Paramhans_Shrirambabajee: कम में ज्यादा देखने का भाव आनंद में रहने का महामंत्र है…

Paramhans_Shrirambabajee: कम में ज्यादा देखने का भाव आनंद में रहने का महामंत्र है…
Modified Date: December 2, 2025 / 06:12 pm IST
Published Date: December 2, 2025 6:12 pm IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव

थोड़े में बहुत कुछ देखना या बहुत कुछ में थोड़ा। यह हमारे ऊपर निर्भर करता। हम क्या देखते हैं। हम संसारी जरूरत की आड़ में बहुत कुछ में भी थोड़ा देखते हैं। प्राप्त हुए में भी अप्राप्त खोजते हैं। परमहंस श्रीराम बाबाजी थोड़े में भी बहुत कुछ देखने की प्रेरणा देते थे। बहुत कम में बहुत ज्यादा होेने का भाव अगर जागृत हो जाए तो समस्या का अंत हो जाए। हर समस्या की जड़ में असल में हमारी जरूरत और भूखा मन है। हर वक्त कुछ चाहिए और बहुत कुछ चाहिए। जो मिल जाता है वह तो मिल ही जाता है, लेकिन उससे ज्यादा चाहिए होता है।

एक बस के सफर में पहले बस मिल जाने की मानसिक जद्दोजहद होती है। समय पर बसस्टॉप पहुंचने का मसला होता है। बस मिल जाती है तो सीट मिलने की, सीट मिल जाती है तो खिड़की वाली सीट मिलने की और खिड़की वाली सीट मिल जाती है तो बाजू में अपने अनुकूल व्यक्ति के आ जाने की इच्छा रहती है। इस ऊहोपोह में अपना सफर चलता रहता है। जरा भी प्रतिकूलता हुई तो हमारा सफर प्रभावित हो जाता है। यही हमारे जीवन में होता है। जीवन भी ऐसे ही चलता है। बहुत ज्यादा में भी कम देखता है। कम को तो खैर कुछ मानता ही नहीं। हम सभी अंगों के साथ स्वस्थ काया के साथ संसार में हैं, इसे हम कुछ मानते ही नहीं। दो वक्त का भोजन समय पर बिना किसी अड़चन के मिल रहा है, यह हमारी कामयाबी ही नहीं है। हमे चाहिए और बहुत कुछ चाहिए।

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ये चाहत ही अनंत होती जाती है और असली अनंत हमसे दूर होता जाता है। परमहंस श्रीराम बाबाजी इसके निषेध के कई स्तरों पर इंतजाम करते थे। हर चीज का समाधान घोर तपस्या नहीं। बड़े भारी आयोजन नहीं। बड़े हवन, मंत्र, पूजा पद्धतियां नहीं होती। हमारे मन की सुलझन हर समस्या का समाधान होती है। तनावमुक्ति के लिए परमहंस श्रीराम बाबाजी का एक ही महामंत्र काम कर सकता है। चलो और चलते रहो, न मलाल रखो न एक ही बात को लेकर उलझे रहो। सब होता है और हो जाता है। सब आता है और चला जाता है। जो आता है वह जाता है और जो जाता है वह आता है।

सुविधा ही दुविधा पैदा करती है। हर वक्त हर चीज के लिए सुविधा खोजी होना खराब है। मंतव्य और गंतव्य दोनों पर फोकस रखो, संसाधन स्वयं ही जुटते जाएंगे। जहां पहुंचना है वहां का सोचो, कैसे पहुंचना है वह हो जाएगा। जो करना है वह शुरू करो, पूर्ण, अपूर्ण के भय से कंपित न रहो। करो और करते चलो। सबका अच्छा सोचकर चलो। भय नहीं चिंता नहीं काल की ये चाल है अंजनी के लाल की। यही कहते थे महाराज जी। क्योंकि जरूरतें हमे सुविधाभोगी और भयभीत बनाती हैं, सुविधाएं हमें मंजिल से भटकाती हैं, दास बनाती हैं। दास बनना ही है तो ब्रह्म के बनो, भौतिक वस्तुओं के क्यों।

मिला हुआ शरीर ही सबसे बड़ी कृपा है। इसका अर्थ शरीर का पोषण करते रहना भर नहीं है। इसका अर्थ है शरीर को साधन मानकर अनंत तक की यात्रा करना है। इसे थकाओ, इसे दौड़ाओ, इसे जमकर उपयोग करो, इसकी सुनो कम इसे सुनाओ ज्यादा। संसार में पाई वस्तुओं में ज्यादा और कम मत देखो। यह जितनी हैं उतनी हैं और जितनी मिलना है उतनी मिल जाएंगी। इन्हें देखना ही है तो इनमे उस परमात्मा की कृपा देखो।

रायपुर में मेरे एक मित्र के घर गए। बड़ा आलीशान घर। अच्छा खानपान। अच्छा बैठक-उठक का इंतजाम। नौकर-चाकर, गाड़ियां आदि सब संपन्नता। महाराज जी का आसन लगा। आरती हुई। चरणों की पूजा की गई। समग्रता से स्वागत और भाव रहा। इन सबके बाद सारा परिवार बैठा। फिर कुछ कष्ट, तकलीफ पर बात शुरू हुई। एकाध घंटे के इस पूरे कार्यक्रम में दुखों का सागर डिस्कस हो गया। महाराज जी ने कहा, चलो धरो तो सामान। चिंता मत करो सब तो है। सभे सब चइए जो है वो देख नई रै। जो है बा में है देखो नै नई। इतना कहकर सामान गाड़ी में रखा जाने लगा। वहां विराजमान लोगों को लगा उत्तर तो मिला नहीं। बुंदेली में बोले महाराजजी के इन वचनों का मैंने हिंदी में अनुवाद और इंटरप्रिटेशन करके दिया तो कुछ को समझ आया कुछ को नहीं।

जब हम थोड़े में बहुत देखेंगे तो खुश रहेंगे, बहुत में थोड़ा देखेंगे तो दुखी। यह बहुत सरल सिद्धांत है। यही वाक्य आनंद का विराट द्वार है। इसलिए महाराज जी ने कभी अपने आश्रम, वचन, प्रवचन नहीं बनाए, व्यवस्था नहीं बनाई, गुरु-चेला परंपरा नहीं बनाई, दीक्षा-भिक्षा में नहीं उलझे, पूजन की कोई तय पद्धतियां नहीं बनाईं। न कोई अधिकृत व्यक्ति बनाए न अनाधिकृत। न कोई दीक्षित चेला, न कोई बातों का ठेकेदार। जिसे जो समझ आ जाए वही सच।

अगली बार बात करेंगे परमहंस श्रीराम बाबाजी का संसार और सार।

shrirambabajee.com


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Associate Executive Editor, IBC24 Digital