‘मुसलमान हो तुम, काफिरों को ना घर में बिठाओ’…, जानिए नुसरत फतेह अली खान की कव्वाली की क्या है सच्चाई
Nusrat fateh ali khan song : 'कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम, काफिरो को ना घर में बिठाओ...' जी हां इस चंद लाइन को पढ़कर आपकी प्रतिक्रया क्या होगी।
नई दिल्ली। Nusrat fateh ali khan song : ‘कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम, काफिरो को ना घर में बिठाओ…’ जी हां इस चंद लाइन को पढ़कर आपकी प्रतिक्रया क्या होगी। आप क्या सोच रहे होंगे। फिलहाल, सोशल मीडिया पर इन लाइनों ने तूफान मचा रखा है। कव्वाली के सरताज रहे उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की एक कव्वाली में ये लाइनें हैं। ‘साथ देने का वादा किया है…’ टाइटल वाली इसी कव्वाली का वह टुकड़ा ट्विटर पर वायरल है। मशहूर कॉलमिस्ट तारिक फतेह ने भी ऑडियो शेयर किया है।
कई लोग कह रहे हैं कि कव्वाली में ‘बड़ी ही चालाकी के साथ नफरती बोल मिला दिए गए।’ फतेह का दावा है कि नुसरत की कव्वाली का यह हिस्सा ‘भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में घर कर चुकी हिंदुओं के प्रति सिस्टमैटिक नफरत को दर्शाता’ है। हालांकि, कई यूजर्स ने किसी अन्य आर्ट फॉर्म की तरह कव्वाली को भी एकदम लिटरल सेंस में ना लेने की बात कही है। वह कथित विवादित लाइन के मायने भी समझाते हैं। पहले पूरी कव्वाली पढ़-सुन लीजिए।
This is Pakistani singer Nusrat Fateh Ali Khan, he got more love in India than in Pakistan thanks to Bollywood. pic.twitter.com/6rZpTtUjx2
— Sameet Thakkar (@thakkar_sameet) July 29, 2022
“You are Musalman. Don’t let Kafirs in your homes. They will rob you of your faith”
-Nusrat Fateh Ali Khan singing beautiful Sufi poetry of Hindu-love
Islamist mob took him seriously in #Sialkot.
Follow @pakistan_untold for reality of secular heroes.pic.twitter.com/QERwMs2cpr
— Pakistan Untold (@pakistan_untold) December 5, 2021
नुसरत फतेह अली खान की कव्वाली पूरी पढ़िए
साथ देने का वादा किया है
जानेजां अपना वादा निभाओ
यूं ना छोड़ो मुझे रास्ते में
दो कदम तो मेरे साथ आओ
कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम
काफिरों को ना घर में बिठाओ
लूट लेंगे ये ईमान हमारा
अपने चेहरे से गेसू हटाओ
मेरी तुरबत पे क्यों रो रहे हो
नींद आई है मुश्किल से मुझको
कब्र में चैन से सो रहा हूं
छींटे देकर ना मुझको जगाओ
चारअगर मैं हूं बीमार ए फुरकत
क्यों उठाते हो बेकार जहमत
करना चाहो जो मेरा मदावा
ढूंढ कर मेरे दिलबर को लाओ
जब वो देखेंगे मैय्यत तुम्हारी
ऐ फना उनको अफसोस होगा
हो तो मुमकिन तो अपने खुदा से
थोड़ी सी जिंदगी मांग लाओ
मुसलमान… काफिर… क्या कह रहे हैं नुसरत?
नुसरत की यह कव्वाली एक आशिक का दर्द बयां करती है। वह आशिक जिसकी माशूका ने उससे किया वादा नहीं निभाया है। वह खुद को बीमार बताता है जिसका इलाज सिर्फ उसका ‘दिलबर’ है। जिस शब्द पर आपत्ति है, वह है ‘काफिर’… एक शब्द के कई मायने होते हैं। यहां भी ठीक इस लाइन के बाद नुसरत साहब फरमाते हैं कि ‘अपने चेहरे से गेसू हटाओ’ मतलब आशिक अपनी महबूबा से कह रहा है कि चेहरे से जुल्फें हटा लों क्योंकि ये ‘हमारा ईमान लूट लेंगी।’ काफिर का मतलब यहां पर ऐसी लड़की से है जो आशिक का प्रस्ताव ठुकरा देती है। वैसे खुद तारिक फतेह एक वीडियो में ‘काफिर’ शब्द के मायने समझा चुके हैं। बहुत सारे लोगों ने उन्हें यह बात याद भी दिलाई।

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