जीएम सरसों : न्यायालय ने पूछा, जीईएसी ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर क्यों विचार नहीं किया

जीएम सरसों : न्यायालय ने पूछा, जीईएसी ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर क्यों विचार नहीं किया

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  • Publish Date - January 11, 2024 / 08:45 PM IST,
    Updated On - January 11, 2024 / 08:45 PM IST

नयी दिल्ली, 11 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र से सवाल किया कि आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों की जैव सुरक्षा पर अदालत द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) की रिपोर्ट पर जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा ध्यान क्यों नहीं दिया गया।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा कि क्या जीईएसी या विशेषज्ञों की उप-समिति ने ट्रांसजेनिक सरसों संकर डीएमएच-11 को पर्यावरणीय स्तर पर जारी किये जाने की मंजूरी देने के 25 अक्टूबर, 2022 के फैसले से पहले टीईसी द्वारा दायर रिपोर्टों पर कभी विचार किया था।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि एक वैधानिक निकाय होने के नाते जीईएसी को इन रिपोर्टों पर विचार नहीं करना चाहिए, लेकिन पर्यावरणीय रूप से इसे जारी करने के लिए आगे बढ़ने से पहले हर प्रासंगिक वैज्ञानिक निष्कर्ष पर विचार किया गया है।

उनके इस तर्क का जवाब देते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘हम ऐसा क्यों पूछ रहे हैं इसका कारण यह है कि जीईएसी शून्य में काम नहीं कर रहा था। यह अनियंत्रित नहीं है। ये रिपोर्टें हैं जिनमें अदालत को इस मुद्दे पर सौंपी गई एक असहमति रिपोर्ट भी शामिल है। यदि जीईएसी या विशेषज्ञों की उप-समिति इसपर विचार नहीं कर रही है तो क्या ये रिपोर्ट रिकॉर्ड रूम को भेज दी जाएंगी?’’

उन्होंने वेंकटरमणी को बताया कि वर्ष 2012 की टीईसी रिपोर्ट, इसके सदस्य आर एस परोदा के असहमति नोट के साथ, अदालत के रिकॉर्ड में पड़ी हुई है।

उन्होंने पूछा, ‘‘यदि जीईएसी को इन दस्तावेजों पर विचार नहीं करना है तो इन रिपोर्टों को क्या महत्व दिया जाना चाहिए?’’

वेंकटरमणी ने कहा कि टीईसी की सिफारिशों और केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि जीएम फसलों के पर्यावरणीय जोखिम मूल्यांकन के लिए एक व्यापक, पारदर्शी और विज्ञान-आधारित ढांचा सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2012 से नियामकीय व्यवस्था को और मजबूत किया गया है।

ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच-11 को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा विकसित किया गया है।

सरकार ने वर्ष 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए अबतक केवल एक जीएम फसल – बीटी कपास – को मंजूरी दी है।

इस मामले पर सुनवाई 16 जनवरी को फिर शुरू होगी।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय