#NindakNiyre: किस करवट बैठेगा छत्तीसगढ़ का सियासी ऊंट, इन विधायकों की चिंता, जाएं तो कहां जाएं?

chhattisgarh assembly election 2023 : छत्तीसगढ़ में 2003 से लेकर अब तक हुए चुनावों में तीसरी ताकत का भी स्पेस रहा है। यह स्पेस झारखंड

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  • Publish Date - March 29, 2023 / 11:18 AM IST,
    Updated On - March 29, 2023 / 11:18 AM IST

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक, IBC-24

chhattisgarh assembly election 2023 : छत्तीसगढ़ में 2003 से लेकर अब तक हुए चुनावों में तीसरी ताकत का भी स्पेस रहा है। यह स्पेस झारखंड जैसा सिग्नीफिकेंट तो नहीं है, लेकिन प्रभावशाली है। बीते 2018 के चुनाव में तीसरी ताकत ने 11 फीसदी वोट हासिल किए थे। इसमें जोगी कांग्रेस और बसपा का गठबंधन था। इस गठबंधन ने 7 सीटें जीती थी। अब जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बसपा ढह रही है तो राज्य में जोगी कांग्रेस भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में जोगी कांग्रेस से जीते विधायकों का क्या होगा और बसपा भी अगर भाजपा की टीम—ी बनकर प्रदेश में काम करने पर उतरती है तो बसपा के दो विधायकों का क्या होगा, एक बड़ा सवाल है। नमस्कार, मैं हूं बरुण सखाजी और आप देख रहे हैं आईबीसी-24 और खबर बेबाक।

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कहां जाएंगे धरमजीत

लोरमी के दिग्गज नेता और कांग्रेस में बड़ी हैसियत में रह चुके धरमजीत सिंह कहां जाएंगे, फिलहाल कहना मुश्किल तो नहीं है लेकिन कहने से बचना चाहिए। जोगी कांग्रेस उन्हें पार्टी से बाहर कर चुकी है। फिलहाल वे विधानसभा में बहैसियत असंबद्ध विधायक बैठ रहे हैं। बीते दिनों धरमजीत सिंह की अमित शाह से मुलाकात और लगातार भाजपा नेताओं के साथ बैठक-उठक कुछ इशारे कर रही हैं। वे अपने क्षेत्र के दिग्गज नेता तो हैं ही, साथ ही अपने वाकचातुर्य और बौद्धिक कौशल से मुद्दों को बुलंदी से उठाने में भी सक्षम हैं। ऐसे में धरमजीत जहां जाएंगे वहां फायदेमंद होंगे। अभी तक की सियासत में यह साफ है कि वे अपने पुराने दल में शायद ही जाएं। अब सवाल ये है कि जाएंगे तो लड़ेंगे कहां से? फिलहाल यह बहुत साफ नहीं है, लेकिन लोरमी के अलावा तखतपुर उनके प्रभाव वाला क्षेत्र जरूर है।

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क्या करेंगे प्रमोद शर्मा

प्रमोद शर्मा बलौदा बाजार से जोगी कांग्रेस से विधायक हैं। 2020 में मरवाही में हुए उपचुनाव में प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह साथ में कांग्रेस का प्रचार करते नजर आए थे। वे खुल तौर पर कह रहे थे अजीत जोगी के स्वर्गवास के बाद जोगी कांग्रेस में वे नहीं रहेंगे। कांग्रेस में जो जिम्मेदारी मिलेगी वह निभाएंगे। लेकिन बाद में देवव्रत सिंह के निधन के बाद प्रमोद शर्मा इस मसले पर मौन हो गए। देखना होगा वे कहां जाएंगे। उनकी बैठक-उठक सामानांतर दोनों दलों में हैं। उनकी राजनीतिक मौजूदगी और रणनीति को देखते हुए कम ही संभावना है कि उन पर कोई दल बतौर विधायक प्रत्याशी दांव लगाएगा।

क्या चंद्रा, बंजारे भी कुछ सोच में हैं

हर साल छत्तीसगढ़ में लड़ती रही है। उसके राज्य में 4 से 5 लाख वोट निश्चित हैं। हर बार एक से लेकर 2 तक विधायक भी जीते हैं। जैजैपुर जैसी सामान्य सीट से बसपा के केशव चंद्रा जीत चुके हैं। वहीं भाजपा के युवा नेता सौरभ सिंह भी एक बार बसपा से विधायक रह चुके हैं। अब केशव चंद्रा के सामने भी यही संकट है। संभव है इतिहास अपने को दोहराए। केशव की कांग्रेस से अधिक नजदीकी है। यह तो नहीं कह सकते कि वे दल बदलेंगे, लेकिन बसपा ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में कोई नया समीकरण बनाया और वह केशव के लिए मुफीद नहीं रहा तो यह खतरा वे लेना नहीं चाहेंगे। इंदू बंजारे यंगेस्ट विधायकों में हैं। उनके पास लंबा करियर है। इसलिए वे सोच-समझकर कोई फैसला करेंगे। इंदू ने अब तक सधी हुई सियासत का परिचय दिया है। उनके मन की जानना फिलहाल कठिन है। बसपा के 2023 में उभरने वाले समीकरणों में वे फिट नहीं बैठी तो क्या करेंगी यह हमें 2023 में ही पता चल पाएगा।

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और इनका क्या होगा

जोगी-बसपा गठबंधन के ऐसे कई नेता थे, जिन्होंने हारकर भी जीतने वालों को नाको चने चबवा दिए थे। इनमें अनिल टाह, ब्रजेश साहू, वाणी राव, गीतांजलि पटेल, संतोष कौशिक, जयंत पाटले, ऋचा जोगी, अमित जोगी, सियाराम कौशिक, बारमते आदि शामिल हैं। अमित जोगी, ऋचा जोगी को छोड़कर अधिकतर कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस में आकर इनकी चुनावी मौजूदगी अभी तक तो नजर नहीं आई है। इससे अनुमान ये जरूर लगाया जा सकता है कि ये सब पार्टी का काम करते हुए अगर भूपेश सरकार रिपीट होती है तो निगम, मंडल की अपेक्षा जरूर कर सकते हैं।

जनमत कर सकते हैं प्रभावित

2023 में डूबती नाव में तो कोई नहीं बैठना चाहेगा, लेकिन समस्या ये है कि डूबती नाव है कौन सी किसी को फिलहाल पता नहीं चल पा रहा। जाहिर है यह तमाम ऐसे नेता हैं जिनकी अपने क्षेत्रों में धमक है। इसलिए इन्हें कोई जिताऊ भले न माने, लेकिन नतीजों को प्रभावित तो कर ही सकते हैं।