मैरिटल रेप : ना कोर्ट एकमत, ना सरकार, ना समाज |

मैरिटल रेप : ना कोर्ट एकमत, ना सरकार, ना समाज

हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के दो जस्टिस ने जो फ़ैसला सुनाया, वो पूरी तरह बंटा हुआ है। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने 21 फरवरी को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे उन्होंने 11 मई को सुनाया। जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फ़ैसले में ये माना कि मैरिटल रेप के अपराध से आरोपी पति को छूट असंवैधानिक है।

Edited By :   Modified Date:  November 28, 2022 / 11:05 PM IST, Published Date : May 11, 2022/5:08 pm IST

हाईकोर्ट से आया एक बंटा हुआ फ़ैसला, अब सुप्रीम कोर्ट करेगा तय

Marital rape: मैरिटल रेप को लेकर लंबे समय से देश में बहस चल रही है, लेकिन अब तक समाज, कार्यपालिका या न्यायपालिका में से कोई भी इस गंभीर विषय पर एक मत कायम करने में सफल नहीं हो सके हैं। ये सवाल अभी भी बरकरार है कि पत्नी की इच्छा और सहमति के बावजूद पति अगर जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए या नहीं? शादीशुदा जीवन में पत्नी से जबरन संबंध को बलात्कार की तरह ही वैवाहिक बलात्कार यानि कि मैरिटल रेप माने जाने को लेकर पीड़ित महिलाओं और महिलावादी संगठनों की ओर से लगातार अपील की जाती रही है। दिल्ली हाईकोर्ट में इसी विषय को लेकर याचिका दाखिल की गई थी, जिसके फ़ैसले पर देश की निगाहें टिकी थीं लेकिन, जब कोर्ट का फ़ैसला सामने आया तो एक बार फिर चार दिन चले ढाई कोस वाली स्थिति सामने आई।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp  ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<

दिल्ली हाईकोर्ट में आरआईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ और दो व्यक्तियों ने मैरिटल रेप के ख़िलाफ़ याचिकाएं दाखिल की थीं। हाईकोर्ट ने विषय की गंभीरता को देखते हुए दो सीनियर अधिवक्ताओं को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। रेबेका जॉन और राजशेखर राव ने बतौर एमिकस क्यूरी भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को समाप्त करने के पक्ष में अपनी राय दी।

हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के दो जस्टिस ने जो फ़ैसला सुनाया, वो पूरी तरह बंटा हुआ है। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने 21 फरवरी को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे उन्होंने 11 मई को सुनाया। जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फ़ैसले में ये माना कि मैरिटल रेप के अपराध से आरोपी पति को छूट असंवैधानिक है। इसलिए जस्टिस शकधर ने धारा 375 के अपवाद 2, 376 बी को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया। जस्टिस शकधर ने कहा कि जहां तक पति का सहमति के बिना पत्नी के साथ संभोग का प्रश्न है, यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द किया जा सकता है।

लेकिन, जस्टिस सी हरिशंकर का फ़ैसला जस्टिस शकधर के फ़ैसले से असहमत दिखा। जस्टिस हरिशंकर ने माना कि धारा 375 का अपवाद दो संविधान के प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस हरिशंकर ने अपने फ़ैसले में कहा कि यह विवेकपूर्ण अंतर और उचित वर्गीकरण पर आधारित है। दोनों ही जजों ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि उनके फ़ैसले में कानून के महत्वपूर्ण पक्ष शामिल हैं, इसलिए हाईकोर्ट इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील का प्रमाणपत्र देता है।

महिलावादी संगठनों की ओर से अक्सर ये दलील दी जाती रही है कि महिलाओं को भी संविधान से पुरुषों की तरह समान अधिकार मिले हैं और मैरिटल रेप पत्नियों के सम्मान, उनकी अस्मिता का उल्लंघन है। अक्सर इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं, जब पत्नी की बीमारी, थकान के बावजूद और पति के नशे में होने के दौरान उनसे जबरन शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं। पत्नियों को स्लीपिंग पिल्स की तरह इस्तेमाल करने के ख़िलाफ़ समाज के भीतर आवाज़ उठती रही है, लेकिन किसी तरह का कानून नहीं होने के कारण पत्नियों को इसी स्थिति में रहना होता है।

मैरिटल रेप पर हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने ये दलील दी थी कि उसने आईपीसी प्रावधानों की समीक्षा के लिए परामर्श प्रक्रिया शुरू की है, इसलिए अदालत सुनवाई स्थगित कर दे। हाईकोर्ट की पीठ ने इस अनुरोध को ये कहते हुए नामंज़ूर कर दिया कि परामर्श प्रक्रिया की डेडलाइन क्या होगी, ये केंद्र सरकार ने अपने अनुरोध में नहीं बताया है, इसलिए फ़ैसले को लंबित नहीं रखा जा सकता।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट में बताया था कि राज्य सरकारों और हितधारकों से इस बारे में केंद्र सरकार ने प्रतिक्रिया मांगी है, जिस पर प्रतिक्रिया आनी बाकी है। केंद्र सरकार का रुख साफ़ करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि हर महिला की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। तुषार मेहता की दलील थी कि मैरिटल रेप जैसे गंभीर विषय पर अदालत का फ़ैसला केवल रूटीन कानून से संबंधित फ़ैसला नहीं है बल्कि इसके दूरगामी नतीजे होंगे, इसलिए हर पक्ष की प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही किसी फ़ैसले पर पहुंचा जाना चाहिए।

अब हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद एक बार फिर से ये सवाल बना हुआ है कि अगर गैरशादीशुदा महिला के साथ उसकी मर्जी के ख़िलाफ़ शारीरिक संबंध बनाना अपराध है, बलात्कार है तो फिर ये अधिकार शादीशुदा महिलाओं को क्यों नहीं है? अब हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट जाने का प्रमाणपत्र दिया है तो ये मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच सकता है।