दो महाशक्तियां, एक ही कार्यप्रणाली: चीनी और अमेरिकी नौकरशाहों की सोच और कार्यशैली एक जैसी क्यों?
दो महाशक्तियां, एक ही कार्यप्रणाली: चीनी और अमेरिकी नौकरशाहों की सोच और कार्यशैली एक जैसी क्यों?
(डैनियल ई. एस्सर-अमेरिकी विश्वविद्यालय, हेनर जानूस, मार्क थीसेन, टिम हैलर-रोथेल-जर्मन विकास और स्थिरता संस्थान)
बॉन, 18 दिसंबर (द कन्वरसेशन) अमेरिका-चीन संबंधों के लिए साल 2025 अच्छा नहीं रहा है। एक-दूसरे पर लगाए गए जवाबी शुल्क और दुर्लभ खनिजों को लेकर चल रही होड़ ने दुनिया की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच आर्थिक संबंधों को कमजोर कर दिया है।
इस बीच, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका के सहयोगियों के बीच क्षेत्रीय विवादों ने बढ़ती सैन्य प्रतिद्वंद्विता को और भी गहरा कर दिया है।
इस आपसी तनाव को अक्सर विरोधी वैचारिक प्रणालियों के टकराव के रूप में चित्रित किया गया है।
लोकतंत्र बनाम निरंकुशता;
आर्थिक उदारवाद बनाम राज्य-नेतृत्व वाला विकास और व्यक्तिवाद बनाम सामूहिकतावाद।
लेकिन इस तरह का दृष्टिकोण दोनों देशों के संपूर्ण निरीक्षण पर आधारित है, जो शक्तिशाली नेताओं के बयानों और दावों पर निर्भर करता है।
यह इस तथ्य को छिपा देता है कि दोनों महाशक्तियों का प्रशासन एक ही तरह के पेशेवरों द्वारा चलाया जाता है :
पेशेवर नौकरशाह।
हम नौकरशाही प्राथमिकताओं और व्यवहार की जांच करने वाले शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम हैं।
इस साल की शुरुआत में हमने चीन, अमेरिका और अन्य देशों के प्रतिभागियों के साथ दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया था ताकि नौकरशाही एजेंसियों द्वारा वैश्विक चुनौतियों के प्रति दी गई प्रतिक्रियाओं की तुलना की जा सके।
हमारे और अन्य लोगों के शोध से पता चलता है कि नेतृत्व स्तर पर वैचारिक गतिरोध के बावजूद चीन और अमेरिका के अधिकारी समान प्रोत्साहनों और गतिशीलता से प्रभावित होते हैं, जिसके कारण वे आश्चर्यजनक रूप से समान तरीकों से कार्य करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो, जब सरकार के वास्तविक कामकाज को अंजाम देने वाली महिलाओं और पुरुषों की बात आती है – नियमों का मसौदा तैयार करने से लेकर अनुपालन लागू करने तक – तो चीन और अमेरिका में वास्तव में कोई खास अंतर नहीं है।
दोनों देश राजनीति से अलग, व्यवहार से नहीं—
इसका यह अर्थ नहीं है कि चीन और अमेरिका की नौकरशाही व्यवस्था में कुछ अंतर नहीं हैं। चीन की व्यवस्था अधिक केंद्रीकृत है, और 2024 तक इसकी सिविल सेवा में लगभग 80 लाख कर्मचारी कार्यरत थे।
अमेरिकी नौकरशाही संघीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर अधिक विकेंद्रीकृत है और इसमें कम नौकरशाह कार्यरत हैं, 2024 में लगभग 30 लाख संघीय कर्मचारी थे।
फिर भी, दुनिया भर की नौकरशाहियों पर किए गए तुलनात्मक शोध से पता चलता है कि जटिल समस्याओं का सामना करने पर सिविल सेवक राजनीतिक व्यवस्था या नीति क्षेत्र की परवाह किए बिना समान रूप से कार्य करते हैं।
चाहे वे ब्राजील के नगरपालिका अधिकारी हों, जर्मनी, नॉर्वे और दक्षिण कोरिया के विदेशी सहायता अधिकारी हों, अथवा संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय सिविल सेवक हों। वे सभी अपने व्यक्तिगत करियर को आगे बढ़ाते हुए राजनीतिक रूप से स्थापित संगठनों की सीमाओं के भीतर काम करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो, वे लगातार बदलते राजनीतिक माहौल के बीच अपने काम में आगे बढ़ना चाहते हैं।
