ईरान और इजराइल के बीच लड़ाई से पश्चिम एशिया में रूस के प्रभाव पर उठ रहे हैं सवाल

ईरान और इजराइल के बीच लड़ाई से पश्चिम एशिया में रूस के प्रभाव पर उठ रहे हैं सवाल

ईरान और इजराइल के बीच लड़ाई से पश्चिम एशिया में रूस के प्रभाव पर उठ रहे हैं सवाल
Modified Date: June 24, 2025 / 08:01 pm IST
Published Date: June 24, 2025 8:01 pm IST

दुबई, 24 जून (एपी) जब इस सप्ताहांत अमेरिका ने इजराइल के साथ मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो रूस ने भी इसकी निंदा की। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत ने कहा कि वाशिंगटन ‘भानुमति का पिटारा’ खोल रहा है, और तेहरान के शीर्ष राजनयिक राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से समर्थन मांगने के लिए क्रेमलिन पहुंचे।

मगर सोमवार को ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची के साथ अपनी बैठक में पुतिन ने हमलों की निंदा करते हुए इसे “बिना किसी आधार या औचित्य के अकारण किया गया हमला” बताया।

विश्लेषकों का कहना है कि बिना किसी प्रत्यक्ष सैन्य सहायता के जबानी प्रतिक्रिया से ईरान को निराशा हो सकती है और यह पश्चिम एशिया में रूस के घटते प्रभाव को दर्शाता है, जहां वह सीरिया में बशर अल असद की सत्ता जाने के बाद एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो चुका है और एक नाजुक कूटनीतिक संतुलन की कोशिश कर रहा है।

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इसके बजाय मास्को ईरान-इजराइल युद्ध से कुछ अल्पकालिक लाभ प्राप्त कर सकता है, जैसे कि तेल की कीमतों में वृद्धि, जिससे रूस की डूबती अर्थव्यवस्था को मदद मिले या यूक्रेन में तीन साल से जारी युद्ध से विश्व का ध्यान हटाना।

जनवरी 2025 में रूस और ईरान ने आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए।

थिंकटैंक ‘चैथम हाउस’ में पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका कार्यक्रम के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो रेनाद मंसूर ने कहा कि सीरिया में असद को हटाने और हिजबुल्ला के कमजोर होने के बीच क्षेत्रीय सहयोगियों को खोने के बाद यह समझौता किया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘ईरान रूस पर निर्भर रहना चाहता था।’’

मंसूर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि ईरान के दृष्टिकोण से, रूस द्वारा समर्थन देने की इच्छा को लेकर कुछ निराशा हुई है। उन्हें अब लग रहा है कि जब हम इजराइल और अमेरिका जैसे विशाल देश का सामना कर रहे हैं, तो रूस वास्तव में आगे नहीं आ रहा है।’

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने मंगलवार को इस दावे का खंडन किया कि मास्को ने तेहरान को सार्थक समर्थन नहीं दिया है।

रूस केवल ईरानी मांगों को ही संतुलित नहीं कर रहा है। रूस इजराइल के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है। दोनों देशों की सेनाएं सीरिया में सक्रिय हैं, और वे सीधे टकराव से बचने के लिए संपर्क बनाए रखने में सावधान रहे हैं।

इजराइल यूक्रेन युद्ध के दौरान काफी हद तक तटस्थ रहा है, क्योंकि वह रूस को नाराज़ करने से बचना चाहता है- विशेष रूप से इसलिए कि रूस में यहूदी आबादी बड़ी संख्या में है।

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने मंगलवार को कहा कि मास्को संघर्ष को सुलझाने में मदद करने के लिए तैयार है, लेकिन मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभाएगा।

सीरिया में रूस की सैन्य मदद के बावजूद असद सरकार के गिरने की पृष्ठभूमि में मंसूर ने कहा, “आप लड़ाई हार सकते हैं, आप सहयोगी खो सकते हैं, लेकिन मुझे यकीन है कि रूस पश्चिम एशिया में अपना प्रभाव बनाए रखेगा, जिसमें सीरिया भी शामिल है, जहां वह पहले से ही नई सरकार के साथ बातचीत कर रहा है।”

एपी नोमान दिलीप

दिलीप


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