Batangad: What will happen to AAP without Kejriwal, Janabe-Aali

बतंगड़ः केजरीवाल के बिना ‘आप’ का क्या होगा जनाब-ए-आली

बतंगड़ः केजरीवाल के बिना 'आप' का क्या होगा जनाब-ए-आली! Batangad: What will happen to AAP without Kejriwal, Janabe-Aali

Edited By :   Modified Date:  March 22, 2024 / 05:29 PM IST, Published Date : March 22, 2024/5:29 pm IST

सौरभ तिवारी

#Batangad : नयी राजनीति शुरू करने के वादे के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद केजरीवाल ने वाकई ‘नयी राजनीति’ की मिसाल पेश की है। वे पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने पद में रहते हुए गिरफ्तार हुए हैं। यही नहीं बल्कि वे पहले ऐसे अभियुक्त सीएम हैं जो सलाखों के पीछे से सत्ता चलाएंगे। वाकई इस नैतिक दुःसाहस की दाद देनी पड़ेगी। अन्ना आंदोलन के दौर में नेताओं पर महज आरोप लगने पर पद छोड़ने की मांग उठाने वाले अरविंद केजरीवाल का पद के मोह में कुर्सी से चिपके रहने के फैसले ने उनकी दोहरे चरित्र वाली छवि को और भी रसातल में पहुंचा दिया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए जनांदोलन की कोख से पैदा होने वाली पार्टी के टॉप लीडर्स का ही भ्रष्टाचार के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंच जाना राजनीति शास्त्र के शोधार्थियों के लिए किसी केस स्टडी से कम नहीं है।

अरविंद केजरीवाल के उत्थान के ‘इतिहास’ से लेकर उनके नैतिक पराभव तक का ‘वर्तमान’ घटनाक्रम उनके अनिश्चित ‘भविष्य’ की आशंका को व्यक्त कर रहा है। इसी आशंका के चलते सहज सवाल उठता है कि ‘आप’ का क्या होगा जनाब-ए-आली। पहले सत्येंद्र जैन, फिर मनीष सिसोदिया और उसके बाद संजय सिंह को अब तक जमानत नहीं मिल पाने के अनुभवों को देखते हुए अरविंद केजरीवाल को भी निकट भविष्य में जमानत मिल पाना नामुमकिन नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे आप के अग्रणी नेताओं की मटियामेट हो चुकी साख के साये और उनकी गैरमौजूदगी में अगले महीने होने जा रहे लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनावी भविष्य को लेकर सियासी जानकारों का अपना-अपना आकलन है। कुछ को आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी से इस पार्टी का अगले चुनावों में बुरा हश्र नजर आ रहा है तो कुछ को सहानुभूति की संभावना। बात केवल लोकसभा चुनाव की नहीं है, बल्कि इसका असर 11 महीने बाद होने वाले दिल्ली लोकसभा चुनाव पर भी पड़ना लाजिमी है। बाकी नेताओं की तरह ही अगर केजरीवाल को भी लंबे समय तक जमानत नहीं मिली तो दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे में भी ‘रायता’ फैल सकता है।

हो सकता है कि कुछ लोग अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उनके पक्ष में सहानुभूति लहर चलने की संभावना तलाश कर चुनावी नतीजों को आप के पक्ष में आने की गुंजाइश देख रहे हों। लेकिन आज अरविंद केजरीवाल की गिरगिरटिया छवि उनके डबल स्टैंड और मौकापरस्ती के चलते जिस दुर्गति को प्राप्त हो चुकी है उसके बाद अब आम आदमी पार्टी का आसन्न चुनावों में अपना प्रदर्शन दोहरा पाना किसी दिवास्वप्न से कम नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी ने अपनी सारी जमा पूंजी ही खो दी है। उसने ये जमा पूंजी भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए अन्ना आंदोलन से अर्जित की थी। देशवासियों ने इस आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी में क्रांतिकारी बदलाव वाली राजनीति की संभावना देखी थी। आम लोगों ने दीवानगी की हद तक इस पार्टी और इसके नेता अरविंद केजरीवाल को अपना समर्थन दिया था। लेकिन किसी नेता ने इस हद तक लोगों के विश्वास को तोड़ा हो, इसकी मिसाल राजनीति के इतिहास में कोई दूसरी नहीं मिलती। केजरीवाल ने अपने हर उस वादे और दावे से पलटी मारी, जो उन्होंने पार्टी की स्थापना के दौरान किए थे। केजरीवाल ने राजनीति में व्याप्त गंदगी को दूर करने के वादे के साथ दलदल में उतरने का फैसला किया था, लेकिन लोगों का मानना है कि केजरीवाल उस गंदगी को दूर तो कर नहीं सके बल्कि वो खुद उसी में लथड़ गए।

पॉलीटिक्स में परसेप्शन की बड़ी महत्ता है। परसेप्शन के बनने – बिगड़ने से सरकारें बनती-बिगड़ती रही हैं। और वर्तमान हाालत बताते हैं कि आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं को लेकर लोगों का परसेप्शन पूरी तरह बदल चुका है। अरविंद केजरीवाल के पलटी मारने के सोशल मीडिया में वायरल वीडियो इस बात की ताकीद करते हैं कि परसेप्शन की लड़ाई में आम आदमी पार्टी बुरी तरह नुकसान उठा चुकी है। गिरफ्तार नेताओं को अब तक कोर्ट से जमानत नहीं मिल पाना और घोटालों से जुड़े रोज नये तथ्य मीडिया में सामने आने से, लोगों के इस परसप्शन को मजबूती मिल रही है कि दाल में जरूर कुछ काला है। बल्कि भाजपा तो कहती है कि पूरी दाल ही काली है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भ्रष्टाचारियों को किसी सूरत में नहीं बख्शने की गारंटी के बीच होने वाले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपने टॉप लीडर्स के बिना कैसा परफार्म करती है, ये जरूर देखने वाली बात होगी।

 
Flowers