बिहार की स्थापना की गवाह ऐतिहासिक इमारतें पटना में हो रहीं गायब: विरासत प्रेमी |

बिहार की स्थापना की गवाह ऐतिहासिक इमारतें पटना में हो रहीं गायब: विरासत प्रेमी

बिहार की स्थापना की गवाह ऐतिहासिक इमारतें पटना में हो रहीं गायब: विरासत प्रेमी

:   Modified Date:  March 27, 2023 / 04:03 PM IST, Published Date : March 27, 2023/4:03 pm IST

(तस्वीरों के साथ)

पटना, 27 मार्च (भाषा) आधुनिक राज्य बिहार हाल ही में 111 साल का हुआ है, लेकिन 1912 में नए प्रांत की स्थापना की गवाह बनी 19वीं सदी की बांकीपुर सेंट्रल जेल, डच युग का पटना समाहरणालय और कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें राजधानी शहर के क्षितिज से गायब हो गई हैं।

राज्य सरकार ने ऐतिहासिक गांधी मैदान में बिहार दिवस के उपलक्ष्य में 22 से 24 मार्च तक तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन किया।

विशाल मैदान से कुछ मीटर की दूरी पर गंगा के तट पर पुराने समाहरणालय के स्थान पर एक गगनचुंबी नया समाहरणालय परिसर बनाने के लिए निर्माण कार्य जोरों पर है।

ऐतिहासिक पटना समाहरणालय को नए परिसर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए पिछले साल ढहा दिया गया था। इससे भारत और विदेश में धरोहर प्रेमी काफी दुखी हुए थे। यह समाहरणालय पुरानी इमारतों का समूह था जिनमें से कुछ डच युग और कुछ अन्य ब्रिटिश काल के दौरान बनाई गई थीं।

बिहार ने जब अपनी स्थापना की 111 वीं वर्षगांठ मनाई तो कई इतिहास प्रेमियों, धरोहर प्रेमियों और संरक्षण वास्तुकारों ने बिहार की स्थापना की कहानी कहने वाली सुंदर प्राचीन संरचनाओं के न रहने पर दुख व्यक्त किया।

शहर के एक संरक्षण वास्तुकार ने कहा, ‘सरकार, लोगों और स्थानीय मीडिया, सभी ने राज्य भर में आयोजित तीन दिवसीय समारोह के दौरान बिहार के इतिहास और विरासत का गुणगान किया। लेकिन, यह दुख की बात है कि 1912 में बिहार की स्थापना देखने वाली विरासत इमारतें धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। पटना समाहरणालय इसका नवीनतम मामला है।’

उन्होंने कहा, ‘हमारी ‘विरासत’ को ‘विकास’ के नाम पर ध्वस्त किया जा रहा है। क्या इस तरह बिहार को अपने अतीत को नष्ट करके अपना भविष्य बनाना चाहिए।’

बारह दिसंबर, 1911 को ऐतिहासिक दिल्ली दरबार में तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज पंचम द्वारा की गई घोषणा के बाद बंगाल को विभाजित कर 1912 में ‘बिहार और उड़ीसा’ नामक नए प्रांत बनाए गए थे।

अभिलेखों के अनुसार, प्रांत आधिकारिक रूप से 22 मार्च, 1912 को अस्तित्व में आया, और राज्य सरकार 22 मार्च, 2010 से बिहार दिवस मना रही है।

पटना कॉलेज के छात्र और विरासत कार्यकर्ता अमन लाल (20) ने कहा कि पटना समाहरणालय को गिराया जाना ‘आधुनिक बिहार के इतिहास के विकास के एक महत्वपूर्ण हिस्से को ध्वस्त करने’ के समान है।

पटना समाहरणालय ने 1857 के विद्रोह और 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलते भी देखा था, और इसे तब ढहा दिया गया जब देश ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा था।

अमन लाल ‘ऐतिहासिक पटना समाहरणालय बचाओ’ आंदोलन का हिस्सा थे, जो छह साल तक लड़े लेकिन इसे बचाने में असफल रहे।

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार एक तरफ 2010 से बिहार दिवस मना रही है, और दूसरी तरफ वह बांकीपुर सेंट्रल जेल तथा अंजुमन इस्लामिया हॉल जैसी ‘शहर की कई ऐतिहासिक इमारतों को तोड़ रही है’।

पटना जंक्शन के पास फ्रेजर रोड पर स्थित संबंधित जेल, अपनी विशिष्ट लाल-ईंट संरचना के चलते जानी जाती थी जिसे 2010 में विशाल बुद्ध स्मृति पार्क के लिए रास्ता बनाने के वास्ते ढहा दिया गया था।

राजेंद्र प्रसाद (भारत के पहले राष्ट्रपति) सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों को इस ऐतिहासिक जेल में रखा गया था।

अशोक राजपथ पर 1885 में निर्मित अंजुमन इस्लामिया हॉल को पटना में निर्मित पहला सार्वजनिक हॉल कहा जाता है, और कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इसके परिसर में लोगों को संबोधित किया। इसे दिसंबर 2018 में ध्वस्त कर दिया गया था।

इसके अलावा, गांधी मैदान के सामने स्थित कई अन्य ऐतिहासिक इमारतों को भी ढहा दिया गया है जिनमें सिटी एसपी बंगला, सिविल सर्जन बंगला, जिला और सत्र न्यायाधीश बंगला, पुराना पीडब्ल्यूडी भवन शामिल हैं। इन ऐतिहासिक धरोहरों की जगह एक विशाल अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र, ज्ञान भवन और बापू सभागर तथा सभ्यता द्वार बनाया गया है।

सौ साल पूर्व नए प्रांत के पहले नियोजित नगरपालिका बाजार के रूप में निर्मित प्रतिष्ठित गोल मार्केट को स्मार्ट सिटी परियोजना के नाम पर 2019 में ध्वस्त कर दिया गया था।

शहर पहले ही 1990 में 19वीं शताब्दी के प्रतीक डाक बंगला को खो चुका था जो फ्रेजर रोड पर शहर के मध्य स्थित था, और पुरानी जेल के स्थान से ज्यादा दूर नहीं था।

पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) की पुरानी इमारतों को नए अस्पताल परिसर के लिए चरणबद्ध तरीके से नष्ट किया जा रहा है। इसे 1925 में बिहार और उड़ीसा प्रांत के पहले मेडिकल कॉलेज प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज के रूप में स्थापित किया गया था।

पीएमसीएच के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सत्यजीत कुमार सिंह ने फिर से राज्य सरकार से इन विरासत स्थलों को न गिराने की अपील की और कहा कि ये देश तथा बिहार के ‘इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा’ हैं।

उन्होंने कहा, ‘जब कॉलेज 2025 में 100 साल का हो जाएगा तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या इतिहास दिखाएंगे।’

भाषा नेत्रपाल मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)