टोटल लॉकडाउन का अर्थशास्त्री कर रहे हैं समर्थन ? संक्रमितों का मरना मानसिक रूप से देता है सदमा

टोटल लॉकडाउन का अर्थशास्त्री कर रहे हैं समर्थन ? संक्रमितों का मरना मानसिक रूप से देता है सदमा

टोटल लॉकडाउन का अर्थशास्त्री कर रहे हैं समर्थन ? संक्रमितों का मरना मानसिक रूप से देता है सदमा
Modified Date: November 29, 2022 / 08:47 pm IST
Published Date: July 10, 2021 10:39 am IST

(जॉन क्वीग्गीन, प्राध्यापक, स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स, द यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड और रिचर्ड होल्डेन, प्रोफेसर ऑफ इकोनॉमिक्स, यूएनएसडब्ल्यू)

सिडनी/ब्रिस्बेन, 10 जुलाई (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में कहीं अधिक लंबे लॉकडाउन की संभावना के बीच कोरोना वायरस के साथ रहने का विचार एक बार फिर से जोर पकड़ रहा है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण पूर्वी प्रांत न्यू साउथ वेल्स (एनएसडब्ल्यू) के स्वास्थ्य मंत्री ब्रैड हजार्ड ने बुधवार को संवाददाता सम्मेलन में लॉकडाउन को छोड़ने और यह स्वीकार करने पर जोर दिया कि वायरस का एक जीवनकाल होता है, जो समुदाय में बना रहेगा।

प्रांत के प्रीमियर ग्लेडीस बेरेजिकलियन और देश के प्रधानमंत्री मॉरीसन ने इस विचार को खारिज कर दिया है, लेकिन मीडिया में कुछ विशेषज्ञ इसका समर्थन कर रहे हैं। जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ जीवन बचाने का समर्थन करते देखे जा रहे हैं, जबकि अर्थशास्त्री पैसे बचाने की हिमायत कर रहे हैं। हालांकि, वास्तविकता यह है कि ऑस्ट्रेलियाई अर्थशास्त्रियों का एक बड़ा हिस्सा संक्रमण के मामलों को घटा कर शून्य के करीब करने या संक्रमण का प्रसार शुरू होने का खतरा पैदा होने पर सख्त कदम उठाने की नीतियों का समर्थन कर रहे हैं।

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व्यापक सहमति :

महामारी विशेषज्ञों के मुताबिक किसी खास मामले में उपयुक्त प्रतिक्रिया को लेकर कई विचारों पर व्यापक सहमति है। कुछ अर्थशास्त्री और कुछ महामारी विशेषज्ञों ने लॉकडाउन में विलंब करने के प्रांतीय सरकार के फैसले का समर्थन किया है जबकि अन्य चाहते हैं कि शीघ्र कार्रवाई हो। लेकिन दोनों समूहों में कुछ ही लोग पाबंदियां खत्म करने के विचार का समर्थन कर रहे हैं और समुदाय में प्रतिरक्षा उत्पन्न होने का इंतजार कर रहे हैं।

घातांकी वृद्धि को समझना:

क्या कारण है कि अर्थशास्त्री, नेताओं और प्रमुख कारोबारियों की तुलना में कहीं अधिक उत्साह से मामले को घटा कर शून्य करने पर सहमत हुए हैं? पहला कारण यह है कि अर्थशास्त्री (संक्रमण की) घातांकी वृद्धि की अवधारणा को समझते हैं। जब आप यह समझ लेते हैं कि किस तीव्रता से घातांकी प्रक्रियाएं बढ़ सकती हैं, तो लॉकडाउन अपना महत्व खोने लगता है, जैसा कि द ऑस्ट्रेलियन ने अपने संपादकीय में कहा है। द कन्वरसेशन ने (राष्ट्रीय लॉकडाउन खत्म होने के बाद ) मई 2020 में एक सर्वेक्षणसख्त लॉकडाउन का ज्यादातर अर्थशास्त्री कर रहे हैं समर्थन ? संक्रमितों का मरना मानसिक रूप से देता है सदमा
किया था, जिसमें ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने सामाजिक दूरी के नियमों को सख्ती से लागू किये जाने का समर्थन किया था।

तथ्यों के विपरीत विचार करते हुए:

दूसरा यह कि अर्थशास्त्रियों ने तथ्यों के विपरीत विचार करते हुए यह समझा कि एक वैकल्पिक नीति के तहत क्या हो सकता है। यह रेखांकित करना आसान है कि लॉकडाउन न सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से महंगा है बल्कि यह मनोवैज्ञानिक रूप से भी परेशान करने वाला है, लेकिन तथ्य के विपरीत बात यह है कि अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं है और हर कोई खुश है। वायरस के डर के साये में जीना, परिवार और मित्रों को इससे संक्रमित और मरते देखना मनोवैज्ञानिक रूप से सदमा देने वाला है। जहां तक इसके आर्थिक पहलुओं की बात है लोग संक्रमण से बचने के लिए, जो कदम उठाते हैं वह अपने आप में महंगा है।

दो विपरीत स्थितियों के बीच संतुलन बनाना:

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण यह कि अर्थशास्त्री दो विपरीत वांछनीय स्थितियों के बीच संतुलन बनाना जानते हैं। अर्थशास्त्री यह भी समझते हैं कि सभी विकल्पों में दो विपरीत स्थितियों के बीच संतुलन बनाया जाता है। मामलों की संख्या घटा कर शून्य के करीब करना बनाम समुदाय में प्रतिरक्षा उत्पन्न होने के केंद्रीय सवाल पर एकमात्र यह निष्कर्ष निकला है कि वायरस को अनियंत्रित तरीके से फैलने देने पर अस्थायी लॉकडाउन की तुलना में कहीं अधिक आर्थिक नुकसान होगा।

जोखिम और अनिश्चितता:

आखिरकार, अर्थशास्त्री जोखिम और अनिश्चितता की जटलिताओं को समझते हैं।

(द कन्वरसेशन)

 


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com