सरकार ने केजी-डी6 विवाद में रिलायंस-बीपी से 30 अरब डॉलर का मुआवजा मांगा

सरकार ने केजी-डी6 विवाद में रिलायंस-बीपी से 30 अरब डॉलर का मुआवजा मांगा

सरकार ने केजी-डी6 विवाद में रिलायंस-बीपी से 30 अरब डॉलर का मुआवजा मांगा
Modified Date: December 29, 2025 / 04:25 pm IST
Published Date: December 29, 2025 4:25 pm IST

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (भाषा) केंद्र सरकार ने कृष्णा-गोदावरी बेसिन के केजी-डी6 गैस क्षेत्र से प्राकृतिक गैस उत्पादन का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने के मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसकी साझेदार बीपी से 30 अरब डॉलर से अधिक का मुआवजा मांगा है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है।

घटनाक्रम से परिचित सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने यह दावा तीन-सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष पेश किया है। करीब 14 साल पुराने इस मामले पर सुनवाई सात नवंबर को पूरी हो चुकी है।

सूत्रों ने बताया कि न्यायाधिकरण अगले वर्ष किसी समय इस मामले में अपना फैसला सुना सकता है। फैसले से असंतुष्ट पक्ष के पास उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का विकल्प होगा।

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हालांकि इस संदर्भ में रिलायंस इंडस्ट्रीज और बीपी ने तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की।

सरकार का आरोप है कि दोनों साझेदारों ने केजी-डी6 ब्लॉक में जरूरत से ज्यादा बड़ी सुविधाएं विकसित कीं, लेकिन वे प्राकृतिक गैस उत्पादन के निर्धारित लक्ष्यों को हासिल कर पाने में नाकाम रहे।

मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान सरकार ने उत्पादित नहीं की जा सकी गैस का मौद्रिक मूल्य मांगने के साथ ही प्रतिष्ठानों पर अतिरिक्त खर्च, ईंधन विपणन और ब्याज पर भी मुआवजा मांगा है। इन सभी दावों का कुल मूल्य 30 अरब डॉलर से अधिक आंका गया है।

इस विवाद की जड़ केजी-डी6 ब्लॉक के धीरूभाई-1 और धीरूभाई-3 (डी1 और डी3) गैस क्षेत्रों से जुड़ी है। सरकार का कहना है कि रिलायंस ने स्वीकृत निवेश योजना का पालन नहीं किया, जिससे उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो सका।

डी1 और डी3 क्षेत्रों में उत्पादन 2010 में शुरू हुआ था लेकिन उसके एक साल बाद से ही गैस उत्पादन अनुमानों से पीछे रहने लगा और फरवरी 2020 में ये दोनों गैस क्षेत्र अपने अनुमानित जीवनकाल से काफी पहले ही बंद हो गए।

रिलायंस ने प्रारंभिक क्षेत्र विकास योजना में 2.47 अरब डॉलर के निवेश से प्रतिदिन चार करोड़ मानक घन मीटर गैस उत्पादन का लक्ष्य रखा था। बाद में 2006 में इसे संशोधित कर 8.18 अरब डॉलर का निवेश और मार्च 2011 तक 31 कुओं की ड्रिलिंग के साथ उत्पादन दोगुना करने का अनुमान जताया गया।

हालांकि कंपनी केवल 22 कुएं ही खोद सकी, जिनमें से 18 से ही उत्पादन शुरू हो पाया। रेत और पानी के घुसने से कुएं समय से पहले ही बंद होने लगे। इसकी वजह से इस क्षेत्र के गैस भंडार का अनुमान 10.03 लाख करोड़ घन फुट से घटाकर 3.10 लाख करोड़ घन फुट कर दिया गया।

सरकार ने इस स्थिति के लिए रिलायंस-बीपी को जिम्मेदार ठहराते हुए शुरुआती वर्षों में किए गए 3.02 अरब डॉलर के खर्च को लागत वसूली गणना से बाहर कर दिया। रिलायंस ने इसका विरोध करते हुए कहा कि उत्पादन साझेदारी अनुबंध (पीएससी) में सरकार को इस आधार पर लागत वसूली रोकने का अधिकार नहीं है।

कंपनी ने 2011 में इस मामले में मध्यस्थता का नोटिस दिया था लेकिन न्यायाधिकरण के गठन को लेकर विवाद के चलते कार्यवाही वर्षों तक रुकी रही।

उच्चतम न्यायालय द्वारा जनवरी, 2023 में सरकार की याचिका खारिज किए जाने के बाद ही मध्यस्थता की सुनवाई शुरू हो सकी थी।

केजी-डी6 ब्लॉक में रिलायंस की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत, बीपी की 30 प्रतिशत और निको की 10 प्रतिशत थी। बाद में निको के बाहर निकलने पर रिलायंस की हिस्सेदारी बढ़कर 66.66 प्रतिशत हो गई, जबकि शेष हिस्सा बीपी के पास है।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण


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