विश्वव्यापी महामारी से प्रभावित होती संसदीय प्रणाली के लिए वैकल्पिक उपायों की आवश्यकता

विश्वव्यापी महामारी से प्रभावित होती संसदीय प्रणाली के लिए वैकल्पिक उपायों की आवश्यकता

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  • Publish Date - August 12, 2020 / 08:54 AM IST,
    Updated On - November 28, 2022 / 11:02 PM IST

कोविड19(Pandemic) महामारी से संपूर्ण विश्व आक्रांत है।इस महामारी ने विश्व के सामान्य जन जीवन और जीवन शैली को इस हद तक प्रभावित किया है,कि सभी प्रकार के सामूहिक क्रियाकलाप भी पूरी तरह से बाधित हो गए हैं।सामाजिक जीवन मैं,सामूहिक क्रियाकलाप के साथ व्यक्तिगत क्रियाकलाप और सामान्य जीवन भी प्रभावित हो गया है। मनुष्य के दिन प्रतिदिन के कार्य, व्यवसाय,शिक्षा व्यवस्था,सभी कुछ स्तंभित (Paralysed)हो गया है,जिसका सब अनुभव भी कर रहे हैं।

हम अभी यह कहने की स्थिति में नहीं है,कि हमें कब तक इस महामारी और इसके परोक्ष और अपरोक्ष प्रभाव का अनुभव एवं सामना करना है।

इस महामारी से जीवन की सुरक्षा सबसे प्राथमिक विषय है,इसके अनुरूप हमें अपनी न केवल जीवन शैली अपितु संपूर्ण व्यवस्थाओं चाहे वे निजी स्वरूप की हों अथवा सामूहिक,में भी परिवर्तन करना पड़ा है।

महामारी के फैलने और मनुष्य पर इसके दुष्प्रभाव को सीमित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अनेक देशों के स्वास्थ्य संगठन एवं सरकारों ने भिन्न-भिन्न कदम उठाने हेतु नागरिकों को सचेत किया,निर्देश जारी किए है, इसके बावजूद 6 माह से अधिक समय से अधिसंख्य देश इसके दुष्प्रभाव से मुक्त नहीं हो सके हैं,और नित नएअनुसंधान और खोज मैं वैज्ञानिक एवं अनेक संस्थाएं रात दिन लगी हुई हैं,ताकि इसको नियंत्रित करने हेतु कोई प्रभावी उपाय,दवा,इलाज,खोजा जा सके।

हमारे देश सहित अनेक देशों में इस महामारी के फलस्वरुप शासन व्यवस्थाएँ भी प्रभावित हुई है,चाहे वह शासन व्यवस्था की संसदीय प्रणाली हो राष्ट्रपति प्रणाली हो अथवा अन्य। समस्त शासन प्रणालियां लोकोन्मुख होती हैं,और सबका लक्ष्य भी लोक कल्याण है।

आपदा की स्थिति में शासन व्यवस्था का दायित्व लोक के प्रति सर्वाधिक हो जाता है,और इसलिए यह भी आवश्यक है कि शासन प्रणाली उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के अनुरूप उत्कृष्टता के साथ संचालित हो,इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपदा काल में शासन प्रणाली को क्रियाशील एवं प्रभावी बनाएं रखने के लिए किस प्रकार विद्यमान परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है?अथवा उसको परिष्कृत किया जा सकता है?इस संबंध में भी विचार मंथन किया जाना आवश्यक है।

वर्तमान मैं जो हालात हैं,अनुमान यही है कि इस वैश्विक महामारी से बहुत शीघ्र पूरी तरीके से निजात पाना संभव प्रतीत नहीं होता,ऐसी स्थिति में तो यह संदेहास्पद लगता है कि क्या वास्तव में हम शासन व्यवस्था की संसदीय प्रणाली जो राष्ट्र कुल के सदस्य देशों(लगभग 55 से अधिक) में अपनाई गई है,को उसी स्वरूप में आरंभ भी कर पाएंगे कि नहीं,जो(अन्य देशों में और) हमारे देश में हम विगत 70 वर्षों से व्यवहार में ला रहे हैं।

