ऐसी भी मजबूरी है! पति का शव लाने पत्नी के पास नही थे पैसे, एक साल के मासूम ने किया पिता के पुतले का अंतिम संस्कार

ऐसी भी मजबूरी है! पति का शव लाने पत्नी के पास नही थे पैसे, एक साल के मासूम ने किया पिता के पुतले का अंतिम संस्कार

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  • Publish Date - April 21, 2020 / 04:34 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:57 PM IST

नईदिल्ली। लॉकडाउन सिर्फ अनुशासन ही नही एक मजबूरी भी है, उन लोगों के लिए जिनके पास इस समय एक पैसे भी नही हैं। गोरखपुर निवासी सुनील (37) की दिल्ली में चेचक से मौत हो गई। दिल्ली पुलिस ने किसी तरह परिवार को गोरखपुर में उसकी मौत खबर दी। गरीब पत्नी के पास पति की लाश ले जाने के लिए पैसे नहीं थे, ऊपर से लॉकडाउन। पत्नी ने ग्राम प्रधान व अन्य लोगों से मदद मांगी, लेकिन मायूसी हाथ लगी।

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बेबस होकर पत्नी पूनम ने पति सुनील के शव की जगह उसका पुतला बनवाकर एक साल के बेटे से अंतिम संस्कार करा दिया। इसके साथ तहसीलदार से दिल्ली पुलिस को मैसेज भिजवाया कि पुलिस उसके पति का अंतिम संस्कार दिल्ली में ही कर दे। हो सके तो अस्थियां गांव भेज दी जाए। अब दिल्ली पुलिस भी पशोपेश में है। फिलहाल सुनील के शव का अंतिम संस्कार नहीं हो पाया है।

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मूल रूप से गांव डुमरी-खुर्द, चौरी-चौरा (गोरखपुर) निवासी सुनील दिल्ली के भारत नगर स्थित प्रताप बाग इलाके में किराए के मकान में रहता था और यही मजदूरी करता था। परिवार में पत्नी पूनम, चार बेटियां और एक साल का बेटा है। सुनील की बड़ी बेटी 10 साल की है। गांव में उसकी कोई जमीन नहीं है और परिवार झोपड़ी में रहता है। लॉकडाउन की वजह से सुनील दिल्ली में ही फंस गया। इस बीच उसे चेचक हो गया।

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11 अप्रैल को तबीयत बिगड़ी तो स्थानीय लोगों की सूचना पर पुलिस ने उसे बाड़ा हिंदूराव अस्पताल में भर्ती करा दिया, जहां से उसे अलग-अलग तीन अस्पताल में रेफर किया गया। सफदरजंग अस्पताल में 14 अप्रैल को सुनील की मौत हो गई। उसकी कोरोना रिपोर्ट भी निगेटिव आई। इधर, परिवार सुनील को फोन करता रहा, लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुई। क्योंकि, वह अस्पताल में जिंदगी-मौत से लड़ रहा था और मोबाइल उसके कमरे पर था।

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लगातार फोन आने की वजह से मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई। पुलिस ने मोबाइल को चार्ज किया। इस बीच उसके घर से कॉल आई तो पुलिस ने सुनील की पत्नी को उसकी मौत की खबर दी। आग्रह किया कि वह शव को दिल्ली आकर ले जाए। यह सुनते ही पूनम बिलख उठी, लेकिन उसके पास इतने रुपये नहीं हैं कि वह दिल्ली आकर लाश ले जा सके। कोई उसकी मदद को भी तैयार नहीं हुआ।