कोलंबो, 23 मई (भाषा) श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को सोमवार को एक बड़ा झटका लगा जब राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की निरंकुश शक्तियों पर लगाम लगाने के लिए कैबिनेट को संदर्भित किए जाने वाले संविधान में 21वें संशोधन का प्रस्ताव पेश नहीं किया गया।
सूत्रों के अनुसार, सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के सांसदों द्वारा प्रस्ताव का इसके वर्तमान स्वरूप में विरोध करने के बाद उसे कैबिनेट में पेश नहीं किया गया। उन्होंने मांग की कि प्रस्तावित कानून को कैबिनेट को भेजने से पहले अटॉर्नी जनरल द्वारा अनुमोदित किया जाए।
संविधान के 21वें संशोधन के ‘20ए’ को रद्द करने की उम्मीद है, जिसने 19वें संशोधन को समाप्त करने के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को असीमित अधिकार दिए थे।
विक्रमसिंघे ने जब 12 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला था तो संवैधानिक सुधार राजपक्षे और उनके बीच समझौते का एक प्रमुख मुद्दा था।
इस महीने की शुरुआत में राष्ट्र के नाम अपने संदेश में राजपक्षे ने भी संवैधानिक सुधार को लेकर संकल्प व्यक्त किया था।
बताया जा रहा है कि 21वां संशोधन दोहरी नागरिकता वाले लोगों के लिए संसद में सीट रखना असंभव बना देगा। देश की अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए अपने इस्तीफे की बढ़ती मांग का सामना कर रहे राष्ट्रपति राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से पहले अप्रैल 2019 में अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी थी।
न्याय मंत्री विजयदास राजपक्षे ने पहले कहा था कि 21वां संशोधन मौजूदा आयोगों की शक्तियों को और मजबूत करने और उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास करता है।
मौजूदा स्वतंत्र आयोगों के अलावा प्रस्तावित कानून के तहत राष्ट्रीय लेखा परीक्षा आयोग और खरीद आयोग को स्वतंत्र आयोगों के रूप में परिवर्तित किया जाएगा।
न्याय मंत्री ने कहा कि नए संशोधन में सेंट्रल बैंक के गवर्नर की नियुक्ति का भी प्रस्ताव है जो संवैधानिक परिषद के तहत आएगा।
भाषा
प्रशांत दिलीप उमा
उमा
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