देश में किफायती घरों की कमी ने बढ़ाई चिंता, मांग के मुकाबले एक तिहाई आपूर्ति: रिपोर्ट

देश में किफायती घरों की कमी ने बढ़ाई चिंता, मांग के मुकाबले एक तिहाई आपूर्ति: रिपोर्ट

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  • Publish Date - August 30, 2025 / 05:04 PM IST,
    Updated On - August 30, 2025 / 05:04 PM IST

नयी दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा) देश के शहरी क्षेत्रों में किफायती घरों की कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।

एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में किफायती मकानों की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उन्हें बनाने की रफ्तार बहुत धीमी हो गई है, जिससे इस क्षेत्र में एक बड़ा असंतुलन पैदा हो गया है।

रियल एस्टेट की परामर्शदाता कंपनी नाइट फ्रैंक इंडिया और नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि देश के आठ बड़े शहरों (मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे, कोलकाता और अहमदाबाद) में हालात चिंताजनक हैं।

पहले 2019 में जहां हर एक घर की मांग पर एक से ज्यादा घर बन रहे थे, वहीं 2025 की पहली छमाही (जून तक) में यह आंकड़ा गिरकर 0.36 रह गया है। इसका मतलब है कि मांग के मुकाबले सिर्फ एक-तिहाई घर ही बन रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि देश में शहरी किफायती घरों की वर्तमान कमी 94 लाख इकाई है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण 2030 तक यह कमी बढ़कर तीन करोड़ इकाई तक पहुंच सकती है।

नारेडको के अध्यक्ष जी हरि बाबू ने कहा कि नाइट फ्रैंक और नारेडको की रिपोर्ट से भारत में सस्ते मकानों की कमी की समस्या एक बार फिर सामने आई है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश में 94 लाख मकानों की कमी है, जो 2030 तक बढ़कर तीन करोड़ हो सकती है।

हरि बाबू ने कहा कि यह चिंता की बात है कि किफायती मकानों की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उनकी संख्या घट रही है। इसके अलावा निजी कंपनियों का निवेश भी बहुत कम है, जिससे यह समस्या और बढ़ रही है।

नाइट फ्रैंक इंडिया के चेयरमैन शिशिर बैजल ने कहा, ‘किफायती मकान सिर्फ एक सामाजिक जरूरत नहीं है, बल्कि एक आर्थिक आवश्यकता भी है। मांग के पक्ष में सरकारी समर्थन सराहनीय रहा है, लेकिन अब आपूर्ति की बाधाओं को दूर करना बेहद जरूरी है।’

भाषा योगेश पाण्डेय

पाण्डेय