( नचिकेता नारायण )
पटना, 23 दिसंबर (भाषा) वर्ष 2025 के अधिकांश भाग में सत्ता संघर्ष बिहार की राजनीति की दिशा तय करता रहा। इस वर्ष नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने शानदार जीत हासिल की। राजग को मिले प्रचंड बहुमत ने लगभग दो दशक से सत्ता में रहने के बावजूद सत्ता विरोधी लहर की तमाम अटकलों को गलत साबित कर दिया।
इस जनादेश ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की केंद्रीय भूमिका को एक बार फिर रेखांकित किया। राज्य में सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहने वाले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने पांच साल पहले की तुलना में लगभग दोगुनी सीटें हासिल कीं, जबकि सहयोगी भाजपा एक बार फिर बड़े दल के रूप में उभरी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में 75 वर्षीय कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के पैर छूने का प्रयास किया, जिसे इस संकेत के रूप में देखा गया कि वे बार-बार के राजनीतिक फेरबदल के दौर को पीछे छोड़ते हुए राजग में स्थायी रूप से बने रहना चाहते हैं।
नई विधानसभा के उद्घाटन सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने सरकार की कार्यशैली की दिशा स्पष्ट की। उन्होंने केंद्र सरकार के साथ सहयोग पर जोर दिया और सत्तारूढ़ गठबंधन में ‘डबल इंजन’ मॉडल के तहत मिल रही उदार सहायता का बार-बार उल्लेख किया।
चुनाव से पहले आए जनमत सर्वेक्षणों में लगातार विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का सबसे पसंदीदा चेहरा बताया जा रहा था। पूर्व उपमुख्यमंत्री यादव ने नौकरियों, भत्तों और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित लोकलुभावन घोषणाओं के जरिए माहौल बनाने की कोशिश की।
चुनावों से पहले लिए गए शासन संबंधी फैसले अहम चुनावी मुद्दा बन गए। मतदान कार्यक्रम की घोषणा से काफी पहले ही राज्य सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की या उनका विस्तार किया, जिनमें से कई (योजनाएं) विपक्ष द्वारा किए गए वादों की झलक लिए हुए थे।
यादव ने सरकार पर ‘ नकलची’ होने का आरोप लगाया, जबकि सरकार का तर्क था कि वह योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी ला रही है।
इसी दौरान निर्वाचन आयोग ने राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने का आदेश दिया, जिसे भविष्य में देशभर में लागू किए जाने वाले एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में देखा गया। इस व्यापक प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाए गए। हालांकि आयोग का कहना था कि ये नाम मृत व्यक्तियों, राज्य से बाहर स्थानांतरित हो चुके लोगों या एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाताओं के थे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन ने इस पुनरीक्षण अभियान को ‘वोट चोरी’ करार देने की कोशिश की। साथ ही राज्य सरकार की कल्याणकारी नीतियों पर भी निशाना साधा गया, जिनमें कमजोर वर्गों के लिए बढ़ी हुई पेंशन, 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली और बिहार के मूल निवासी महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण शामिल था।
गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’, जो अगस्त में तेजस्वी यादव और सीपीआई (माले) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य जैसे सहयोगियों के साथ निकाली गई, में बड़ी संख्या में लोग जुटे। हालांकि यह जनसमर्थन मतों में तब्दील नहीं हो सका और 243 सदस्यीय विधानसभा में ‘महागठबंधन’ 41 से भी कम सीटों पर सिमट गया।
राजग के चुनावी अभियान के केंद्र में कल्याणकारी योजनाएं रहीं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से कुछ सप्ताह पहले ही बिहार सरकार ने ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ शुरू की, जिसमें प्रधानमंत्री ने डिजिटल तौर पर भाग लिया। इस योजना के तहत 1.5 करोड़ से अधिक महिलाओं को 10,000 रुपए दिए गए। हालांकि चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी कुछ भुगतान होने के समय को लेकर आलोचना हुई।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2020 के कड़े मुकाबले वाले चुनावों की तुलना में महागठबंधन के वोट शेयर में कोई खास गिरावट नहीं आई। लेकिन राजग की भारी जीत में उसके वोट शेयर में लगभग 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी अहम रही, जिसे मुख्य रूप से कल्याणकारी योजनाओं की व्यापक पहुंच से जोड़ा गया।
तेज ध्रुवीकरण के चलते प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जैसे नए राजनीतिक दलों के लिए जगह नहीं बची और उनके अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
चुनावी राजनीति से इतर, 2025 ने शासन संबंधी चुनौतियों को भी उजागर किया। बुनियादी ढांचे को लेकर तस्वीर मिली-जुली रही। सरकार ने नए पुलों और कनेक्टिविटी परियोजनाओं को गिनाया, वहीं विभिन्न जिलों में पुल गिरने की घटनाओं ने निर्माण गुणवत्ता, रखरखाव और निगरानी पर सवाल खड़े किए।
वर्ष के दौरान एक पुल के पिलर गिरने की घटना के बाद प्रशासनिक कार्रवाई हुई, इंजीनियरिंग विभागों द्वारा समीक्षा की गई और संरचनात्मक ऑडिट के नए आश्वासन दिए गए। इसके बाद बिहार ने पुलों के प्रबंधन और रखरखाव के लिए तीसरे पक्ष के निरीक्षण और तकनीक आधारित निगरानी सहित एक व्यापक ढांचा घोषित किया।
शहरी बुनियादी ढांचे में भी धीरे-धीरे प्रगति देखने को मिली। पटना मेट्रो परियोजना के कुछ हिस्से चालू हुए और सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पतालों के उद्घाटन के साथ चिकित्सा शिक्षा का विस्तार जारी रहा।
इसके अलावा राज्य ने खेलो इंडिया कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं की मेजबानी की, जिसे सरकार ने खेल अवसंरचना और युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के प्रयासों के रूप में प्रस्तुत किया। वहीं बिहार दिवस जैसे सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए विकास के साथ-साथ राज्य की विरासत को भी प्रदर्शित किया गया।
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