#NindakNiyre: गहलोत-मोदी की गलबहियां, तारीफों में पढ़े कसीदे, यूं ही तो नहीं हो सकते
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Barun Sakhajee New Column for insights, analysis and political commentary
बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
मानगढ़ में हुए 109 वर्ष पहले हुए आदिवासी महा नरसंहार को याद दिलाते हुए मोदी ने गेहलोत को भी कुछ याद दिलाया। 1 नवंबर को आदिवासी मतों को सम्मोहित करने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में मोदी और गहलेत एक मंच पर थे। मंच पर यूं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी थे, लेकिन गहलोत विपरीत दल के होने के नाते चर्चा का विषय बन गए। मोदी ने गहलोत को याद दिलाया कि वे अनुभवी हैं। राजनीति में अपने समकक्षों में अधिक अच्छे रनरेट वाले बल्लेबाज हैं। डटे रहें। उनके साथ अगर कुछ ऊंच-नीच होती है तो कोई है जो उनके अनुभव को सम्मान दे सकता है।
मोदी और उनकी भाजपा कभी, कुछ भी यूं नहीं करती। इसके निहितार्थ होते हैं। मंच पर यही दिखा। जब मोदी ने कहा मैं गहलोत के साथ काम कर चुका हूं। वे हम सबमें उस वक्त सबसे वरिष्ठ थे। मोदी की यह शुरुआत सीधे अशोक गहलोत की प्रशंसा न होकर कुछ और भी है। चूंकि जब बारी गहलोत की आती है तो वे भी कसर नहीं छोड़ते। वे कहते हैं मोदी जब विदेश जाते हैं तो वहां उन्हें असीम सम्मान और प्यार मिलता है, क्योंकि वे गांधी के देश के प्रमुख हैं, जहां लोकतांत्रिक जड़ें बहुत गहरी हैं। गहलोत ने यह कहकर जहां मोदी को गांधीवाद की ओर धकेला तो वहीं मोदी ने अनुभवी और वरिष्ठ कहकर उन्हें उनकी ही पार्टी में और अधिक सम्मान का आकांक्षी बना दिया।
मोदी और गहलोत की इस शिष्टाचारी बातचीत का सार यही निकाला जाना चाहिए कि राजस्थान में गहलोत, पायलट के बीच की जंग और भाजपा में बिखराव के बीच चुनावों में अभी एक वर्ष है। इस बीच मोदी कोई संभावनाओं को नहीं नकारते। यदि वे राजस्थान की आंतरिक गुटबाजी विशेष रूप से महाराणी वसुंधरा राजे सिंधिया को नियंत्रण में नहीं रख पाते तो गहलोत का कार्ड भी तैयार कर सकते हैं। पायलट सियासत में अभी बहुत कच्चे हैं। यह भाजपा भी जानती है और गहलोत तो जानते ही जानते हैं।
इसके उलट गहलोत ने मोदी की इस स्पिन गेंद का जवाब गांधी की ओर मोड़कर अपने अनुभवी होने का सुबूत पेश किया। साथ में यह भी संदेश दिया कि गांधी का देश यानी वह देश जो महात्मा गांधी का है और दूसरे स्वजातीय गांधियों का भी। मसलन 10 जनपथ की ताकत का परोक्ष रूप से प्रदर्शन। गहलोत पके चावल हैं। गहलोत-मोदी की गलबहियां यूं ही नहीं हैं।

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