#LaghuttamVyangya: रामचरित मानस विवाद-दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है

बताइए भला क्या कोई ऐसी राजनीति हो सकती है जिसमें अपने से असहमत धारा के लोगों के इस दुनिया से चले जाने की कामना की जाती हो। चुनावी राजनीति में पुतला दहन का तंत्र भले ही बेअसर रहता आया हो, लेकिन इसके पीछे का कलुषित भाव असरदार है।

#LaghuttamVyangya: रामचरित मानस विवाद-दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है

Barun Sakhajee

Modified Date: February 7, 2023 / 12:57 pm IST
Published Date: February 7, 2023 12:45 pm IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी24

Ramcharitmanas Controversy: दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है। यह बात तो आपने खूब सुनी होगी। दूध ने ऐसा जलाया है कि समझ नहीं आ रहा छाछ को फूंक देंगे तो भी जाने ठंडा होगा कि नहीं। धर्मग्रंथों को जलाकर राजनीति करने की परंपरा भारत की मौलिक परंपरा है। हमारे यहां विरोध करने के लिए नेताओं की अर्थियां निकाली जाती हैं और पुतले भी जलाए जाते हैं। तब तो ये सिर्फ धर्मग्रंथ ही है। मूढ़मति मीडिया इसे खूब जगह देता है। ऐसे में अगर कोई कहे कि हमे लोकतांत्रिक समझ नहीं है तो वह कुछ गलत नहीं कह रहा। बताइए भला क्या कोई ऐसी राजनीति हो सकती है जिसमें अपने से असहमत धारा के लोगों के इस दुनिया से चले जाने की कामना की जाती हो। चुनावी राजनीति में पुतला दहन का तंत्र भले ही बेअसर रहता आया हो, लेकिन इसके पीछे का कलुषित भाव असरदार है।

खैर, मैं तो बात कुछ और कर रहा था बात हो कुछ और गई। ये कोई बात नई नहीं है। भारत के एक बड़े विश्वविद्यालय में एक खास धर्मग्रंथ की प्रतियां जलाकर अनेक नेता बने चुके हैं। पहले कोई दूसरा धर्मग्रंथ था अब नया दौर है, नया जमाना है, नया ग्रंथ भी चाहिए। इसलिए खोजा गया तुलसी और उनके धर्मग्रंथ रामचरित मानस को। दोहरी मारक क्षमता वाला। राम भी कमजोर हों, तुलसी जैसा संत भी और सबसे बड़ी बात हिंदुओं की बौद्धिक रीढ़ ब्राह्मण संस्था भी। धर्मग्रंथ तो धर्मग्रंथ होता है। सदा कल्याणकारी। इसलिए वह जल जाता है और जलाया जाता रहता है। क्योंकि हम उसे पढ़ने की योग्यता नहीं रखते और अगर पढ़ लें तो समझने का भाव नहीं होता। नतीजतन शब्द हमे चुभने लगते हैं। समस्या ये है कि सत्ता में रहते समय कांग्रेस ने अपने आपको बहुसंख्य हिंदुओं से ऐसा दूर रखा कि कहीं छाया भी न पड़ जाए। धर्मग्रंथ जलाया गया है तो जलाने वाले की आलोचना से बेहतर रास्ता ये है कि उस सरकार को घेरा जाए जिसके राज में ऐसा हुआ। बड़ी उत्तम मध्यमार्ग है भाई।

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असल में दूध के जले को छाछ फूंक-फूंककर पीने की आदत हो जाती है। वह सफेद रंग के भ्रम में इतना पड़ जाता है कि दूध और छाछ में फर्क नहीं कर पाता। ऐसा ही कुछ इस समय इस दल के नेताओं के सामने संकट है। धर्मग्रंथ जलाने वाले की आलोचना करते हैं तो धर्मग्रंथ जलने से करार पा रहे समुदाय को खो देंगे और आलोचना नहीं करते तो असली-नकली हिंदू स्पर्धा में पिछड़ जाएंगे।

गुजरात में जनेऊ, शिव बारात, असली-नकली हिंदू का गरम दूध ऐसा होंठों में लगा कि होंठ जल गए। अब ऐसे मामले में कहीं फिर होंठों में खौलता दूध न छुआ जाए। बस इसीलिए किसी तरह से छाछ को भी फूंक-फूंककर पीने की मशक्कत जारी है।

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Ramcharitmanas burning controversy


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Associate Executive Editor, IBC24 Digital