बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
हाल ही में संघ के मुखपत्र द ऑर्गेनाइजर ने अपनी संपादकीय में मोदी और उनकी भाजपा को चेताया है। संघ ने अपनी संपादकीय में स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा को क्षत्रपों की उपेक्षा नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर किसी का बचाव नहीं करना चाहिए। जनता के साथ डिस्कनेक्ट को समय रहते खत्म करना चाहिए। द ऑर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने अपनी संपादकीय में कर्नाटक चुनाव की हार की वजह इन सभी मुद्दों को बताया है। अब हम समझते हैं कि इसका असर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा की अच्छी प्रजेंस वाले राज्यों पर क्या पड़ सकता है।
सबसे पहले बात छत्तीसगढ़ की
छत्तीसगढ़ में शीर्ष भाजपा नेताओं की सूची बहुत लंबी है, लेकिन एक किसी चेहरे की जब बात आती है तो खोजना मुश्किल हो जाता है। हाल ही में भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अरुण साव को जिम्मेदारी दी है। माना जा रहा है वे प्रदेश के सबसे बड़े ओबीसी समाज से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए उन्हें पार्टी आगे बड़ी भूमिका में ला सकती है। इसी बात के समानांतर पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की 15 सालों की उपलब्धियों पर चर्चा और उनके अभी तक राज्य में एक्टिव रहने से लगता है वे भी रेस में फिर से शामिल हो गए हैं। इनके अलावा पार्टी ने अपने स्तर पर अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल, धरमलाल कौशिक जैसे ओबीसी नेता तैयार किए हैं तो रेणुका चौधरी, रामविचार नेताम, केदार कश्यप जैसे आदिवासी नेता भी नर्चर किए हैं। इनके अलावा सरोज पांडे, संतोष पांडे, विजय शर्मा समेत कई ब्राह्मण नेता भी पार्टी ने तैयार कर लिए हैं। परंतु सवाल ये है कि इनमें से कौन है, जो पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी ले सकता है। द ऑर्गेनाइजर में लिखे आलेख के मुताबिक मोदी और शाह को पार्टी को केंद्रीकृत करके चलाने के तौर-तरीकों को लेकर आगाह किया गया है। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ भाजपा की कमान भी किसी ने किसी एक हाथ में देने की जरूरत है। ओम माथुर मेहनत कर रहे हैं, लेकिन अभी तक प्रदेश में पार्टी परसेप्शन और माहौल के मामले में पीछे है। मौजूदा चुनावों को बारीकी से देखें तो समझ आता है माहौल और परसेप्शन चुनाव के नतीजे तय कर रहे हैं। फिलवक्त बघेल का परसेप्शन 2004 का शाइनिंग इंडिया जैसा नहीं है।
अब एमपी समझिए
एमपी में अभी शिवराज सिंह चौहान की सरकार है। इसी साल यहां चुनाव होंगे। वर्तमान में सरकार की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा रही। मुख्यमंत्री चौहान लगातार नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं। हाल में उनकी लाडली बहना योजना सुर्खियों में है। मध्यप्रदेश में भाजपा साढ़े 18 साल से राज कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2005 में मुख्यमंत्री बने थे। यानि इन्हें भी सीएम बने हुए 16 सालों से अधिक समय हो गया। चौहान मध्यप्रदेश के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। लेकिन हाल ही में सरकार को लेकर मिल रहे फीडबैक ने भाजपा और संघ के माथे पर बल ला दिया है। बताया जा रहा है कि इस फीडबैक में पार्टी की हालत अच्छी नहीं है। द ऑर्गेनाइजर में लिखे आलेख के दो ही दिन बाद शिवराज सिंह चौहान 10 जून को सुबह-सुबह पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के पास मिलने जा पहुंचे। यह इसलिए अहम है क्योंकि चौहान और उमा के बीच लंबे समय से तल्खी चल रही है। उमा भारती का दर्द ये है कि मध्यप्रदेश में 10 साल पुरानी दिग्विजय सिंह की सरकार को उन्होंने 2003 में उखाड़ फेंका था, लेकिन राज कर रहे हैं शिवराज सिंह चौहान। जबकि चौहान उमा भारती का मध्यप्रदेश में कोई दखल नहीं चाहते। वे इसमें बीते साढ़े 16 सालों से सफल भी हैं। लेकिन हाल ही में उमा भारती ने उनको घेरना शुरू किया है। नतीजे में चौहान बैकफुट पर रहे, परंतु अब वे खुद से उनसे मिलने गए। उमा भारती ने भी वॉर्म वेलकम किया। यानि यह कह सकते हैं, ऑर्गेनाइजर की संपादकीय के अनुरूप चौहान ने भी मिलना उचित समझा और मोदी और शाह की भाजपा भी अब शिवराज सिंह चौहान जैसे क्षेत्रीय मजबूत खंभे को नहीं हिलाएंगे, जिसकी कोशिश अरसे से चल रही है। इतना ही नहीं इस भेंट के एक मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि अब प्रदेश से पार्टी के अध्यक्ष वीडी शर्मा की विदाई भी लगभग तय है। इनके स्थान पर कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, सुमेर सिंह सोलंकी, फग्गन कुलस्ते, प्रहलाद पटेल के नाम चल रहे हैं।
राजस्थान में महाराणी फिर महारानी
द ऑर्गेनाइजर के आलेख से पहले से ही राजस्थान में महाराणी फिर से महारानी बनती दिख रही हैं। उनके धुर विरोधी गुलाब चंद कटारिया को ओवर-नाइट राज्यपाल बनाकर राज्य के बाहर कर दिया तो प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी फैसला कर लिया गया। एक और विरोधी ओम माथुर को भी छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाकर भेज दिया गया। अब सवाल ये है कि क्या वसुंधरा गहलोत को पटखनी दे पाएंगी।
तो हम क्या देखेंगे आगे
तो हम आगे देखेंगे संघ की इस सलाह का असर होना चाहिए। इसमें मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए जाएंगे। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद का चेहरा दे दिया जाएगा। राजस्थान में वसुंधरा राजे को और उभारा जाएगा। लोकसभा में हेमंता बिस्वसर्मा अहम भूमिका में होंगे। योगी आदित्यनाथ हिंदी बेल्ट को लीड कर रहे होंगे। मोदी अपने आपको दक्षिणी राज्यों में सक्रिय रखेंगे। संभव है महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात जैसे बड़े राज्यों में शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडनवीस बड़े चेहरे बनकर उभरें।
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