Hareli Tihar 2023: गेंड़ी खपाना किसे कहते हैं, हरेली में गेंड़ी चढ़ने का क्या है महत्व?
गेंड़ी खपाना किसे कहते हैं, हरेली में गेंड़ी चढ़ने का क्या है महत्व? hareli me gedi chadne ka mahatva, kyon manaya jata hai hareli tyohar
रायपुर । 17 जुलाई को प्रदेश में हर्ष उल्लास के साथ हरेली त्योहार मनाया जाएगा। हरेली त्योहार हरियाली का प्रतीक माना जाता है किसान अपनी फसल की सुरक्षा की कामना करते हुए हरेली त्यौहार मनाते हैं। जब किसान आषाढ़ के महीने में अपने खेत में फसल उगाता है तो श्रावण महीने के आते धान की फसल हरा-भरा हो जाता है तब किसान अपनी फसल की सुरक्षा हेतु हरेली तिहार मनाते हैं। छत्तीसगढ़ का लोक तिहार हरेली छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है। इसमें अच्छी फसल की कामना के साथ खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा की जाती है।
हरेली में गेंड़ी खपाना
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। गेंड़ी चढ़ने को ही गेंड़ी खपाना कहते है। यह पउआ असल में पैर दान होता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है।
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हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। गेंड़ी का रों हों पो पों सुबह-शाम माह भर गली, गुड़ी, चौरा में सुनाई पड़ता है। कोई रोक न कोई टोक। इस बीच माह भर में गेंड़ी की भेंट अनेक पर्व और त्यौहारों से होती हैं। गेंड़ी की उपस्थिति नागपंचमी, रक्षाबंधन, भोजली, कमरछठ, आठे कन्हैया (श्री कृष्ण जन्माष्टमी), पोरा व तीजा को भी आनंदपूर्ण व प्रभावी बनाती है।
हरेली में गेंड़ी चढ़ने का महत्व
हरेली प्राय : मानसून काल अथवा वर्षा ऋतु के आरंभ में मनाया जाता है। चूंकि यह त्योहार सावन महीने में मनाया जाता है। अत: यह पूरा काल भारी बारिश का होता है। इस दौरान गांव की गली, सड़के और खेतों की मेड़ कीचड़ और दलदल से भर जाती है। पुराने समय में गांव के बच्चे खुद को कीचड़ से बचाने के लिए लकड़ियों से बने उंचे पैरदान का उपयोग करते थे संभवत; गेंड़ी की प्रथा यहीं से शुरु हुई थी।
गेंड़ी की परंपरा कब प्रारंभ हुई इसका उल्लेख नहीं मिलता। पर ऐसी जनश्रुति है कि गेंड़ी की परंपरा पांडवों से जुड़ी हुई है। महाभारत काल में जब दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया तो पांडवों ने आग से बचने के लिए बाँस की गेड़ी बनाकर अपने प्राण बचाए थे। तब से गेड़ी की परंपरा प्रारंभ हुई है।
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