रायपुर। भाजपा से राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने पार्टी के बड़े नेताओं को आड़े हाथ लिया है। विधानसभा चुनाव 2018 को लेकर उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता चुनाव के नतीजे भांप गए थे लेकिन नेताओं को बात देर से समझ आई। उनके इस बयान के कई सियासी निकाले जा रहे हैं। सवाल है कि साढ़े 4 साल बाद जब पार्टी अगले चुनाव की तैयारी में जुटी है तो उन्हें ये बयान क्यों देना पड़ा? क्या उनके बयान का कोई हिडन मतलब भी है? क्या पार्टी में अंदरखाने कोई पॉलिटिक्स चल रही है? क्या ये कार्यकर्ताओं को जोड़ने का कोई फॉर्मूला है और कांग्रेस इस पर तंज क्यों कस रही है।
छत्तीसगढ़ में 15 साल सत्ता संभालने के बाद मिली करारी हार को भाजपा अब तक नहीं भुला पा रही है। गाहे-बगाहे नेताओं की टीस बाहर आ रही है। इसी कड़ी में राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने बड़ा बयान दिया है। रायपुर में आयोजित विधानसभा स्तरीय बूथ सशक्तिकरण अभियान की समीक्षा के दौरान उन्होंने कहा कि ”15 साल हम सत्ता में रहे, परंतु चुनाव के दौरान नजीते हमारे कार्यकर्ता भांप गए थे, नेताओं को बात देर से समझ आई।” सरोज पांडेय का ये बयान पार्टी के दिग्गज नेताओं पर सीधा हमला है, लिहाजा पार्टी के बड़े नेता इस पर नपा-तुला रिएक्शन दे रहे हैं।
चुनाव के साढ़े साल बाद भी भाजपा पराजय की वजह तलाश रही है। इसे हार का गुबार कह लें या पार्टी की इंटरनल पॉलिटिक्स इस बयान से कांग्रेस को तंज कसने का खुला अवसर मिल गया है।
अगले विधानसभा चुनाव में अब करीब छह महीने ही बचे हैं लेकिन भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव के चक्रव्यूह से ही नहीं निकल पा रही है। सवाल है कि क्या वाकई बड़े नेता हार को भांपने से चूक गए थे और उन्हें कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करना भारी पड़ गया। यदि इसे मान लें तो क्या इस बार कार्यकर्ता BJP के संकटमोचक बनेंगे और उनकी पसंद टिकट का आधार बनेगी? आखिर BJP की हार का विलेन कौन है। ये सबसे बड़ा सवाल है।