइन के मायने भी समझाते हैं। पहले पूरी कव्‍वाली पढ़-सुन लीजिए।

नुसरत फतेह अली खान की कव्‍वाली पूरी पढ़‍िए

साथ देने का वादा किया है
जानेजां अपना वादा निभाओ
यूं ना छोड़ो मुझे रास्‍ते में
दो कदम तो मेरे साथ आओ

कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम
काफिरों को ना घर में बिठाओ
लूट लेंगे ये ईमान हमारा
अपने चेहरे से गेसू हटाओ

मेरी तुरबत पे क्‍यों रो रहे हो
नींद आई है मुश्किल से मुझको
कब्र में चैन से सो रहा हूं
छींटे देकर ना मुझको जगाओ

चारअगर मैं हूं बीमार ए फुरकत
क्‍यों उठाते हो बेकार जहमत
करना चाहो जो मेरा मदावा
ढूंढ कर मेरे दिलबर को लाओ

जब वो देखेंगे मैय्यत तुम्‍हारी
ऐ फना उनको अफसोस होगा
हो तो मुमकिन तो अपने खुदा से
थोड़ी सी जिंदगी मांग लाओ

मुसलमान… काफिर… क्‍या कह रहे हैं नुसरत?
नुसरत की यह कव्‍वाली एक आशिक का दर्द बयां करती है। वह आशिक जिसकी माशूका ने उससे किया वादा नहीं निभाया है। वह खुद को बीमार बताता है जिसका इलाज सिर्फ उसका ‘दिलबर’ है। जिस शब्‍द पर आपत्ति है, वह है ‘काफिर’… एक शब्‍द के कई मायने होते हैं। यहां भी ठीक इस लाइन के बाद नुसरत साहब फरमाते हैं कि ‘अपने चेहरे से गेसू हटाओ’ मतलब आशिक अपनी महबूबा से कह रहा है कि चेहरे से जुल्‍फें हटा लों क्‍योंकि ये ‘हमारा ईमान लूट लेंगी।’ काफिर का मतलब यहां पर ऐसी लड़की से है जो आशिक का प्रस्‍ताव ठुकरा देती है। वैसे खुद तारिक फतेह एक वीडियो में ‘काफिर’ शब्‍द के मायने समझा चुके हैं। बहुत सारे लोगों ने उन्‍हें यह बात याद भी दिलाई।

 


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