बतंगड़ः अडाणी के खिलाफ खुन्नसी विरोध ने 'निवेशक वोट बैंक' को किया नाराज |

बतंगड़ः अडाणी के खिलाफ खुन्नसी विरोध ने ‘निवेशक वोट बैंक’ को किया नाराज

खास बात ये है कि निवेशकर्ता केवल निवेशक ना होकर मतदाता भी हैं। अगर निवेशकों को राजनीति के अनिवार्य तत्व 'वोटबैंक' के तौर पर वर्गीकृत करें तो ये नया 'वोटबैंक' बहुत तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है।

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Modified Date: November 27, 2024 / 07:35 PM IST
Published Date: November 27, 2024 7:34 pm IST

-सौरभ तिवारी

भाई! ये राहुल गांधी मेरी दौलत डुबाने में क्यों ऊतारू हैं…?

राहुल गांधी से तेरी कौन सी निजी दुश्मनी है,….वो भला ऐसा क्यों करेंगे…?

निजी दुश्मनी भले ना हो, लेकिन वे तो मेरा नुकसान करने पर ऊतारू ही हैं…?

मैं कुछ समझा नहीं, जरा समझाओगे कि तुम राहुल गांधी के खिलाफ ऐसे क्यों भड़क रहे हो…? जबकि तुम तो राहुल गांधी के समर्थक माने जाते हो।

अरे भाई! मैंने अपना काफी इनवेस्टमेंट शेयर और म्युचुअल फंड में कर रखा है। लेकिन जिस सनक के साथ राहुल गांधी अडाणी ग्रुप के पीछे पड़े हैं, उससे शेयर मार्केट के डांवाडोल होने से मुझे अपना आर्थिक नुकसान होने की आशंका सताती रहती है।

ये मेरे सहकर्मी शहनवाज सादिक के साथ हुई मेरी बातचीत का वो हिस्सा है जिसमें उसने राहुल गांधी के प्रति कुछ इस शिकायती लहजे के साथ अपनी कमाई डूबने की आशंका जताई। दरअसल ये आशंका/शिकायत केवल इस सहकर्मी मित्र की नहीं बल्कि उन लाखों इनवेस्टर्स की है जिन्होंने वाजिब तरीके से कुछ अतिरिक्त कमाई करने के लिए अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा शेयर मार्केट में लगाया है। इनमें से ज्यादातर संख्या उन युवा नौकरीपेशा और कारोबारियों की है जिन्होंने भारतीय शेयर बाजार के ‘अच्छे दिनों’ से प्रभावित बेहतर रिटर्न की आशा में पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड या शेयर के रूप में निवेश करना शुरू किया है।

भारतीय युवा अब बैंकों के फिक्स और रिकनिंग डिपाजिट जैसे परंपरागत सुरक्षित निवेश विकल्पों की बजाए शेयर बाजार में ज्यादा निवेश कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक निवेश करने वालों में से 58 फीसदी भारतीय युवा अब शेयर में इनवेस्ट करते हैं जो म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले 39 फीसदी युवाओं से भी ज्यादा है। जाहिर तौर पर शेयर या म्यूचुअल फंड में किए गए निवेश में अडाणी ग्रुप की हिस्सेदारी तो होगी ही। अब अगर ऐसे में किसी शख्स ने अडाणी ग्रुप को मटियामेट करने की सबक सिखाऊ मानसिकता के साथ मुहिम छेड़ रखी हो तो उसके खिलाफ मेरे सहकर्मी जैसे निवेशकर्ताओं में नाराजगी पनपना लाजिमी है। क्योंकि बात केवल अडाणी के शेयर वैल्यू गिरने की नहीं है, बल्कि पूरे शेयर कारोबार के प्रभावित होने की है।

