रेलवे अपनी खाली जमीन का सिर्फ 0.14 प्रतिशत ही ‘डेवलपरों’ को दे पायाः कैग रिपोर्ट

रेलवे अपनी खाली जमीन का सिर्फ 0.14 प्रतिशत ही ‘डेवलपरों’ को दे पायाः कैग रिपोर्ट

रेलवे अपनी खाली जमीन का सिर्फ 0.14 प्रतिशत ही ‘डेवलपरों’ को दे पायाः कैग रिपोर्ट
Modified Date: December 18, 2025 / 10:10 pm IST
Published Date: December 18, 2025 10:10 pm IST

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रेलवे के पास मौजूद विशाल भूमि संपदा के व्यावसायिक उपयोग में गंभीर खामियों को उजागर किया है।

कैग की बृहस्पतिवार को संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2023 तक रेलवे अपनी लगभग 4.88 लाख हेक्टेयर भूमि में से केवल 62,740 हेक्टेयर यानी 13 प्रतिशत जमीन को ही खाली के रूप में चिन्हित कर सका था। इसमें से भी महज 87.76 हेक्टेयर यानी 0.14 प्रतिशत जमीन ही डेवलपरों को आवंटित की जा सकी थी।

रिपोर्ट कहती है, ‘मार्च 2023 तक आवंटित किसी भी व्यावसायिक स्थल का विकास नहीं हो सका, जिससे किराये से इतर राजस्व बढ़ाने की रेलवे की रणनीति विफल रही।’

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कैग रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रेल की आय मुख्य रूप से यात्री किराये और माल ढुलाई से ही आती है। यात्री किराया एक सीमित दायरे तक ही बढ़ाया जा सकता है, जबकि केवल माल ढुलाई पर निर्भर रहना दीर्घकालिक रूप से रेलवे के लिए टिकाऊ नहीं है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इस संदर्भ में गैर-किराया राजस्व, विशेषकर जमीन का मौद्रीकरण (किराया या पट्टे पर देना) रेलवे की वित्तीय रणनीति का अहम हिस्सा है।’

कैग ने कहा कि रेलवे भूमि के व्यावसायिक विकास के लिए 2006 में गठित रेल भूमि विकास प्राधिकरण (आरएलडीए) भी अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाया है।

रिपोर्ट के अनुसार, आरएलडीए को कुल खाली भूमि का केवल 1.59 प्रतिशत (997.83 हेक्टेयर) ही सौंपा गया है, जिसमें से मार्च 2023 तक सिर्फ 8.8 प्रतिशत भूमि ही विकसित करने के लिए आवंटित की जा सकी।

कैग ने रिपोर्ट में कहा कि कई मामलों में भूमि के स्वामित्व विवाद, अतिक्रमण और अन्य बाधाओं के बावजूद जमीनें आरएलडीए को सौंप दी गईं, जिससे उनके मौद्रीकरण का मकसद हासिल नहीं किया जा सका।

कैग को ऑडिट से पता चला कि वाणिज्यिक स्थलों के लिए रेलवे को मिले 188 प्रस्तावों में से केवल 59 जगहों को मंजूरी मिली, जबकि 69 प्रतिशत प्रस्ताव लंबित रहे।

रिपोर्ट में रेलवे की खाली जमीनों के वाणिज्यिक इस्तेमाल की योजना का ठीक से कार्यान्वयन न हो पाने के लिए जोनल रेलवे, आरएलडीए और रेल मंत्रालय तीनों स्तरों पर समन्वय और जांच में गंभीर चूक की बात कही गई है।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण


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