ब्रिटेन की संसद जिसे मदर ऑफ पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी के रूप में जानते हैं और राष्ट्र कुल संसदीय संघ के अन्य देशों में जहां कि थोड़े बहुत स्थानीय परिवर्तनों के साथ सैद्धांतिक रूप से इसी प्रणाली को लागू किया है,वहां भी क्या वर्तमान स्वरूप में ही व्यवस्था जारी रखी जा सकेगी?

यदि हम कोविड-19(corona virus decease)के कारण अन्य देशों एवं हमारे देश में संसदीय प्रणाली पर प्रभाव का आकलन करें तो, इस महामारी के तीव्र गति से फैलने के फलस्वरूप हमारे देश में संसद का बजट सत्र निर्धारित समयावधि के पूर्व ही,लोकहित के अनेक विचाराधीन विषयों पर चर्चा को स्थगित करके तथा विधिक कार्यों को भी स्थगित कर 23 मार्च को स्थगित करना पड़ा था।

यही स्थिति अन्य प्रदेशों में रही,पूर्व से निर्धारित विधान सभाओं की सत्र की अवधि को कम करते हुए,लोकहित,केवल अत्यावश्यक वित्तीयकार्य,अनुदान की मांगों को गिलोटिन करते हुए और पश्चात विनियोग विधेयक को आपाधापी में बिना चर्चा के पारित कर उत्तर प्रदेश 7मार्च, गुजरात 23 मार्च, हरियाणा 24 मार्च, बंगाल 17 मार्च, बिहार 16 मार्च, छत्तीसगढ़ 16 मार्च,और मध्यप्रदेश 24 मार्च(बिना कोई कार्य सम्पन्न किये)को स्थगित कर दिए गए।

मध्यप्रदेश में आवश्यक वित्तीय कार्य संपादित करने के लिए यद्यपि 20 जुलाई से सत्र की बैठकें आयोजित करने का कार्यक्रम जारी हुआ,4 माह के अंतराल में यह जानते हुए भी कि राज्य का सबसे महत्वपूर्ण विषय अर्थात वित्तीय कार्य जिसके माध्यम से प्रदेश में योजनाओं का क्रियान्वयन,विकास के कार्य,जनहित से जुड़े दूसरे विषयों पर चर्चा होती है,को किया जाना है, लगभग400 सदस्यों के बैठने के स्थान वाले सभा भवन और 75 सदस्यों के बैठने के स्थान वाले परिषद के सभा भवन,सभा भवन से संलग्न विभिन्न दीर्घाये,में वैकल्पिक व्यवस्थाएं करते हुए,सभा की बैठकें आयोजित करने की इच्छा शक्ति के अभाव के फल स्वरूप सत्र किस प्रकार से आयोजित होगा संभवतः गंभीरता पूर्वक प्रयास नहीं किया गया। और कोरोना महामारी के कारण सत्र की बैठकों को निरस्त कर दिया गया और अध्यादेश के माध्यम से प्रदेश का विनियोग विधेयक प्रभाव शील कर सरकार को चलायमान रखा गया है।

उक्त परिपेक्ष में क्या अब यह माना जाए कि कोरोना महामारी के चलते विधान सभा की बैठकें होना असंभव है?