खास बात ये है कि निवेशकर्ता केवल निवेशक ना होकर मतदाता भी हैं। अगर निवेशकों को राजनीति के अनिवार्य तत्व ‘वोटबैंक’ के तौर पर वर्गीकृत करें तो ये नया ‘वोटबैंक’ बहुत तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। इस रफ्तार को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि आठ महीने पहले नेशनल स्टाक एक्सचेंज पर रजिस्टर्ड निवेशकों की संख्या 16.9 करोड़ थी जो अब बढकर 20 करोड़ हो गई है। वहीं डी मैट खातों की बात करें तो डीमैट की शुरुआत होने के वर्ष 1997 से दिसंबर 2022 के बीच 11 करोड़ खाते खुलने में 25 साल लग गए। जबकि पिछले 20 महीनों में 54 फीसदी वृद्धि दर से इन डीमैट खातों की संख्या बढ़कर 17.1 करोड़ हो गई। दिलचस्प तथ्य ये भी है कि शेयर बाजार में निवेश के मामले में वो महाराष्ट्र पहले नंबर पर है जहां अभी हाल ही में हुए विधनसभा चुनाव में कांग्रेस की अब तक के इतिहास में सबस बुरी दुर्गति हुई है।

ये नहीं भूलना चाहिए कि हर वोटबैंक की तरह निवेशकों का वोटबैंक भी अपने नफा-नुकसान के तहत ही राजनीतिक दलों के प्रति अपनी राय और निष्ठा रखेगा। राजनीतिक दलों के प्रति ये राय और निष्ठा ही तो वोट देने का आधार बनती है। तो क्या ये माना जाना चाहिए कि देश में सबसे अधिक 3.6 करोड़ ‘शेयर निवेशक वोट बैंक’ वाले महाराष्ट्र में कांग्रेस की दुर्दशा के पीछे राहुल गांधी की अडाणी के खिलाफ चलाई गई मुहिम से उनमें पनपी आर्थिक अनिष्ट की आशंका भी एक निर्णायक वजह रही।

दरअसल लोकसभा चुनावों के दौरान मिली आंशिक सफलता को कांग्रेस बाद में हुए विधानसभा चुनावों में बरकरार नहीं रख सकी। हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में मिली करारी हार ने कांग्रेस की सियासी साख को वहीं पहुंचा दिया जहां वो लोकसभा चुनाव के पहले थी। लोकसभा चुनाव और उसके बाद हालिया हुए विधानसभा चुनावों से एक बात साफ हो गई कि कांग्रेस के हिस्से में केवल उन्हीं प्रदेशों में सीटें आ पाती हैं जहां वो क्षेत्रीय दलों के सहारे होती है। लेकिन जहां भी उसका सीधा आमना-सामना भाजपा से होता है उसे मात मिलती है।

कांग्रेस के इस सियासी हालात के लिए तमाम जिम्मेदार कारकों में से एक प्रमुख कारक उसका वामपंथी रुझान वाली पार्टी में तब्दील हो जाना भी माना जा रहा है। अडाणी और अंबानी के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम ने कांग्रेस की छवि उस वामपंथी विचारधारा वाली पार्टी की बना दी है जिसने अपनी निजी खुन्नस के जरिए उद्योगपतियों या दूसरे शब्दों में कहें तो ‘बाजार’ के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। भाजपा के आईटी सेल ने डीप स्टेट थ्योरी के जरिए कांग्रेस की पहले से बदनाम छवि को और संदिग्ध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

ये नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के तहत एक बड़े मतदाता वर्ग के व्यक्तिगत आर्थिक हित सीधे तौर पर बाजार नियंत्रित/आधारित हो गए हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों को शायद ये बात समझ नहीं आ रही है कि अडाणी-अंबानी जैसे मुद्दों से आम गरीब आदमी का कोई सीधा वास्ता है नहीं, और जिनका वास्ता है वे अपना आर्थिक अनिष्ट होने की आशंका के चलते कांग्रेस को तो वोट देने से रहे।

– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

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