NindakNiyre: नया पैंतरा अरावली न्यू अराइवल्स, बिग ऑफर्स और भारी डिस्काउंट
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक
देश की सरकार एक राजनीतिक दल के हाथों में पिछले साढ़े 11 सालों से निंरतर चल रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा, संस्कृति, एकता, समग्रता, संप्रुभता, मौलिक पहचान, अध्ययनशीलता, प्रगतिवादिता, सक्रियता, विश्वसनीयता आदि पैमानों पर सतत परीक्षा देती यह सरकार संभल रही है और चल रही है। बारंबार घेराबंदी, बागड़बंदी, हाथपैर पकड़कर रोकने की कोशिश, राजनीतिक शक्ति संपन्नता को बाधित करने के हथकंडे भी निरंतर चल और संभल रहे हैं। आजमाए हुए अस्त्र एक-एक करके छोड़े, फेंके जा रहे हैं। इनमें से कुछ असर कर रहे हैं कुछ चूक रहे हैं। कुछ ठीक ही काम कर रहे हैं। कुछ सरकार को बुरी तरह से हिला भी दे रहे हैं। मसले बदल जाते हैं, मंतव्य लेकिन वही रहता है। देश को अस्थिर करना। देश की गति को रोकना। सरकार को हटाना। क्यों कारण आगे पढ़िए।
सारे इकोसिस्टम में भर्तियां बंद हैं। पुरानी नियुक्तिया अपना समय निकाल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक सब तरह के छद्म, खुले, कुत्सित युद्ध चल रहे हैं। चलाए जा रहे हैं। बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है। सिस्टम को खोखला करने की हर कोशिश को सराहा जा रहा है। प्रश्रय दिया जा रहा है। गुलामी को उन्मादित बनाने के लिए मनोविज्ञान के शस्त्र-अस्त्र छोड़े, फेंके जा रहे हैं।
साढ़े 11 वर्ष पूर्व पहले असहिष्णुता जैसे विशुद्ध हिंदी शब्द से गौरवान्वित भारतीय छातियों में इंतकाम धधकाया गया। नहीं धधका तो अवार्ड वापसी का नैरेटिव शुरू हुआ। 24 महीने भी सहा न गया तो नोटबंदी को रोजगार और रोजगार को कथित क्रांति, कथित क्रांति को लोकतंत्र बचाव से जोड़कर अराजकता का आगाज किया गया है। लाइन में लगे-लगाए गए, बैंक सिस्टम से नोट लौटाए गए, नोटबंदी बड़ा करप्शन सिद्ध करने की कोशिश में भूल गए अर्थव्यवस्था को धक्का देने वाले बयान दिए जाते रहे। जब इन सबका दौर गुजरा तो मीडिया को गोदी में बिठाया बताया जाने लगा। सुप्रीम कोर्ट को बिका हुआ बताया जाने लगा। एयर स्ट्राइक, सर्जिकल स्ट्राइक, अभिनंदन को पाकिस्तानी कब्जे में सरकार के फैल्योर के रूप में कार्व किया जाने लगा। रक्षा, सुरक्षा, सीमा विवादों को ऐसे पेश किया जाने लगा जैसे सब फैल हो गया है। चीन, डोकलाम, तवांग यूं बताए गए ज्यों गए तो गए अब। और धार देने के लिए आपसी असहमतियों को कलह बताया जाने लगा। योगी-मोदी की लड़ाई, संघ-भाजपा के बीच के रिश्तों में खिंचाव दिखाया जाने लगा। गति न रुकी तो जीएसटी को प्रेरक न मानकर डाकुओं की लूट से तुलना करके पेश किया जाने लगा। फिर सुरक्षा उपकरणों की खरीदी में उन्माद तलाशा गया। रफेल से लेकर चंद्रयान प्रथम की असफलता तक तालियां पीटी गईं। अब भी पीटी गईं। मई 2025 तक रफेल के फेल होने की कामना की गई। चंद्रयान जैसे विशुद्ध विज्ञानिक विषय में कामयाबी या नाकामयाबी को पनौती शब्द से महिमामंडित किया गया। कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग तक हमलों का दायरा बढ़ाया गया। बताया गया आयोग किसी राजनीतिक दल का पैट है। पला हुआ पालतू है। एसआईआर को रोकने के लिए जंजीरें फेंकी