राजस्थान राज्य में 14 अगस्त से,छत्तीसगढ़ राज्य में 24 अगस्त से सत्र प्रारंभ होने की अधिसूचना जारी कर दी गई है,किंतु संसद सहित समस्त राज्यों में सत्र आरंभ होने के संबंध में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है।

मध्य प्रदेश सहित उक्त सभी राज्यों में संविधान के अनुच्छेद 174(1)के अंतर्गत संसद एवं विधान सभाओं की विगत सत्र की अंतिम बैठक के 6 माह में आगामी सत्र की बैठक आयोजित किया जाना संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत बंधनकारी है,किंतु आज दिनांक तक संसद सहित अन्य राज्यों में बैठक की तिथि निर्धारित नहीं हो सकी है।

कुछ राज्य तो इस हेतु भी लोकसभा क्या प्रक्रिया अपनाती है,इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।लोकसभा का आगामी सत्र भी संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत 23 सितंबर के पूर्व आयोजित किया जाना बंधन कारी है।

इस महामारी के लगभग 6 माह में कार्यपालिका ने जैसा उचित?एवं सर्वश्रेष्ठ?हो सकता है,नागरिकों की सुरक्षा एवं अन्य व्यवस्थाएं बनाने के लिए आदेश एवं निर्देश जारी किए,किंतु संसदीय प्रणाली के मूल तत्व विधायिका के द्वारा कार्यपालिका को मार्गदर्शन,कार्यपालिका के कार्यों पर निगरानी रखने, कार्य पालिका पर विधायिका की निगरानी,जैसा मूल सिद्धांत विलुप्त ही हो गया।

यह अवश्य है,कि लोकसभा की standing committee on Home affairs को management of covid-19 pendemic and related issues के परीक्षण करने एवं प्रतिवेदन देने हेतु सौंपा, लेकिन राज्यों में संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था जारी रखने प्रयास के स्थान पर एकाधिकार वादी व्यवस्था हावी है।

इस महामारी को नियंत्रित करने हेतु जो सबसे महत्वपूर्ण दिशा निर्देश परामर्श जारी किए गए उसमें सामूहिक क्रियाकलापों से परहेज सबसे महत्वपूर्ण है,और इस परामर्श के फलस्वरूप अधिकांश राज्यों ने विधान सभा की समितियों जो विधानसभा का ही लघु स्वरूप होती है,की बैठकें आयोजित करने से भी परहेज किया।

गुजरात राज्य में जहां अपवाद स्वरूप समितियों की कुछ बैठकें(प्राप्त जानकारी अनुसार) आयोजित हुई वही बिहार राज्य में विधानसभा की स्थगित बैठकों के प्रश्नों को परीक्षण के लिए प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण समिति को सौंप दिया गया।आशय यह कि महामारी से भयाक्रांत होकर संसदीय प्रणाली को प्रभाव शील करने हेतु वैकल्पिक प्रयासों को करने की इच्छा शक्ति का अभाव रहा। संपूर्ण संसदीय प्रणाली एक प्रकार से अप्रभावशील हो गई।

इस आपदा के काल में संसदीय प्रणाली को प्रभाव शील रखने के संबंध में विचार विमर्श अथवा वैकल्पिक प्रक्रिया विकसित करने के संबंध में कोई प्रभावी कार्यवाही की जानकारी भी नहीं हो सकी।संसदीय प्रणाली के प्रति, इस प्रणाली से संलग्न संस्थाओं की तत्परता,अथवा रुचि ना होना,जिम्मेदार पदाधिकारियों का इन संस्थाओं के प्रति नकारात्मक रुख चिंतनीय और संसदीय प्रणाली की प्रभावी निरंतरता बनाए रखने के लिए घातक है।

देश में एवं प्रदेशों में इस महामारी के अब तक के 6 माह की अवधि में ऐसे अनेक विषय रहे जिसमें कार्यपालिका को विधायिका का मार्गदर्शन प्राप्त होता तो शायद स्थितियाँ बेहतर होती,और इन जन प्रतिनिधि संस्थाओं की गरिमा में भी अभिवृद्धि होती।

संसद के संदर्भ में चाहे वह कोविड-19 के परिपेक्ष में प्रधानमंत्री द्वारा 20 लाख करोड़ का पैकेज की घोषणा हो,प्रवासी मज़दूरों का पलायन विनियमित करना और उनके रोज़गार के वैकल्पिक उपाय,या फिर चाइना और नेपाल के साथ सीमा विवाद,आत्मनिर्भर भारत जैसी योजना का प्रारंभ हो,और ऐसे ही अनेक ज्वलंत विषय जिस पर चर्चा के माध्यम से