अमेरिका और चीन में नौकरशाह भी अपने राजनीतिक नेताओं की बदलती मांगों के अनुरूप काम करते हुए विशेषज्ञता हासिल करने तथा अपने करियर में प्रगति करने का प्रयास करते हैं।
जनता की अपेक्षाओं का प्रबंधन करना—
अमेरिका और चीन में विदेशी सहायता, पर्यावरण प्रबंधन और महामारी प्रबंधन इन समानताओं के स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
प्रथम दृष्ट्या, विदेशी सहायता के उपयोग को लेकर चीन और अमेरिका के दृष्टिकोण एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत प्रतीत हो सकते हैं। चीन ने 2018 में चीन अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी की स्थापना की। तब से इसने विदेशों में अपनी भागीदारी का विस्तार और विकास किया है।
इसके विपरीत, अमेरिका ने 2025 की शुरुआत में यूएसएआईडी को समाप्त कर दिया, अपने विदेशी सहायता बजट में भारी कटौती की और शेष कर्मचारियों को विदेश विभाग में स्थानांतरित कर दिया।
इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका और चीन विपरीत दिशाओं में अग्रसर हैं। फिर भी, मौजूदा परिस्थिति दोनों देशों के विदेशी सहायता अधिकारियों के बीच समानताओं को धुंधला कर देती है।
उनके कार्यों में राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करना, विदेशों में करदाताओं द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं की देखरेख करना और घरेलू जनता की अपेक्षाओं का प्रबंधन करना शामिल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा विदेशी सहायता को फिजूलखर्ची वाली राजनीति करार दिए जाने के बाद, वाशिंगटन में अधिकारियों पर अभूतपूर्व दबाव है कि वे ऐसी वित्तीय कूटनीति का अनुसरण करें जो स्पष्ट रूप से अमेरिकी हितों की पूर्ति करे और साथ ही उन विदेशी नेताओं का समर्थन करे जिन्हें राष्ट्रपति अपना सहयोगी मानते हैं।
इस एजेंडा में बदलाव से अमेरिका पारस्परिक लाभ की तलाश करने के चीनी विदेश सहायता सिद्धांत के करीब पहुंच जाता है।
इस बीच, चीनी सहायता अधिकारी बड़े पैमाने पर अवसंरचना परियोजनाओं को प्राथमिकता देने से हटकर ‘छोटी लेकिन सुंदर परियोजनाओं’ के दृष्टिकोण की ओर रुख कर रहे हैं, जो लाभार्थियों के कल्याण पर केंद्रित है।
दोषारोपण से बचने का तर्क—
पर्यावरण प्रदूषण घोटालों पर नौकरशाही की प्रतिक्रियाओं का मामला भी उतना ही शिक्षाप्रद है। फिर भी, यह उम्मीद की जा सकती है कि अमेरिका और चीन में, अलग-अलग शासन प्रणालियों के तहत काम करने वाले नौकरशाह इस समस्या को अलग-अलग तरीके से हल करेंगे।
हालांकि, व्यवहार में दोनों देशों के नौकरशाह अक्सर दोष से बचने की तीव्र इच्छा से प्रेरित होते हैं।
बाधा के रूप में कैरियरवाद—
कोविड-19 महामारी के दौरान भी इसी तरह के नौकरशाही व्यवहार देखने को मिले। चीन और अमेरिका दोनों में ही, सार्वजनिक अधिकारियों ने जन स्वास्थ्य दिशानिर्देशों को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाई।
नौकरशाही की स्थिरता—
बीजिंग और वाशिंगटन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सभी शक्तियां राजनीतिक निर्देशों को लागू करने के लिए सक्षम प्रशासनों पर निर्भर करती हैं। राजनीति माहौल तय करती है, लेकिन नौकरशाह ही वास्तविकता को आकार देते हैं।
द कन्वरसेशन रवि कांत रवि कांत नरेश
नरेश

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