गईं। किसान आंदोलन तो कोई भूल नहीं सकता। बंगाल की हिंसा पर मौन, बांग्लादेश की इस्लामी बर्बरता पर सिले होठ इजराइल से भारत की नजदीकी पर बुक्का फाड़कर रोते दिखे। कभी साढ़े 11 वर्षीय यह ताकत झिझकी, ठिठकी, रुकी, लेकिन चलती रही। कुछ दिन पहले एक्यूआई हत्थे चढ़ गया। हिड़मावादियों का जमावड़ा लगाया गया। तमाम बातें, तरीके, टेक्निक्स अपनाई गई अथवा अपनाई जा रही हैं। जेन-जी तो कोई भूल ही नहीं सकता। नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार को अपना आदर्श बनाने की कोशिश कैसे छूट जाएगी।
अब लेकर आए हैं नया-नवेला अरावली। न समझने की कोशिश न समझाने का प्रयास। मिला और लेकर भागो। जल्दी से लोगों तक पहुंचाओ। भ्रम फैलाओ। बताओ देश बर्बाद हो रहा है। बताओ क्या हो रहा है सिद्ध ही कर दो। सिद्ध करो या न करो, सच में बर्बाद ही कर दो। सिर्फ इसलिए क्योंकि हम ही सिर्फ जीत सकते हैं। हम ही सिर्फ लड़ सकते हैं। हम ही सिर्फ सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। और सबसे बड़ी बात, हम ही सिर्फ भारत की सनातन आत्मा को झकझोर सकते हैं। सनातनियों को जातियों की तनातनियों में फंसाए रख सकते हैं। जाति जनगणना भी एक हथियार था। आजमाया गया। सरकार बैकफुट पर आई, ऐलान हुआ।
यानि कहिए, किसान आंदोलन, अरावली, जीएसटी आंशिक, एक्यूआई, जाति जनगणना जैसे विषयों में साढ़े 11 वर्षीय शक्ति झुकी, रुकी, ठिठकी, झिझकी, पीछे हटी। लेकिन इतना काफी नहीं है। 240 सीटों के बाद से जकड़न और बढ़ाई गई। हर मोर्चे पर इंगेजमेंट बढ़ाया गया। एक सिरा पकड़कर दौड़ाया गया। लेकिन धन्य है भारत। जितना पीछे खींचा जा रहा है उतना ही रबर की तरह आगे की ओर बढ़ा जा रहा है। एमपी, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, हरियाणा के नतीजे बता रहे हैं सकारात्मक लोगों की संख्या दुनिया में बढ़ रही है।
अरावली न्यू अराइवल्स है। ज्यों बाजार में नया प्रयोग होता है सेल्स बढ़ाने का। ज्यों नए ग्राहकों को जोड़ने की जो पहल होती है। ज्यों ग्राहकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश होती है। वैसे ही यह नया अराइवल्स है। ऑफर्स का पहाड़ है। न फिक्र बाजार की न फिक्र माल की, फिक्र है सिर्फ लोगों को भरमाने की। सेल्स बढ़ाने की। बस इसलिए जब धर्म का धागा मजबूत हो गया। संस्कृति का तार करंट का वाहक बन गया। आत्मचेतना का भाव अपने उरूज पर आने लगा तो हड़बड़ी और घबराहट बढ़ना लाजिमी है।
नया ढंग है अरावली। नए रूप में चीजों को पकड़ने का प्रयास है। लेकिन मकसद सिर्फ एक है, साढ़े 11 वर्षीय शक्ति के पुंज को बुझा डालना। रोक देना। थमा देना। ठहरा देना। झौंक देना वापस देश को आंतरिक उन्माद, तुष्टिकरण में। लेकिन लोग ज्यादा सतर्क हैं। खऱाब समूह के अच्छे लोगों की भी उपेक्षा कर रहे हैं। क्योंकि वे डर रहे हैं, कहीं खराब समूह न शक्तिपुंज बन जाए इस वक्त। राज्यों के चुनावी नतीजे बता रहे हैं, औसत काम करने वाली भाजपा की सरकारें भी विकराल और विशाल बहुमतों से वापसी कर रही हैं। लोग चूकना नही चाहते। रुकना नही चाहते। भूलना नहीं चाहते। कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। ऐसे में अगर कोई चार सौ पार का ख्वाब पाल ले तो बुरा कुछ नहीं।

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