Publish Date - September 9, 2025 / 12:45 PM IST,
Updated On - September 9, 2025 / 12:47 PM IST
Balod News/Image Source: IBC24
HIGHLIGHTS
आखिरी सफर बना यादगार,
जस गीत, झांकी में निकली अंतिम यात्रा,
बिहारीलाल यादव को ग्राम फुलझर ने दी अनोखी विदाई,
बालोद: Balod News: छत्तीसगढ़ के बालोद ज़िले के ग्राम फुलझर में 80 वर्षीय बिहारीलाल यादव की अंतिम यात्रा एक अनूठी अंतिम यात्रा साबित हो रही है। बिहारीलाल यादव की लोकप्रियता उनकी अंतिम यात्रा में शामिल लोगों की भीड़ से ही परिलक्षित हुई। ग्राम फुलझर में माटी के दुलारे बिहारीलाल की अंतिम विदाई में बच्चे, बूढ़े, जवान तथा महिला-पुरुष सम्मिलित हुए और नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। यही नहीं गाँव में उनकी अंतिम यात्रा जस गीत और झांकी प्रस्तुति के साथ निकाली गई जिसमें गाँव के युवा यमराज और अन्य वेशभूषा में नज़र आए।
Balod News: ग्रामीणों के अनुसार फुलझर निवासी 80 वर्षीय बिहारीलाल यादव अपने जीवनकाल में कुशल नृत्यकार, कुशल संगीतकार एवं महिला पात्र की भूमिका में रानी तारामती व मोरध्वज नाटक में रानी की भूमिका निभाते थे। उनके रुदन से समूचे दर्शकों की आँखों से आँसुओं की धारा थम नहीं पाती थी। गायन के क्षेत्र में जस गीत व फाग गीत की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे। रामायण में उन्होंने 100 से भी अधिक स्वरचित, अलिखित गीतों की मंचीय प्रस्तुति दी थी जिनके अंदाज़ को लोग बेहद पसंद करते थे।
Balod News: लोग मानते हैं कि उनके कारण ग्राम फुलझर को हमेशा सम्मान मिला। वे न केवल अपने ही गाँव, बल्कि आसपास के क्षेत्र में भी लोगों के बीच लोकप्रिय थे। इसी वजह से उनकी अंतिम यात्रा को जस गीत के माध्यम से बेहद सम्मान के साथ निकाला गया। इस दौरान गाँव के युवकों ने यमराज और धर्मराज की वेशभूषा धारण कर अंतिम यात्रा में सम्मिलित होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
बिहारीलाल यादव की अंतिम यात्रा में "जस गीत" का क्या महत्व था?
बिहारीलाल यादव जीवनभर जस गीतों के प्रस्तोता रहे, इसलिए उनकी अंतिम यात्रा में जस गीतों का प्रयोग उनकी कला और योगदान को सम्मान देने के लिए किया गया।
"ग्राम फुलझर बालोद" में ऐसी अनोखी अंतिम यात्रा क्यों निकाली गई?
फुलझर निवासी बिहारीलाल यादव गांव के लोकप्रिय कलाकार थे, जिन्होंने लोक-संस्कृति को जीवित रखा, इसलिए ग्रामीणों ने उन्हें अनोखी अंतिम यात्रा के माध्यम से श्रद्धांजलि दी।
"जस गीत" किस तरह का लोक गीत होता है?
जस गीत छत्तीसगढ़ का एक परंपरागत लोक गीत है, जिसे धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक अवसरों पर गाया जाता है, विशेष रूप से देवी-देवताओं की स्तुति में।
क्या "फुलझर बालोद" जैसे गाँवों में अब भी लोक नाटकों की परंपरा जीवित है?
हाँ, ऐसे गाँवों में अभी भी मोरध्वज, रामायण आदि लोकनाटकों की परंपरा जीवित है, जिनमें ग्रामीण भाग लेते हैं और पारंपरिक वेशभूषा के साथ मंचन करते हैं।
"बिहारीलाल यादव" किस प्रकार के नाटकों में भाग लेते थे?
वे मोरध्वज, रानी तारामती जैसे धार्मिक-ऐतिहासिक नाटकों में महिला पात्र की भूमिका निभाते थे और अपनी भावनात्मक अभिनय शैली से दर्शकों को भावविभोर कर देते थे।