Vishnu Ka Sushasan: ‘पकड़ लो छोड़ना नहीं’… जंगलों में नहीं अब खेल के मैदान में गूंजता है ये स्वर, खेल प्रतिभाओं के लिए बड़ा मंच बना बस्तर ओलंपिक, साय सरकार के प्रयासों से मिली नई पहचान
जंगलों में नहीं अब खेल के मैदान गूंजता है ये स्वर, Bastar Olympics becomes a big platform for sports talents
Vishnu Ka Sushasan. Image Source- IBC24
रायपुरः Vishnu Ka Sushasan: छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने दो साल पूरे कर लिए हैं। सत्ता संभालते ही साय सरकार ने यह संकेत दे दिया था कि उसकी प्राथमिकता केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर असर दिखाने वाली नीतियां होंगी। यही वजह है कि इन दो वर्षों को एक ओर जहां नक्सलवाद खत्म हुआ है तो दूसरी ओर वहां के खेल प्रतिभाओं को नया मंच मिला है। साय सरकार ने इसके लिए बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन की है। यह आयोजन केवल खेल प्रतियोगिता तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, समुदायिक उत्साह और युवा सशक्तिकरण का प्रतीक भी बन चुका है।ओलंपिक आयोजन से न केवल खेल क्षेत्र में नए सितारे उभर रहे हैं, बल्कि पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिली है।
बस्तर ओलंपिक अब सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं रहा, बल्कि आदिवासी संस्कृति, युवाओं की प्रतिभा और सामाजिक समरसता का बड़ा मंच बन चुका है। 2025 के बस्तर ओलंपिक में सात जिलों से करीब 3.9 लाख खिलाड़ियों ने पंजीकरण कराया था, जिसमें पुरुष, महिला, युवाओं के साथ साथ दिव्यांग और आत्मसमर्पित नक्सलियों ने भी भाग लिया। हर साल की भांति प्रतियोगिता ब्लॉक, जिला और संभाग स्तर में आयोजित की गई, जिसमें विविध खेल जैसे एथलेटिक्स, कबड्डी, तीरंदाजी, फुटबॉल, कराटे और भारोत्तोलन शामिल हैं। प्रतियोगियों की इस विशाल संख्या से स्पष्ट होता है कि खेल अब स्थानीय जीवन का अभिन्न हिस्सा बन रहा है और सामाजिक परिवर्तन का एक जरिया भी बनता जा रहा है।
पीएम मोदी ने भी की तारीफ
Vishnu Ka Sushasan: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के मार्गदर्शन में गृह (पुलिस) विभाग और खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में होने वाला यह आयोजन प्रदेश के रजत जयंती वर्ष में बस्तर की नई पहचान बना। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बस्तर के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ना और उनके भीतर निहित नैसर्गिक खेल प्रतिभा को पहचानना है। यह पहल केवल खेल आयोजन नहीं, बल्कि शासन और जनता के बीच विश्वास व संवाद का सेतु बन रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था – “बस्तर ओलंपिक केवल एक खेल आयोजन नहीं है, यह ऐसा मंच है जहां विकास और खेल का संगम हो रहा है, जहां हमारे युवा अपनी प्रतिभा को निखार रहे हैं और एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं।”
बस्तर ओलंपिक में सरेंडर नक्सलियों का दम
पकड़ो पकड़ो पकड़ो जाने ना पाए, पकड़ लो छोड़ना नहीं है। कभी दंतेवाड़ा में यह आवाज लोगों को डराती थी, लेकिन अब ये आवाज लोगों के भीतर रोमांच पैदा कर रही है। बस्तर ओलंपिक में खेल रहे खिलाड़ियों के मुंह से जब यह आवाज निकलती है तो लोगों की तालियां बजती हैं। कभी पकड़ो जाने ना पाए, जैसी आवाज सुनकर लोग घरों में छिप जाते थे। लेकिन अब बदलाव की बयार पूरे बस्तर अंचल के गांव से लेकर जिला मुख्यालय तक बह रही है। बदलते बस्तर की ये कहानी छत्तीसगढ़ से मिटते नक्सलवाद का एक बड़ा स्वरूप कहा जा सकता है, जिस बदलाव की तरफ छत्तीसगढ़ बढ़ चला है। 2025 में आयोजित बस्तर ओलंपिक में लंबे समय से नक्सली संगठन में सक्रिय रहकर कई घटनाओं को अंजाम देने वाले नक्सली अब बस्तर ओलंपिक में अपने खेल का प्रदर्शन किया। इस बार इनकी संख्या लगभग 761 थी। ये नक्सली जब अपने संगठन में थे तब भी ऐसे खेल खेलते थे। साथ ही कुछ ऐसी एक्टिविटी कर खुद को फिट रखते थे। फर्क ये था कि पहले इन खेलों और फिटनेस से जवानों पर हमला करने जैसी नकारात्मक गतिविधि करते थे। वही प्रैक्टिस आज उन्हें सकारात्मक रूप में काम आई है और वे ओलंपिक में अपनी प्रतिभा दिखाया।
समापन अवसर में शामिल हुए थे अमित शाह
Vishnu Ka Sushasan: इस वर्ष आयोजित बस्तर ओलंपिक के समापन समारोह में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि बस्तर ओलंपिक आने वाले दिनों में बस्तर के विकास की यशोगाथा बनेगा और शांति, सुरक्षा, विकास और नई उम्मीद की नींव डालने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि हम देश से नक्सलवाद को पूर्ण रूप से 31 मार्च 2026 तक समाप्त करेंगे। बस्तर ओलंपिक-2025 में सात ज़िलों की सात टीमें और एक टीम आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की थी। उन्होंने कहा कि जब 700 से अधिक सरेंडर्ड नक्सलियों ने इन खेलों में भाग लिया तो यह देखकर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद के झांसे में आकर उनका पूरा जीवन तबाह हो जाता और हथियार डालकर मुख्यधारा में आने वाले ऐसे 700 से अधिक युवा आज खेल के रास्ते पर आए हैं। इन खिलाड़ियों ने भय की जगह आशा चुनी, विभाजन की जगह एकता का रास्ता चुना और विनाश की जगह विकास का रास्ता चुना है और यही प्रधानमंत्री मोदी जी की नए भारत और विकसित बस्तर की संकल्पना है।

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