संसद का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हो सका,और कार्यपालिका का विधायिका के प्रति उत्तरदायित्व का मूल तत्व भी समाप्त होना चिंतनीय है।

राज्यों के परिपेक्ष में भी स्थितियाँ और भी अधिक गंभीर तथा चिंतनीय रही।राज्यों में विधान मंडलों की बैठकें आयोजित करने के संबंध में तो नकारात्मक रवैया ही रहा।किंतु समितियों के माध्यम से भी कोविड-19 से उत्पन्न संकट पूर्ण समय में विधान मंडल द्वारा कार्यपालिका को मार्गदर्शन देने अथवा कार्यपालिका द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा,विवेचना और परीक्षण करने का अवसर भी पूरी तरीके से समाप्त ही कर दिया गया।

यह स्थिति किसी एक राज्य के संबंध में नहीं है,अपितु अन्य राज्यों की स्थिति कमोबेश एक जैसी है।मध्यप्रदेश में तो एक कदम आगे जाते हुए,विधानसभा के रहते हुए समस्त समितियां ही भंग कर दी गई,स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह अकेला बिरला उदाहरण है। जब विधानसभा तो अस्तित्व में है लेकिन इसकी समितियों को भंग कर दिया गया।
संसदीय प्रणाली में जब बिना संसदीय पर्यवेक्षण,जवाबदेही के कार्य किया जाता है,तब एकाधिकार की भावना प्रबल होती है।यही कारण है कि जिन राज्यों में एकाधिकारवाद की भावना अधिक प्रबल हुई वहां कार्यपालिका के द्वारा कोविड-19 से निबटने के लिए दिन प्रतिदिन नये नये आदेश एवं निर्देश प्रसारित होते रहे,संशोधित होते रहे।आम जनता असहाय सी केवल मूक दर्शक की भांति देखती रही।

हमारे देश में संसदीय संस्थाओं और संसदीय प्रणाली की इस स्थिति के परिपेक्ष्य में, यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र कुल संघ के अन्य देशों में जहां संसदीय प्रणाली की शासन व्यवस्था है,मैं इस प्रणाली को सक्रिय एवं प्रभाव शील रखने हेतु क्या क्या कदम उठाए?

कुछ महत्वपूर्ण देशों(उदाहरण के लिए तीन देश की जानकारी) द्वारा इस महामारी के आरंभ से ही संसदीय प्रणाली को वैकल्पिक उपाय करते हुए सक्रिय रखने के प्रयास आरंभ कर दिए गए थे।महामारी काल में अब तक जन प्रतिनिधि संस्थाओं की कार्यप्रणाली को किस प्रकार सक्रिय रखा संक्षेप में निम्नानुसार है।

ऑस्ट्रेलिया:-23 मार्च 2020 को पक्ष प्रति पक्ष ने अपनी प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों में परिवर्तन करने का निर्णय लेते हुए अध्यक्ष को आवश्यक कार्यवाही के लिए अधिकृत किया।पश्चात संसद के दोनों सदनों की बैठक 10 से 18 जून की अवधि में आयोजित की गई। तथा आगामी बैठक 24 अगस्त को रखने का निर्णय लिया। इस महामारी के संबंध में शासन द्वारा किए जाने वाले कार्यों के परीक्षण करने के लिए एक समिति भी गठित की गई।

