आईएलएण्डएफएस मामला: सेबी ने इक्रा, केयर रेटिंग्स दोनों पर जुर्माना बढ़ाकर किया एक-एक करोड़ रुपये

आईएलएण्डएफएस मामला: सेबी ने इक्रा, केयर रेटिंग्स दोनों पर जुर्माना बढ़ाकर किया एक-एक करोड़ रुपये

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  • Publish Date - September 22, 2020 / 04:01 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:04 PM IST

नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आईएलएफएस के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर की ऋण साख तय करते समय कोताही बरतने को लेकर रेटिंग एजेंसियों इक्रा और केयर रेटिंग्स पर जुर्माना मंगलवार को बढ़ाकर एक-एक करोड़ रुपये कर दिया।।

नकदी संकट में फंसी ‘इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस’ (आईएल एण्ड एफएस) के निदेशक मंडल को सरकार ने बरखास्त कर दिया था। आईएलएफएस में गड़बड़ी का मामला सितंबर 2018 में सामने आया था और तब से कंपनी और उससे जुड़ी इकाइयों पर विभिन्न नियामकों की निगाह बनी हुई है।

बाजार नियामक सेबी ने दिसंबर 2019 में इक्रा और केयर रेटिंग्स पर 25-25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। सेबी का कहना था कि इन कंपनियों की ‘उदासीनता, ढीलेपन और टालमटोल के चलते’ आईएलएफएस के भुगतान में गड़बड़ी हुई।

कई विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी ने रेटिंग एजेंसियों के रवैये को लेकर काफी लताड़ लगायी है लेकिन यह उसके द्वारा लगाए जुर्माने में नहीं दिखती।

सेबी ने निर्णय अधिकारी (एओ) के आदेश की जांच की और पाया कि एओ द्वारा लगाया गया जुर्माना रेटिंग एजेंसियों के उल्लंघन से बाजार पर पड़े व्यापक प्रभाव के अनुरूप नहीं है। इसी दृष्टिकोण के साथ सक्षम प्राधिकारी ने एओ के निर्णय की समीक्षा की अनुमति दे दी। इसके बाद सेबी ने रेटिंग एजेंसियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया और उनसे पूछा कि उनके ऊपर जुर्माना क्यों नहीं बढ़ाना चाहिए।

मंगलवार को दो अलग-अलग आदेशों में सेबी ने इक्रा और केयर रेटिंग्स की ओर से आईएलएण्डएफएस और उसकी अनुषंगी आईएलएफएस फाइनेंशियल सर्विसेस (आईएफआईएन) की प्रतिभूतियों की रेटिंग तय करने में कोताही पायी। इसक वजह से निवेशकों को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।

इसके चलते सेबी ने दोनों कंपनियों पर जुर्माने को बढ़ाकर एक-एक करोड़ रुपये कर दिया।

सेबी ने कहा कि इन रेटिंग एजेंसियों पर हल्का जर्माना लगाने का दूसरी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को नुकसान हो सकता है जिन्होंने कानून का पूरी तरह से अनुपालन किया। उसने कहा, ‘‘बोर्ड को बाजार की सत्यनिष्टा की सुरक्षा की जरूरत है। जब इतने बड़े पैमाने पर घोटाला हाता है, जो कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिये बनाये गये नियामकीय और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है और उसके लिये चुनौती बनता है, तब यह अहम हो जाता है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के आचरण की सख्त जांच होनी चाहिये और जुर्माना बढ़ाकर निवेशकों के विश्वास को बहाल किया जाना चाहिये।’’

भाषा शरद महाबीर

महाबीर