सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच मांग कमजोर रहने से ज्यादातर तेल-तिलहन के भाव स्थिर

सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच मांग कमजोर रहने से ज्यादातर तेल-तिलहन के भाव स्थिर

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  • Publish Date - July 17, 2024 / 06:55 PM IST,
    Updated On - July 17, 2024 / 06:55 PM IST

नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) विदेशी बाजारों में तेजी के बीच स्थानीय मांग कमजोर रहने से घरेलू बाजारों में बुधवार को ज्यादातर तेल-तिलहनों के थोक दाम स्थिर रहे। वहीं उच्च आयवर्ग की थोड़ी मांग निकलने से मूंगफली तेल-तिलहन के दाम में तेजी आई।

लिवाली कमजोर रहने के कारण सरसों एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के थोक दाम अपरिवर्तित बंद हुए।

मलेशिया एक्सचेंज दोपहर साढ़े तीन बजे सुधार दर्शाता बंद हुआ। जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में मामूली सुधार चल रहा है।

बाजार सूत्रों ने कहा कि मंडियों में मूंगफली की आवक कम है। तेल पेराई मिलों को इसकी पेराई में नुकसान है क्योंकि पेराई के बाद मूंगफली तेल के भाव और बेपड़ता होते जा रहे हैं। इसकी अधिकांश फसल गुजरात में होती है और वहीं इसकी ज्यादातर खपत भी है। वहां के उच्च आयवर्ग के उपभोक्ताओं की हल्की मांग निकलने से मूंगफली तेल-तिलहन में सुधार दिखा।

उन्होंने कहा कि सरकार को इस बारे में गौर करना चाहिये कि आयातित खाद्य तेलों के बंदरगाह के थोक दाम 80-85-90 रुपये लीटर बैठते हैं। जबकि घरेलू खाद्य तेल के दाम 125-150 रुपये के लगभग बैठते हैं तो ऐसे में देशी खाद्य तेलों के लिवाली का प्रभावित होना निश्चित ही है। इसे दुरुस्त करने की ओर ध्यान दिया जाना चाहिये।

सूत्रों ने कहा कि वर्ष 2006-07 में सूरजमुखी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,550 रुपये क्विंटल था और सूरजमुखी तेल का दाम उस समय 60 रुपये लीटर था तथा उस समय सूरजमुखी सहित अन्य सभी ‘सॉफ्ट आयल’ पर आयात शुल्क अधिकतम 45 प्रतिशत था। उस समय पाम एवं पामोलीन तेल पर आयात शुल्क 75 प्रतिशत था। लेकिन मौजूदा परिस्थिति में सूरजमुखी का एमएसपी 7,220 रुपये क्विंटल है तथा 5.50 प्रतिशत के आयात शुल्क पर सूरजमुखी तेल का थोक दाम 81 रुपये लीटर है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2006-07 से अब तक की अवधि में सूरजमुखी तेल का दाम महज 35-40 प्रतिशत बढ़ा है लेकिन सूरजमुखी के दाम में लगभग 450 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। तो इस परिस्थिति में देशी तेल मिलें कैसे चलेंगी? जबकि दूसरी ओर देश के आयातित सस्ते तेलों का ‘डम्पिंग ग्राउंड’ बनने का खतरा बढ़ रहा है। इसके लिए सरकार से कहीं अधिक जिम्मेदार खाद्य तेलों के कुछ बड़े संगठनों को माना जाना चाहिये जो मौजूदा समय में भी देश की तेल मिलों की दुर्दशा, उपभोक्ताओं को न मिलने वाली राहत, खुदरा बाजार में इन्हीं सस्ते आयातित तेलों के मंहगे दाम आदि के बारे में सरकार को अवगत नहीं करा पा रहे हैं। इससे अंतत: देशी तेल-तिलहन उद्योग का ही नुकसान होने का खतरा है।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 5,990-6,040 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,425-6,700 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,400 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,315-2,615 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,900-2,000 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,900-2,025 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,350 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,100 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,700 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,575 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,725 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,800 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,850 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,580-4,600 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,390-4,510 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश

राजेश अजय

अजय