Vishnu ka Sushasan: आदिवासियों की आस्था का सम्मान, साय सरकार ने किया देवगुड़ियों का विकास, बस्तर में लौटी खुशहाली

आदिवासियों की आस्था का सम्मान, साय सरकार ने किया देवगुड़ियों का विकास, Sai government developed the Devgudis of Bastar

Vishnu ka Sushasan: आदिवासियों की आस्था का सम्मान, साय सरकार ने किया देवगुड़ियों का विकास, बस्तर में लौटी खुशहाली

Vishnu ka Sushasan. Image Source-IBC24 Customize

Modified Date: March 5, 2025 / 04:31 pm IST
Published Date: March 5, 2025 4:22 pm IST
HIGHLIGHTS
  • आदिवासियों के पारंपरिक पूजा स्थल होते हैं देवगुड़ी
  • देवगुड़ियों के विकास के लिए साय सरकार के अहम फैसले
  • वन विभाग और आदिवासी समुदाय के समन्वय से विकास

रायपुरः Vishnu ka Sushasan छत्तीसगढ़ प्रदेश आदिवासियों की रीति रिवाज, परंपरा और संस्कृति काफी विख्यात है। ये बाकी राज्यों के आदिवासियों की तुलना में काफी अलग भी है। बस्तर के आदिवासी अंचलों में प्रत्येक गांव और पंचायतों में आदिवासियों की देवगुड़ी है। इन आदिवासियों के लिए देवगुड़ी का भी अलग महत्व है। देवगुड़ी से तात्पर्य भगवान के मंदिर से है जिन्हें आदिवासी अपनी कुल देवता के रूप में पूजते हैं। साय सरकार केवल प्रदेश का विकास ही नहीं कर रही है। बल्कि आदिवासियों के आस्था केंद्रों को भी संवारा है। चलिए जानते हैं कि इन देवगुड़ियों के विकास के लिए क्या-क्या काम किए गए हैं।

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Vishnu ka Sushasan किसी भी समुदाय को जानने के लिए उनकी संस्कृति से अवगत होना जरूरी है। आदिवासी समुदाय अपने जातिगत और पारंपरिक देवी-देवताओं को खूब मानते हैं। उनके लिए एक नियत स्थान निर्धारित होता है। इसी में जाकर आदिवासी उनकी पूजा करते हैं। पिछली सरकार में आस्था के केंद्र इन देवगुड़ियों को संवारने के लिए कई विशेष पहल नहीं की गई। लिहाजा ये देवगुड़ी जीर्णशीर्ण अवस्था में थे। आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय प्रदेश की सत्ता संभालते ही इस काम शुरू किया और देवगुड़ियों के विकास के लिए राशि का प्रावधान किया। इन पैसों से देवगुड़ियों के आसपास कई निर्माण कार्य किए गए, जिससे वहां की खूबसूरती बढ़ी दूरदराज से दंतेवाड़ा और बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक भी इन देवगुड़ियों में पहुंच रहे हैं और बस्तर के संस्कृति की जानकारी भी ले रहे हैं। देवगुड़ी के संरक्षण एवं संस्कृति के विकास के लिए बजट 2025 में 11 करोड़ 50 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है।

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अब क्या हो रहा खास?

चूंकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री केदार कश्यप वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों से संबंध रखते हैं। इसलिए वे आदिवासी पंरपराओं को जीवित रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में वन विभाग देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण के लिए समर्पित है। ये प्रयास राज्य में सतत् वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के हमारे व्यापक मिशन के अनुरूप हैं।”वन विभाग स्थानीय जनजातीय के सहयोग से देवगुड़ी के संरक्षण एवं संवर्धन में सक्रिय रूप से प्रयासरत है। इस पहल के अंतर्गत बड़ी संख्या में स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है और पारंपरिक त्योहारों का पुनर्जीवन किया जा रहा है।” साय सरकार के प्रयासों से देवगुड़ियों के विकास होने से आदिवासी अंचलों में खुशी की लहर है। जनजातीय समुदाय इस पहल के लिए विष्णुदेव साय सरकार के प्रति आभार प्रकट कर रही है। देवगुड़ियों के माध्यम से जनजातीय समुदायों की परंपराएँ और धार्मिक आस्थाएँ सुदृढ़ हुई हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूती मिल रही है। इन स्थलों के संरक्षण से स्थानीय समुदायों में गर्व की भावना जागृत हुई है, जिससे वे अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति और अधिक सजग हुए हैं। इससे गैर-विनाशकारी कटाई और पारंपरिक प्रथाओं को बढ़ावा भी मिल रहा है।


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लेखक के बारे में

सवाल आपका है.. पत्रकारिता के माध्यम से जनसरोकारों और आप से जुड़े मुद्दों को सीधे सरकार के संज्ञान में लाना मेरा ध्येय है। विभिन्न मीडिया संस्थानों में 10 साल का अनुभव मुझे इस काम के लिए और प्रेरित करता है। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक मीडिया और भाषा विज्ञान में ली हुई स्नातकोत्तर की दोनों डिग्रियां अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए गति देती है।