कनाडा:-कनाडा की संसद की बैठक 11 अप्रैल 2020 को आयोजित की गई जिसमें कोविड-19 के संबंध में कुछ विधेयक पारित किए गए, पश्चात सीनेट 2 जून तक के लिए और कॉमनस 25 मई तक के लिए स्थगित कर दी गई कॉमन्स की स्वास्थ्य संबंधी स्टैंडिंग कमेटी की वर्चुअल मीटिंग्स निरंतर जारी रही, जिसमें कोविड-19 महामारी के संबंध में सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों का परीक्षण जारी रखा गया। कोविड-19 से संबंधित अन्य विषयों के संबंध में भी दूसरी समितियों के द्वारा परीक्षण जारी रहा। कोविड-19 से संबंधित विषयों एवं भविष्य में कोविड-19 के परिपेक्ष में किस प्रकार की तैयारियाँ की जाए इस हेतु कॉमन्स के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई।

यूनाइटेडकिंगडम:- (ब्रिटेन) में संसद का कार्य हाइब्रिड तथा वर्चुअल दोनों ही प्रकार से जारी रखने का निर्णय लिया गया और इसके लिए संसद के स्थाई आदेशों(standing orders) और दूसरे नियमों आदि में परिवर्तन किए गए। रिमोट वोटिंग सिस्टम भी विकसित कर लिया गया,वहां सभा कक्ष में केवल 50 सदस्यों को ही प्रवेश अनुमत किया गया,शेष सदस्यों की सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए लॉबी,उनके निर्वाचन क्षेत्र या अन्य स्थानों पर बैठने की व्यवस्था की गई।हाउस आफ लॉर्ड्स की कार्यवाही केवल वर्चुअल ही करने का निर्णय लिया गया

25 मार्च 2020 को यूके की संसद में कोरोनावायरस एक्ट 2020 पारित किया गया जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य सुविधाएं और कोविड-19 के लिए अतिरिक्त स्टाफ आदि की व्यवस्था की गई। इस ऐक्ट के माध्यम से ही सोशल कांटेक्ट,सोशल गैदरिंग, क्वॉरेंटाइन के अधिकार, आदि के प्रावधान किये गये।महामारी काल में शासन के प्रत्येक निर्णय एवं कार्य संसदीय संस्थाओं के द्वारा निर्मित विधि के अनुरूप तथा मार्गदर्शन से संपादित होते रहे।

उपरोक्त अनुसार संसदीय प्रणाली वाले अन्य महत्वपूर्ण देशों में जहां महामारी काल में संसद की प्रक्रियाओं एवं निर्देशों में संशोधन करते हुए संसद के माध्यम से अथवा इसकी समितियों के माध्यम से कार्यपालिका के ऊपर निगरानी का सिद्धांत लागू करने का प्रयास किया गया और कार्यपालिका को संसद के प्रति उत्तरदायी भी बनाया गया वही हमने इस दिशा में अभी तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की फल स्वरूप ना तो संसद/विधानसभा सक्रिय रह पाई और ना ही समितियों के माध्यम से विधान मंडल अपने उत्तरदायित्व को निबाह सके।

उपरोक्त से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि हमारे देश में महामारी काल के दौरान शासन व्यवस्था की संसदीय प्रणाली पूरी तरीके से निशप्रभावी हो गई और कार्यपालिका पर विधायिका का नियंत्रण तथा कार्यपालिका का विधायिका के प्रति उत्तरदायित्व का सिद्धांत भी विलुप्त हो गया

आवश्यकता इस बात की है,कि महामारी काल एवं भविष्य में किसी आपदा के उत्पन्न होने की स्थिति में संसदीय प्रणाली प्रभावी रूप से कार्य करती रहे,कार्यपालिका द्वारा लिए गए निर्णय में जनता की भागीदारी का तत्व भी सम्मिलित हो सके, विधान मंडलों के पदाधिकारियों एवं संबंधितो को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श कर आवश्यकतानुसार विधान मंडल के नियमों, प्रक्रियाओं एवं स्थाई आदेशों में संशोधन करते हुए,विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण एवं मार्गदर्शन के सिद्धांत को प्रभावी बनाए रखने के उपाय निर्धारित कर व्यवहार में लाया जाना चाहिए।

 

देवेंद्र वर्मा, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा
संसदीय एवं संविधानिक विशेषज्ञ

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