उद्योग संगठन सरकार के साथ बैठक में मजदूरी की नई परिभाषा वापस लेने को कहेंगे

उद्योग संगठन सरकार के साथ बैठक में मजदूरी की नई परिभाषा वापस लेने को कहेंगे

उद्योग संगठन सरकार के साथ बैठक में मजदूरी की नई परिभाषा वापस लेने को कहेंगे
Modified Date: November 29, 2022 / 07:52 pm IST
Published Date: December 22, 2020 12:49 pm IST

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (भाषा) सीआईआई और फिक्की सहित उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि गुरुवार को श्रम मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान मजदूरी की नई परिभाषा को वापस लेने के लिए कहेंगे, जिससे सामाजिक सुरक्षा और कटौती बढ़ेगी, तथा हाथ में कम वेतन मिलेगा।

एक उद्योग सूत्र ने कहा, ‘‘अन्य उद्योग संगठनों के साथ ही सीआईआई और फिक्की के प्रतिनिधि 24 दिसंबर 2020 को केंद्रीय श्रम मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से मजदूरी की नई परिभाषा पर चर्चा के लिए मिलेंगे, जिसके एक अप्रैल 2021 से लागू होने की संभावना है।’’

सूत्र ने यह भी कहा कि उद्योग संगठन चाहते हैं कि सरकार नई परिभाषा को वापस ले, क्योंकि उन्हें डर है कि मजदूरी की नई परिभाषा से हाथ में आने वाले वेतन में भारी कटौती होगी और नियोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

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मजदूरी की नई परिभाषा पिछले साल संसद द्वारा पारित मजदूरी संहिता, 2019 का हिस्सा है। सरकार एक अप्रैल 2021 से तीन अन्य संहिताओं के साथ इसे भी लागू करना चाहती है।

नई परिभाषा के अनुसार किसी कर्मचारी के भत्ते, कुल वेतन के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकते। इससे भविष्य निधि जैसी सामाजिक सुरक्षा कटौती बढ़ जाएगी।

इस समय नियोक्ता और कर्मचारी, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजना में 12-12 प्रतिशत का योगदान करते हैं।

इस समय ज्यादातर नियोक्ता सामाजिक सुरक्षा योगदान को कम करने के लिए वेतन को कई भत्तों में विभाजित करते हैं। इससे कर्मचारियों के साथ ही नियोक्ताओं को भी मदद मिलती है। कर्मचारियों को हाथ में मिलने वाला वेतन बढ़ जाता है, जबकि नियोक्ता भविष्य निधि में योगदान कम करते हैं।

कुल वेतन के 50 प्रतिशत तक भत्ते को सीमित करने से कर्मचारियों की ग्रेच्युटी पर नियोक्ता का भुगतान भी बढ़ेगा, जो एक फर्म में पांच साल से अधिक समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को दिया जाता है।

सूत्र ने कहा कि उद्योग निकाय इस बात से सहमत हैं कि इससे श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ बढ़ेगा, लेकिन वे आर्थिक मंदी के कारण इसके लिए तैयार नहीं हैं। वे चाहते हैं कि नई परिभाषा को तब तक लागू न किया जाए, जब तक अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं आ जाती।

भाषा पाण्डेय मनोहर

मनोहर


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