सौरभ तिवारी
Himanta Biswa Sarma Release Trailer छत्तीसगढ़ के चुनाव अब तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से अछूते रहे हैं। धार्मिक ध्रुवीकरण कभी भी यहां चुनावी जीत-हार का फैक्सर नहीं रहा हैं। इसके पीछे दो वजहें हैं। पहला छत्तीसगढ़ का सामाजिक मिजाज और दूसरा यहां अल्पसंख्यक वर्ग की अल्पसंख्यकता। धर्मांतरण का मुद्दा जरूर समय-समय पर उठता रहा है, लेकिन इसका प्रभाव भी बस्तर और सरगुजा के इलाके तक ही सीमित रहा है। दिलीप सिंह जूदेव के समय उन्होंने घर वापसी के जरिए जरूर इस राजनीतिक मुद्दा बनाया था, जिसका थोड़ा- बहुत प्रभाव तब के चुनावों पर पड़ता था। लेकिन पिछले कुछ चुनावों से यहां धर्म की बजाय धान और दीगर मुद्दे ही चुनावी जीत-हार में अपनी भूमिका निभाते आ रहे हैं।
Himanta Biswa Sarma Release Trailer लेकिन लगता है इस बार स्थिति वैसी नहीं रहेगी। भाजपा ने इस बार धार्मिक आधार पर चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की तैयारी कर ली है। ऐसा करने के पीछे आप इसे उसकी मजबूरी मानिए या फिर उसकी रणनीति। लेकिन हकीकत ये है कि उसने इस बार कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना हथियार बनाने की ठानी है। इसके लिए उसने दो तरफा रणनीति तैयार की है। मैदानी इलाकों पर उसने बिरनपुर की सांप्रदायिक हिंसा और कवर्धा में भगवा ध्वज के अपमान को बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है तो बस्तर और सरगुजा जैसे चर्च प्रभावित इलाकों में उसने धर्मांतरण के मुद्दे के जरिए अपने पक्ष में वोटरों की लामबंदी करने की तैयारी कर रखी है।
मैदानी इलाके में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए चुनावी माहौल को अपने पक्ष में साधने के उसने विधानसभा टिकटों को साधन बनाया है। साजा से उसने बिरनपुर हिंसा में जान गंवाने वाले भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं उससे सटे कवर्धा में भूपेश कैबिनेट के कद्दावर मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ हिंदुत्ववादी चेहरे वाले विजय शर्मा को मैदान में उतारा गया है। कवर्धा में भगवा ध्वज के अपमान का मुद्दा काफी गरमाया था। उस दौरान विजय शर्मा ने उस मुद्दे को काफी प्रखरता के साथ लीड किया था। जिसके बाद विजय शर्मा की छवि हिंदुत्ववादी नेता की बन चुकी है। भाजपा की नई रणनीति में बिल्कुल फिट बैठना ही विजय शर्मा की टिकट का आधार बना। भाजपा को लगता है कि अगर वो साजा और कवर्धा सीट पर धार्मिक ध्रुवीकरण करने में सफल रही तो इसका सियासी फायदा वो दुर्ग संभाग और दूसरे मैदानी इलाके तक में उठा सकती है।
दरअसल इस चुनाव में भाजपा की रणनीति कांग्रेस को अपनी पसंदीदा पिच पर खिलाने की है। लेकिन सवाल उठता है कि राष्ट्रवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा जब यहां छत्तीसगढ़ में कभी चुनावी जीत-हार का आधार नहीं बना तो फिर इस मुद्दे को भाजपा आखिर तूल क्यों दे रही है? दरअसल छत्तीसगढ़ में भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का जो थोड़ा-बहुत असर था उसे भूपेश बघेल ने अपने छत्तीसगढ़ियावाद की काट से प्रभावहीन कर दिया है। भाजपा ने भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ियावाद की काट तलाशने की काफी कोशिश की, लेकिन वो भूपेश बघेल जैसी मास अपील वाला कोई छत्तीसगढ़िया नेता पेश कर नहीं सकी। लिहाजा अब उसने ये तय किया है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भले पूरे प्रदेश की सियासत का धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं किया जा सकता हो, लेकिन अगर विशेष इलाके में ही सही, इसे आजमाया जाए तो कुछ वोटों की शिफ्टिंग जरूर की जा सकती है। साजा ईश्वर साहू और कवर्धा से विजय शर्मा को टिकट देने के पीछे भाजपा की यही रणनीति है।
धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति का खुलासा साजा और कवर्धा में नामांकन के मौके पर हुई चुनावी सभाओं पर उठे मुद्दों से हो जाता है। राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत बाकी दूसरे उम्मीदवारों का नामांकन भराने के लिए खुद गृहमंत्री अमित शाह पहुंचे थे। इस मौके पर हुई सभा में बिरनपुर हिंसा में जान गंवाने वाले युवक के पिता और साजा उम्मीदवार ईश्वर साहू की मंच में मौजूदगी के बीच अमित शाह ने भूपेश सरकार पर बड़ा करारा हमला बोला। उन्होंने तो सीधे भूपेश बघेल सरकार पर ही इस युवक की लिंचिंग करके हत्या करने का आरोप लगा दिया। शाह ने कहा कि भुवनेश्वर साहू के हत्यारों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए ही उनके पिता को चुनाव मैदान में उतारा गया है। आरोप गंभीर था, लिहाजा कांग्रेस ने भी पलटवार करने में देर नहीं लगाई और इस बयान को हेट स्पीच मानते हुए चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करा दी है।
अमित शाह ने जो ‘टीजर’ राजनांदगांव में दिखाया था उसका ‘ट्रेलर’ भाजपा के हिंदुत्ववादी नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कवर्धा और लोरमी में दिखाया। हिमंत ने कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद अकबर के जरिए भूपेश बघेल पर निशाना साधा। हिमंता ने कहा कि कांग्रेस ने बाबर को पाला था, भूपेश ने अकबर को पाला है। हिमंत ने अपने असम का उदाहरण देते हुए लोगों को समझाया कि असम में भी एक अकबर आया था, लोगों ने उसे दिल में बिठाया। आज सभी जिले में हिन्दू अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं। क्योंकि एक अकबर आता है तो 100 अकबर लाता है। इसलिए बाबर, हुमांयू, अकबर को उठाकर फेंकना जरूरी है।
अमित शाह के ‘टीजर’ के बाद हिमंत बिस्वा सरमा ने जैसा ‘ट्रेलर’ दिखाया है, उससे साफ जाहिर है कि ‘फिल्म’ काफी धमाकेदार रहने वाली है। फिलहाल तो भाजपा इस फिल्म के ‘प्रोमो’ को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में जुट गई है।
– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।