आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास के बीच एक महीन रेखा होती है। अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना ‘आत्मविश्वास’ है, लेकिन अपनी क्षमताओं पर एकतरफा और सारे किंतु-परंतु से परे होकर विश्वास करना ‘अति आत्मविश्वास’ है | जब किसी का अति आत्मविश्वास भी अपनी सीमा लांघ जाए तो वो ‘अहंकार’ में रूपांतरित हो जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इन दिनों आत्मविश्वास और अतिआत्मविश्वास की महीन सीमा रेखा पर खड़े हैं। हालांकि विपक्ष की नजर में मोदी का आत्मविश्वास अब अहंकार में तब्दील हो चुका है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी विपक्षी नजरिये से बेपरवाह है। वो अपनी तीसरी पारी को लोकर पूर्णतः आश्वस्त हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का अपने थर्ड टर्म के प्रति कॉन्फिडेंस लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर परिलक्षित हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने ये कहकर कि अगले स्वतंत्रता दिवस पर भी वो इस लालकिले पर तिरंगा फहराएंगे, अप्रत्यक्ष रूप से विपक्ष को खुली चुनौती दे दी है, कि ‘आऊंगा तो मैं ही’ रोक सको तो रोक लो। अंदाज ठीक वैसा था, अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा के जवाब वाला। तब संसद में मोदी ने विपक्ष को ये समझाइश देकर उसका मजाक उड़ाया कि वो उनके तीसरे कार्यकाल में पूरी तैयारी के साथ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए।
प्रधानमंत्री मोदी के तेवरों में ये बदलाव विपक्षी दलों के गठबंधन के बाद आया है। ‘एक अकेला सब पर भारी’ के आत्मविश्वास से लबरेज मोदी को रोकने के लिए जब उन ‘सब’ ने एकजुट होकर मोदी पर ‘भारी’ पड़ने की कवायद शुरू की तो मोदी ने इसका रणनीतिक जवाब प्रति आक्रमण की नीति से देने का फैसला किया। 23 जून को पटना में विपक्षी दलों के पहले महजुटान के ठीक 4 दिन बाद ही मोदी ने भोपाल में आयोजित भाजपा के बूथ प्रभारियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया था। तब मोदी ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण की जिन तीन बुराइयों को चिन्हित करते हुए विपक्षी गठबंधन के खिलाफ एजेंडा ‘सेट’ किया था, उसे अब वो मतदाताओं के मनोमस्तिष्क में ‘फिट’ करने में जुट चुके हैं। यही वजह है कि वो जनता से संवाद के हर खास मौके पर वो खुद को भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण से लड़ने वाले योद्धा के तौर पर पेश करते आ रहे हैं।
स्वतंत्रता दिवस की 77वीं वर्षगांठ के मौके पर राष्ट्र के नाम संबोधन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपने उसी एजेंडे को नया विस्तार दिया है। उनके भाषण में अप्रत्यक्ष रूप से चुनावी एजेंडे के वो सारे तत्व मौजूद थे जो वो पिछले कुछ दिनों से अपनी चुनावी सभाओं और कार्यक्रमों में करते आ रहे हैं। उन्होंने संकेतों में विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A. पर ही निशाना साधा। प्रधानमंत्री ने अपने अब तक के परफारमेंस का हवाला देकर दावा किया कि उन्होंने अब तक जो कहा है वो उन्होंने करके दिखाया है और आज जो वो कह रहे हैं उसे भी वो करके दिखाएंगे। यानी प्रधानमंत्री ने ना केवल चुनावी एजेंडे को पुख्ता किया बल्कि विकसित भारत का भरोसा दिलाकर लाल किले की प्राचीर से ‘परिवारजनों’ से अपनी तीसरी पारी के लिए आशीर्वाद भी मांग लिया। साथ ही उन्होंने विश्वकर्मा योजना, होमलोन में इंट्रेस्ट की छूट जैसी नई योजनाओं को लागू करने का ऐलान करके भाजपा के हितग्राही वोट बैंक का विस्तार भी किया। विश्वकर्मा योजना के बारे में बताते हुए उन्होंने OBC और पसमांदा वर्ग का जिक्र करके अप्रत्यक्ष रूप से जातीय कार्ड भी खेल दिया।
स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व के मौके का चुनावी इस्तेमाल करना विपक्ष को रास नहीं आया है। विपक्षी नेताओं ने पलटवार किया है कि मोदी अगले स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराएंगे जरूर लेकिन अपने घर पर। विपक्षी दलों को अपने गठबंधन की एकता और उससे निर्मित नये सियासी समीकरणों की सफलता पर भरोसा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी गठबंधन से बेपरवाह अपनी तीसरी पारी के प्रति पूर्ण आश्वस्त नजर आ रहे हैं। लालकिले से कहे गए उनके वाक्यों पर गौर फरमाइए-‘अगली बार 15 अगस्त को इसी लाल किले से मैं आपको देश की उपलब्धियां और सफलता का गौरवगान उससे भी अधिक आत्मविश्वास के साथ, आपके सामने प्रस्तुत करूंगा. ना तो कोई इफ है, ना कोई बट है।’
प्रधानमंत्री मोदी भले अपनी तीसरी पारी की राह में किसी ‘इफ’ और ‘बट’ की गुंजाइश नहीं देखते हों लेकिन उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि कुछ ऐसा ही अतिआत्मविश्वास 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के सिपहसालारों को भी था। तब भी शाइनिंग इंडिया के प्रभामंडल और अटल बिहारी जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरे के बूते भाजपा के रणनीतिकार सरकार रिपीट होने के प्रति आश्वस्त थे। इसी कॉन्फिडेंस के चलते तब भाजपा ने समय से पूर्व चुनाव मैदान में जाने का आत्मघाती फैसला ले लिया था। लेकिन तब ये दांव भाजपा को उल्टा पड़ गया था। लेकिन तब और आज की परिस्थितियों में सबसे बड़ा अंतर ये है कि तब की भाजपा ‘अटल-आडवाणी’ की भाजपा थी और आज की भाजपा ‘मोदी-शाह’ की भाजपा है। ये अंतर ही प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी पारी के प्रति भाजपा के भरोसे का असली आधार है।
जैसा मैंने इस लेख की शुरुआत में कहा था कि आत्मविश्वास और अतिआत्मविश्वास में बड़ा बारीक अंतर होता है और इस अंतर का जरा सा अतिक्रमण होने से वो अहंकार में परिवर्तित हो जाता है। अब प्रधानमंत्री मोदी के अपनी तीसरी पारी के प्रति आश्वस्ति भाव को आप उनका आत्मविश्वास मानें, अति आत्मविश्वास मानें या फिर अहंकार, ये आपकी मर्जी। मोदी ने तो कह ही दिया है कि ‘आऊंगा तो मैं ही।’
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