कोलकाता, नौ दिसंबर (भाषा) चावल निर्यातकों ने भारतीय चावल पर अमेरिका में अतिरिक्त शुल्क लगाने के खतरे को अधिक अहमियत न देते हुए मंगलवार को कहा कि मांग स्थिर बनी हुई है और अमेरिका को निर्यात की मात्रा कम होने से इस क्षेत्र पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
भारतीय चावल निर्यातक महासंघ के अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने कहा कि अमेरिका को बासमती चावल का निर्यात देश के 60 लाख टन वार्षिक निर्यात के तीन प्रतिशत से भी कम है, जबकि भारत के कुल चावल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे कुल चावल निर्यात में अमेरिकी बाजार बड़ा हिस्सा नहीं है और अन्य नए बाजार भी बढ़ रहे हैं।’’
गर्ग ने दोहराया कि अमेरिकी अधिकारियों द्वारा भारत पर लगाए चावल ‘डंपिंग’ के आरोप ‘पूरी तरह गलत’ हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका सालाना केवल लगभग 2.7 लाख टन भारतीय चावल का आयात करता है, जो भारत की वैश्विक उपस्थिति की तुलना में एक छोटी मात्रा है।
उनकी यह टिप्पणी वाशिंगटन में भारतीय चावल पर अतिरिक्त शुल्क लगाने पर चल रही चर्चाओं के बीच आई है, जिस पर पहले से ही 50 प्रतिशत शुल्क लगता है।
गर्ग ने कहा कि छह महीने पहले 10 प्रतिशत से शुरू हुआ और पिछले तीन महीनों में बढ़कर 25 प्रतिशत और फिर 50 प्रतिशत हो गए शुल्क का ‘‘मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नवंबर में निर्यात पिछले साल जैसा ही है।’’
उद्योग के जानकारों ने कहा कि किसी भी और शुल्क बढ़ोतरी का बोझ मुख्य रूप से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
राइसविला ग्रुप के सीईओ सूरज अग्रवाल ने कहा कि अमेरिका को निर्यात की जाने वाली भारतीय बासमती और प्रीमियम गैर-बासमती किस्में एशियाई और पश्चिमी एशियाई समुदायों के लिए आवश्यक मुख्य खाद्य पदार्थ हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ये जरूरत की चीजें हैं, विलासिता के सामान नहीं। मांग पर असर नगण्य होगा। किसी भी अतिरिक्त शुल्क का बोझ केवल अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।’’
भाषा राजेश राजेश प्रेम
प्रेम