(पीटर ग्रेस्ट, मैक्वरी विश्वविद्यालय, सिडनी)
सिडनी, दो मई (360इन्फो) अगर हम असुविधाजनक सत्य उजागर करने वाली पत्रकारिता को अपराध घोषित कर दें या खारिज अथवा दरकिनार कर दें, तो हम समझदारीपूर्ण सार्वजनिक बहस की अपनी क्षमता खो देंगे।
जैसा कि मैंने लिखा है, पिछले साल अक्टूबर से गाजा में मारे गए पत्रकारों की संख्या 97 तक पहुंच गई है। वहीं रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने मृतकों की संख्या इससे थोड़ी ज्यादा -108- बताई है।
युद्ध के पहले 50 दिन में, प्रतिदिन मौटे तौर पर एक पत्रकार की मौत हो रही थी, जिसके चलते गाजा 1992 में ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ (सीपीजे) के रिकॉर्ड रखने के बाद से, निर्विवाद रूप से सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्र बन गया। आप तक यह लेख पहुंचने तक, मृतकों की संख्या और बढ़ने की आशंका है।
मृतकों में सात अक्टूबर को हमास के शुरुआती हमले में मारे गए दो इजराइली और दक्षिण लेबनान में इजराइली हमले में जान गंवाने वाले तीन लेबनानी पत्रकार भी शामिल हैं। लेकिन अधिकतर (90 से ज्यादा) गाजा में मारे गए फलस्तीनी हैं।
इनमें से कुछ युद्ध के दौरान दोनों ओर से हो रहे हमलों की चपेट में आने की वजह से मारे गए क्योंकि वे युद्धक्षेत्र के करीब काम कर रहे थे। हमास के नियंत्रण वाले गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि युद्ध में 34 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
आरएसएफ के अनुसार, “उनमें से अधिकतर पत्रकार युद्धक्षेत्र में रिपोर्टिंग कर रहे थे और यह स्पष्ट रूप से पता चल रहा था कि वे पत्रकार हैं। अन्य पत्रकार खासतौर पर उनके घरों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में मारे गए।”
मीडिया संगठनों ने आरोपों की जांच की मांग की है। ऐसे में अगर पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाकर मार डालने की पुष्टि हुई तो यह युद्ध अपराध माना जाएगा। इससे इजराइल का यह दावा भी कमजोर होगा कि वह पश्चिम एशिया में एकमात्र लोकतांत्रिक देश है, जो प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान करता है।
बेशक, एक पत्रकार का जीवन किसी अन्य व्यक्ति के जीवन से अधिक मूल्यवान नहीं है, लेकिन हमें उनकी सुरक्षा के बारे में जानने का अधिकार जरूर है।
फिलहाल, इजराइल केवल इजराइली और विदेशी पत्रकारों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित “माध्यमों” से गाजा पट्टी में प्रवेश की अनुमति देता है। इस दौरान इजराइली सैनिक उनके साथ होते हैं। हालांकि ये पत्रकार उन्हीं इलाकों में जा पाते हैं, जहां इजराइली सैनिक उन्हें ले जाते हैं। ऐसे में वे स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता नहीं कर पाते और दूसरा पक्ष जानने में परेशानी का सामना करते हैं।
सूचना का अभाव समस्या नहीं है। सोशल मीडिया अफवाहों, अनुमानों, राय और अर्थहीन बातों से भरा पड़ा है। ऐसे में पत्रकारिता के लिए आवश्यक सूचना के बिना अनुमान, अफवाह और कोरी कल्पना के कारण विश्वसनीय तथ्यों को सामने लाना असंभव हो जाता है।
संक्षेप में, यदि पत्रकारों को फील्ड पर काम करने की स्वतंत्रता न हो, तो हमारे पास केवल हिंसा में फंसे नागरिकों के सोशल मीडिया पोस्ट, तथा हमास और इजराइली सेना की ओर से जारी अत्यधिक व्यक्तिपरक समाचार ही बचेंगे।
प्रेस पर हमले केवल गाजा तक ही सीमित नहीं हैं।
दुनिया भर में पत्रकारिता अभूतपूर्व हमले का सामना कर रही है।
सीपीजे दुनिया भर में जेलों में बंद पत्रकारों की संख्या पर भी नजर रखता है। पिछले साल 320 पत्रकार जेलों में बंद थे, जो अब तक दूसरी सबसे अधिक संख्या है। (यह पहली बार था जब इजराइल ने वेस्ट बैंक में फलस्तीनी पत्रकारों को कैद करके पत्रकारों को जेल भेजने वाले शीर्ष छह देशों में अपना नाम दर्ज कराया।) 2000 के बाद से इन आंकड़ों में काफी वृद्धि देखी गई है जब केवल 92 पत्रकार जेलों में बंद थे।
इन सबके बीच आम लोगों को समझदारी से काम लेना चाहिए।
हमें अच्छी तरह से पड़ताल की हुई, सत्यापित, संतुलित और स्वतंत्र जानकारी के एक स्रोत की आवश्यकता है।
सोशल मीडिया तो कोविड टीकों और जलवायु परिवर्तन के बारे में षड्यंत्र के सिद्धांतों से भी भरा पड़ा है, और यदि इसमें आपकी रुचि है तो आपको सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ मिल ही जाएगा।
यदि हम असुविधाजनक सत्य को उजागर करने वाली पत्रकारिता को अपराध घोषित करते हैं, खारिज करते हैं, दरकिनार करते हैं या उसपर ध्यान नहीं देते, तो हम समझदारीपूर्ण सार्वजनिक बहस की अपनी क्षमता को नष्ट कर देंगे।
इंसानों से जुड़ी किसी भी चीज की तरह पत्रकारिता में भी बहुत खामियां हैं। संवाददाता भी किसी और की तरह ही मानवीय कमजोरियों के शिकार हो सकते हैं। लेकिन जब सही तरीके से पत्रकारिता की जाए तो इसमें पेशेवर मानक और नैतिकता जुड़ जाती है, जिससे मोटे तौर पर सच पर केंद्रित होने और सभी लोगों की राय को निष्पक्ष रूप से सामने लाने में मदद मिलती है।
परिणाम हमेशा सुविधाजनक नहीं होते, लेकिन ऐसा होना भी नहीं चाहिए। इजराइली सरकार को शायद ऐसी रिपोर्टिंग पसंद न आए जिसमें आरोप लगाया गया हो कि उनके सैनिकों ने युद्ध अपराध किए हैं। ठीक इसी तरह हमास इन दावों की निंदा करता है कि वह नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करता है।
लेकिन ऐसी खबरें देने वाले पत्रकारों को मार डालने या जेल में बंद कर देने से वे सच्चाईयां नहीं बदल जातीं जिन्हें वे उजागर कर रहे हैं।
(360 इन्फो)
जोहेब मनीषा
मनीषा
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)